हेमंत शर्मा, इंदौर। भारत के संविधान और राष्ट्रीय प्रतीक के इतिहास में स्वर्गीय दीनानाथ भार्गव का योगदान अमिट है। अशोक स्तंभ के चार शेरों वाला अशोक चिन्ह, जिसे हर सरकारी दस्तावेज और भारतीय मुद्रा पर देखा जा सकता है। उनकी अद्वितीय कलात्मक प्रतिभा का प्रमाण है। स्वर्गीय दीनानाथ ने संविधान के पहले पन्ने पर अशोक चिन्ह को साकार किया था। उनका यह योगदान न केवल ऐतिहासिक है, बल्कि यह देश की पहचान और गौरव का हिस्सा है। ऐसे महान कलाकार को भुला देना उनकी आत्मा और उनके योगदान के साथ अन्याय होगा। 

बेटे ने की पिता को योगदान के लिए उचित सम्मान देने की मांग

स्व. दीनानाथ भार्गव के बेटे सौमित्र भार्गव ने सरकार और प्रशासन से उनके पिता को उनके योगदान के लिए उचित सम्मान देने की मांग की है। उन्होंने अपील की है कि पिता के नाम पर यूनिवर्सिटी, मुख्य मार्ग, स्टेडियम और अन्य सार्वजनिक स्थलों का निर्माण किया जाना चाहिए, ताकि नई पीढ़ी उनके कार्य और देश के लिए उनके योगदान से परिचित हो सके। 

बैतूल, इंदौर, और भोपाल में प्रतिमा स्थापित करने की अपील

मध्यप्रदेश में दीनानाथ भार्गव के जन्मस्थान बैतूल, इंदौर, और भोपाल में उनकी प्रतिमा स्थापित करने की मांग की जा रही है। साथ ही हर राज्य में उनके नाम से एक राजमार्ग और अन्य सार्वजनिक स्थलों का नामकरण करने की भी अपील की है। कुछ साल पहले नगर निगम इंदौर ने मूसाखेड़ी क्षेत्र में एक बगीचा बनाने का निर्णय लिया था, लेकिन यह परियोजना अब तक पूरी नहीं हो सकी। 

‘इतिहास के पन्नों में दबकर न रह जाए नाम’

उनके छोटे बेटे और परिवार के अन्य सदस्य अब भी इस बात की कोशिश कर रहे हैं कि उनके पिता का नाम और योगदान दुनिया के सामने आए। उनका कहना है कि गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस, और संविधान दिवस जैसे महत्वपूर्ण अवसरों पर भार्गव जी का स्मरण करना न केवल उनका सम्मान है, बल्कि हमारी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर का आदर करना भी है। सरकार और प्रशासन को इस दिशा में ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है, ताकि उनका नाम इतिहास के पन्नों में दबकर न रह जाए। 

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