दंतेवाड़ा/रायपुर। राजधानी रायपुर से 400 किलोमीटर दूर दक्षिण बस्तर का अंतिम छोर वाला एक धुर नक्सल प्रभावित इलाका है दंतेवाड़ा. दंतेवाड़ा एक ऐसा इलाका जहां विकास में सबसे बड़ा बाधक माओवाद हैं. इनसे निपटने सरकार हर स्तर प्रयास कर रही है. फिर वह सैन्य मोर्चा पर हो या फिर मूल-भूत सुविधाओं को दूर कर इलाके को विकसित कर. लेकिन आज इस इलाके में कहानी एक ऐसे पुलिस अधिकारी की जो नक्सलियों को गोली का जवाब गोली से तो देते हैं, साहब आदिवासियों को भी गोली भरपूर देते हैं.

लेकिन साहब की ये गोली आदिवासियों को मारती नहीं बचाती है. उन्हें नई जिंदगियां देती है. उनका दर्द कम करती है. उन्हें सुख देती है. क्योंकि ये गोली दर्द की दवा है. और साहब भी आदिवासियों के लिए किसी मसीहा की तरह. किसी भगवान की तरह.

वैसे भी डॉक्टर को इस युग में भगवान ही कहा गया है कि क्योंकि वह जान बचाने का काम जो करते हैं. तो इस रिपोर्ट में ऐसे डॉक्टर की बात हो रही है. जो दंतेवाड़ा में बतौर पुलिस अधीक्षक के तौर पदस्त हैं.  इस पुलिस अधिकारी का नाम है डॉ. अभिषेक पल्लव.  दंतेवाड़ा एसपी डॉ. पल्लव नक्सल प्रभावित इस इलाके में दोहरी भूमिका निभा रहे हैं. पुलिस अधिकारी के साथ डॉक्टर के तौर अपनी जिम्मेदारी अभिषेक पल्लव बखूबी निभा रहे हैं.

डॉ. पल्लव गाँव-गाँव जाकर स्वास्थ्य कैंप लगाते हैं. कैंप में आदिवासियों का इलाज करते हैं. उन्हें दवाइया देते हैं. इसके साथ-साथ जरूरतमंदों को कपड़े और बच्चों को शिक्षण के साथ खेल सामग्री भी वितरित करते हैं.

11 मई को भी एक स्वास्थ्य शिविर डॉ. पल्लव ने भांसी थाना क्षेत्र में लगाई. शिविर में बड़ी संख्या में ग्रामीण और युवा आए. उन्होंने आदिवासियों का चेकअप कर उन्हें, बुखार, दर्द, दस्त, उल्टी, खुजली, मलेरिया, लू, चर्म रोग आदि से संबंधित दवाइयां बाटी.


अब जरा सोचिए अगर नक्सल प्रभावित इलाके के गाँवों में इसी तरह से स्वास्थ्य शिविर लगने लगे, इसी तरह से कोई पूरी जिम्मेदारी के साथ वनवासियों को स्वास्थ्य सेवा देने लगे तो इस इलाके के लोग कभी बीमार नहीं होंगे साथ उनका शारीरिक स्वास्थ्य के साथ मानसिक तौर भी नक्सलवाद के खिलाफ मजबूत किया जा सकता है. डॉ. पल्लव जो कर रहे हैं वह बहुत ही सराहनीय है.