Iqra Hasan In Supreme Court: उत्तर प्रदेश के कैराना लोकसभा से समाजवादी पार्टी (सपा) की सांसद इकरा हसन एक बार फिर से सुर्खियों में हैं। अखिलेश यादव की सांसद इकरा हसन सोमवार को सुप्रीम कोर्ट पहुंचीं। यहां सपा सांसद ने याचिका दाखिल की। दरअसल सांसद इकरा हसन ने प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट-1991 ( Places Of Worship Act) को बरकरार रखने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। एक्ट को प्रभावी तरीके से लागू करने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। देश के शीर्ष न्यायालय कोर्ट ने याचिका को अन्य मामलों के साथ जोड़कर सुनवाई तय की है।
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दरअसल सपा सांसद 14 फरवरी को चीफ जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस संजय करोल की पीठ के सामने ये मामला रखा। इसके बाद कोर्ट ने उनकी याचिका को अन्य प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट से संबंधित लंबित याचिकाओं के साथ जोड़ दिया है।
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वहीं चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने एक ही मामले में लगातार नई-नई याचिका दायर करने को लेकर नाराजगी जाहिर की। चीफ जस्टिस ने सुनवाई के दौरान कहा कि हर हफ्ते नई याचिकाएं दायर की जा रही हैं, जिससे मामला जटिल होता जा रहा है।
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सांसद इकरा हसन के वकील कपिल सिब्बल ने कोर्ट में केस की पैरवी की। याचिका में इकरा ने चिंता जताते हुए कहा कि मस्जिदों और दरगाहों को निशाना बनाकर बार-बार मुकदमे दायर किए जा रहे हैं। साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि बिना किसी ठोस जांच और कानूनी आधार के सर्वेक्षण के आदेश जारी करना सांप्रदायिक तनाव को बढ़ावा देता है। इससे संवैधानिक मूल्यों जैसे सौहार्द और सहिष्णुता पर खतरा पैदा होता है।
मौलिक अधिकारों का सम्मान जरूरी- इकरा हसन
इकरा हसन ने अपनी याचिका में तर्क दिया कि राम जन्मभूमि मंदिर मामले में स्थापित ‘गैर-प्रतिगमन के सिद्धांत’ के अनुसार प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के प्रावधानों को नजरअंदाज करना अनुचित होगा। उन्होंने कहा कि प्राचीन स्मारक और पुरातत्त्व स्थल अधिनियम 1958 के तहत किसी भी पूजा स्थल को प्राचीन स्मारक की परिभाषा में शामिल करना अनुच्छेद 25, 26 और 29 के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
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संभल हिंसा का हवाला दिया
इकरा ने संभल में हुई हिंसा का हवाला देते हुए कहा कि ये घटना ट्रायल कोर्ट की ओर से 16वीं सदी की एक मस्जिद पर सर्वेक्षण आदेश देने के बाद हुई थी। उन्होंने आरोप लगाया कि ट्रायल कोर्ट ने कानूनी पहलुओं की ठीक से जांच किए बिना एकतरफा अंतरिम आदेश जारी किया गया।
बता दें कि 12 दिसंबर 2024 को मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने धार्मिक स्थलों के खिलाफ नए मुकदमों और सर्वेक्षण आदेशों पर रोक लगा दी थी। ये आदेश ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा शाही ईदगाह और संभल जामा मस्जिद जैसे मामलों पर भी लागू किया गया था।
अब तीन सदस्यीय बेंच करेगी सुनवाई
इधर सोमवार को मामले में हुई सुनवाई में देश के शीर्ष न्यायालय ने पूजा स्थलों के संरक्षण कानून पर स्टे बरकरार रखा है। अब तीन सदस्यीय बेंच मामले की सुनवाई करेगी। अब ये मामला अप्रैल के पहले सप्ताह में तीन सदस्यीय पीठ के समक्ष सुना जाएगा। कल की सुनवाई में जमीयत उलमा-ए-हिंद (Jamiat Ulama-e-Hind) ने अपना पक्ष रखा।
पूर्व चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने स्टे (अस्थायी रोक) को बरकरार रखा था और मामले को तीन सदस्यीय पीठ के पास भेज दिया है। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की बेंच ने कहा-पहले सभी याचिकाओं को एक साथ दाखिल किया जाए, इसके बाद केंद्र सरकार हलफनामा दायर करेगी। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को अब तक हलफनामा दाखिल न करने पर नाराजगी भी जताई।
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