इंदौर। परिवार के सभी रिश्तों के अलग-अलग मायने होते हैं, लेकिन जो वक्त में काम आए वही रिश्ता एक-दूसरे से व्यक्तियों को आपस में जोड़ता है. ऐसे ही एक वाकये में परीक्षा नहीं देने की वजह से बेटे का साल बर्बाद न हो इसके लिए पिता ने उसको साइकिल में बिठाकर सौ किलोमीटर का सफर तय किया. रास्ते में बाप-बेटे ने खुले आसमान के नीचे विश्राम किया, जिसके बाद जाकर बेटा समय पर परीक्षा दिला पाने में सफल हुआ और पिता की साधना पूरी हुई.
धार से 105 किलोमीटर दूर ग्राम बयडीपुरा में रहने वाले पेशे से मजदूर शोभाराम का कक्षा दसवीं में पढ़ने वाला बेटा आशीष इस साल सप्लीमेट्री आ गया है. कोरोना लॉकडाउन में धार तक परीक्षा देने के लिए आने-जाने की कोई व्यवस्था नहीं होने की से साल बर्बाद होने की चिंता से ग्रसित पिता ने साइकिल में ही 105 किमी की दूरी तय करने का निर्णय लिया. और बेटे को साइकिल में बिठाया और निकल पड़े.
लंबे सफर में रात के दौरान पहले मांडू में बाप-बेटे ने विश्राम किया, और अगले दिन परीक्षा के लिए सुबह सूरज के उगने से पहले फिर निकल पड़े. शाम तक धार पहुंचे. गरीबी के कारण किसी होटल या सराय में रुक पाना इनके लिए मुमकिन नहीं था. लिहाजा बाप-बेटे दोनों धार स्टेडियम में खुले आसमान के नीचे ही सो गए. अगले दिन आशीष समय पर परीक्षा केंद्र पहुंचकर परीक्षा देने में कामयाब रहा.
आशीष ने बताया कि कोरोना संक्रमण के दौर में जब कहीं से मदद नहीं मिल रही थी तब लगा कि मैं परीक्षा नहीं दे पाऊंगा. ऐसे कठिन हालात में पिता ने तय किया कि वो मेरा एक साल बर्बाद नहीं होने देंगे. बस इसी संकल्प के साथ हम चल पड़े और समय पर धार पहुंच गए. परीक्षा मैने दे दी है, अब उम्मीद कर रहा हूं कि ठीक से पास भी हो जाउंगा.