दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High-Cout)ने एक 81 वर्षीय बुजुर्ग के अपने ही बेटे और बहू द्वारा प्रताड़ित किए जाने पर गहरी चिंता व्यक्त की है. अदालत ने कहा कि इस बुजुर्ग की कठिनाई का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उसे शौच के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है, क्योंकि उसका बेटा और बहू शौचालय को ताला लगा देते हैं.
जस्टिस सचिन दत्ता की बेंच ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली के डीसीपी को आदेश दिया है कि मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना झेल रहे बुजुर्ग के बेटे और उसके परिवार को 30 दिनों के भीतर उनके घर से बाहर निकाला जाए. बेंच ने कहा कि एक व्यक्ति अपने जीवनभर की मेहनत से एक आशियाना बनाता है, यह सोचकर कि वह अपने अंतिम दिनों में शांति से रहेगा. लेकिन जब उसकी संतान ही क्रूर बन जाए, तो उसकी शांति छिन जाती है. ऐसे मामलों में कानून को बुजुर्गों के पक्ष में खड़ा होना चाहिए.
आठ वर्षों से न्यायालय के चक्कर काट रहे बुजुर्ग ने 2017 में पहली बार दिल्ली पुलिस को अपनी शिकायत दी, लेकिन पुलिस ने पारिवारिक मामले का हवाला देकर कोई कार्रवाई नहीं की. इसके बाद उन्हें न्याय के लिए अदालत का सहारा लेना पड़ा. तब से वे लगातार सीनियर सिटीजन ट्रिब्यूनल, जिला अदालत और अब उच्च न्यायालय के चक्कर लगा रहे हैं. पहले से ही पारिवारिक क्रूरता का शिकार इस बुजुर्ग के लिए अदालतों के चक्कर लगाना उनकी समस्याओं को और बढ़ा रहा है. इसलिए उन्हें तत्काल राहत प्रदान की जानी चाहिए.
‘शौच तक के लिए मोहताज होना पड़ता है’
बुजुर्ग ने बताया कि उनका बेटा और बहू उनके कमरे से कीमती सामान निकाल लेते हैं और कई बार कमरे पर ताला भी लगा देते हैं. बाथरूम के दरवाजे पर ताला लगाना तो उनकी दिनचर्या का हिस्सा बन गया है. इसके अलावा, उन्हें मारपीट का भी सामना करना पड़ता है. हालांकि घर उनका है, लेकिन बेटे ने उस पर कब्जा कर रखा है. इस स्थिति में, उन्हें अपने ही घर में शौच के लिए भी मोहताज होना पड़ता है, जबकि एकलौते बेटे के नाते उसकी जिम्मेदारी बनती है कि वह उनकी देखभाल करे और उनके जीवनयापन का ध्यान रखे.
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