वैभव बेमेतरिहा, रायपुर। छत्तीसगढ़ में बीते 2 साल से शिक्षा गुणवत्ता अभियान चलाया जा रहा है. इस अभियान का कहीं-कहीं पर असर हुआ है, लेकिन असल सच सरकारी स्कूलों की क्या है वो आज आप इस पूरी स्टोरी में पढ़िएगा. इससे पहले की आप इस सरकारी स्कूल की स्थिति से वाकिफ हों सबसे पहले स्वागत के लिए मौजूद जरा इस तस्वीर को देखिए.
इस तस्वीर के आगे जैसे ही आप इस स्कूल में प्रवेश करेंगे आप ये जानकर हैरान और दंग रह जाएंगे कि 11 हजार करोड़ से अधिक बजट वाले शिक्षा विभाग के सरकारी स्कूल इस तरह से चल रहे हैं. उन दावों की हकीकत सामने आते जाएगी जहां मुख्यमंत्री से लेकर शिक्षा मंत्री तक कहते रहते हैं कि हमारे यहां शिक्षा का स्तर, व्यवस्था सुधर रही है. उन दावों का सच सामने आ जाएगा जिसमें 2018 तक शत-प्रतिशत ओडीएफ गांव होने का दावा किया जा रहा है, वो सच सामने आ जाएगा जहां हर स्कूल में शौचालय और पेयजल होने की बात कही जा रही है.
राजधानी रायपुर के करीब बसा है कचना. कचना के इस इसी इलाके में बसा है बीएसयूपी आवासीय कॉलोनी. इस कॉलोनी में झुग्गी-बस्ती में रहने वाले लोगों को बसाया गया है. यहां की आबादी 7 हजार है. इतनी बड़ी आबादी कहीं की हो तो उसे नगरीय निकाय के तहत नगर पंचायत घोषित कर दिया जाता है. जहां पर शहर के सभी मूल-भूत सुविधाएं मौजूद होती है. लेकिन इस आवासीय कॉलोनी में जो सबसे जरूरी सुविधा बच्चों को बेहतर शिक्षा, वही नसीब नहीं है. छत्तीसगढ़ रिसर्च एक्शन टीम के साथ मिलकर लल्लूराम डॉट कॉम की टीम ने इस सरकारी स्कूल का जायजा लिया. रिसर्च टीम की सदस्य स्वाति मानव की रिपोर्ट को जब हमने पढ़ा और वहां जाकर स्कूल का जायजा लिया तो हमारे लिए एक बेहद हैरान करने और शर्म करने वाली चीजें थी.
रिसर्च टीम की सदस्य स्वाति मानव की रिपोर्ट के मुताबिक जो दृश्य हमने स्कूल में देखें सबकुछ देखकर हम चौंक गए. हमने देखा कि कैसे एक आवासीय ब्लॉक में चार छोटे कमरों में 5 क्लास तक की स्कूल संचालित हो रही है. इस स्कूल का कहीं कोई नाम नहीं है. कॉलोनी के गिनती के बच्चें इस सरकारी स्कूल में पढ़ने आते हैं. 7 साल पहले जब यहां लोगों को बसाया गया था तब बड़े-बड़े वादे यहां पर किए गए थे. लेकिन 7 साल बीत जाने के बाद भी कॉलोनी में मूल-भूत सुविधाओं की कमी है. स्कूल भवन तो आज तक नहीं बन पाया है. चार बेहद छोटे-छोटे कमरे में स्कूल चल रहे हैं. जहां अभी तकरीबन 100 बच्चें पढ़ रहे हैं. बीते साल तक यहां 200 बच्चे पढ़ते थे. लेकिन व्यवस्था नहीं सुधरने के चलते धीरे-धीरे यहां दर्ज संख्या घटती जा रही है.
ब्लैकबोर्ड नहीं दरवाजे पर लिखकर करते हैं पढ़ाई-
चार कमरे वाले 5वीं क्लास तक की इस सरकारी स्कूल में ब्लैक बोर्ड नहीं है. बच्चें क्लास के दरवाजें पर लिखकर पढ़ाई करते हैं. रिसर्च टीम की सदस्य स्वाति मानव जब अकेली इस स्कूल की रिपोर्ट तैयार करने पहुंची थी, तो बच्चों को इस हाल में पढ़ाई करते देख उनकी आंखें भर आई थी. उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि शहर के पास भी ऐसी कोई तस्वीर देखने को मिल सकती है. बच्चेंं पाहड़ा से लेकर किताबों के पाठ दरवाजे में इस तरह से लिखकर पढ़ते हैं. गणित के सवाल भी इस दरवाजें पर हल होता है. आप समझ सकते हैं बच्चों का गणित हल हो रहा या बिगड़ रहा है.
ना पेयजल ना शौचालय, मध्यान भोजन घर में होता है-
जहां चार छोटे कमरे में सरकारी स्कूल चल रहा हो वहां शौचालय की कल्पना करना भी बेमानी है. लेकिन जब पीएम से लेकर सीएम और शिक्षा मंत्री तक ये दावे करते हैं कि हर स्कूल में शौचालय होगा, तो फिर मंत्री के घर से 10 किलोमीटर दूर इस सरकारी स्कूल में क्यों नहीं है ? शौचालय तो छोड़िए यहां पेयजल की भी कोई व्यवस्था नहीं. बच्चों की मजबूरी यह है कि वे मध्यान भोजन अपने घर जाकर ही करते हैं. पढ़ने के लिए बैठने की व्यवस्था तो समुचित है नहीं, लिहाजा भोजन करने की व्यवस्था हो नहीं सकती. बच्चों ने घर जाकर भोजन करना ही बेहतर समझ लिया.
5 कक्षा के लिए सिर्फ दो सहायक शिक्षक, प्रभारी तो है ही नहीं-
5वीं तक की पढ़ाई इस आवासीय मकान में संचालित स्कूल में होती है. लेकिन पढ़ाने के लिए सिर्फ दो ही सहायक शिक्षक है. वैसे सभी प्राथमिक शाला में एक प्रधान पाठक होते हैं, जो स्कूल प्रबंधन का काम भी देखते हैं लेकिन यहां कोई भी नहीं है. यहां तक कोई प्रभारी भी नहीं. शाला प्रबंधन समिति है लेकिन अध्यक्ष से लेकर सदस्य तक का कोई पता नहीं. एक जागरूक नगारिक जरूर स्कूल की व्यवस्था देखने आते-जाते हैं. जिन्होंने हमसे बातकर यह बताया कि समस्याओं की शिकायत अधिकारियों से लेकर मंत्री तक हो गई पर समाधान अब तक हुआ ही नहीं.
स्कूल के आस-पास भारी गंदगी, अंधेरे में पढ़ाई
स्कूल जहां संचालित होती है उसके आस-पास भारी गंदगी है. सुरक्षा व्यवस्था तो भूल ही जाइए. अंधेरे में बच्चों का भविष्य गढ़ा जा रहा है. बिजली के खुले कनेक्शन है लेकिन बिजली नहीं रहती है. सफाई करने वाला कोई है नहीं, झाड़ू लगते नहीं. कभी-कभी बच्चें ही मिलकर सफाई अभियान चला लेते हैं.
स्वाति मानव की रिपोर्ट और केस स्टडी-
छत्तीसगढ़ एक्शन रिसर्च टीम की रिपोर्ट के मुताबिक वर्तमान में प्रवेश के बाद भी 200 बच्चें स्कूल नहीं जातें. स्कूल नहीं जाने वालों में देवार बच्चें ज्यादा हैं. लगभग 350 बच्चें पास एवं दूर के स्कूलों में पढ़ने जाते हैं. जिसमें कुछ बच्चों के माता-पिता स्कूल की दूरी ज्यादा होने के चलते कभी-कभी ही बच्चों को भेज पाते हैं. लिहाजा शाला त्यागी बच्चों की संख्या बढ़ते ही जा रही है. बच्चों में शिक्षा के प्रति रुझान भी कम हो रहा है. स्कूल नहीं जाने वालें बच्चें घर के काम-काज में सहयोग करते हैं. कोई परिवार के सदस्य के साथ कबाड़ी के काम में चला जाता, तो कोई नशे की चपेट में है. यहां अशिक्षा और जागरूकता की भी बड़ी कमी है.
नाम- वंशिका यादव, उम्र-09 वर्ष-
वंशिका कक्षा चौथी में पढ़ती है, लेकिन इस स्कूल में नहीं यहां से 4 किलोमीटर दूर एक निजी स्कूल में. वंशिका कहती है कि अगर यहां पढ़ाई की व्यवस्था अच्छी होती तो वो यहीं पढ़ती निजी स्कूल में पढ़ने दूर नहीं जाती. मैं अभी जिस स्कूल में पढ़ रही हूँ वहां खेल मैदान, शौचालय, पेयजल, बिजली सब है लेकिन यहां कुछ भी नहीं.
वंशिका की तरह सैकड़ों अन्य बच्चें भी हैं, जो मजबूरी में कई किलोमीटर दूर अन्य सरकारी स्कूल या निजी स्कूल पढ़ने जाते हैं.
शिक्षक और शाला समिति के सदस्यों का कहना है कि यहां अन्य सरकारी स्कूलों की तरह कोई सुविधा नहीं मिलती. यहां स्कूल को किसी तरह का कोई सरकारी फंड भी नहीं मिलता. समिति प्रबंधन की ओर से ही दरी, टेबल कुर्सी, आदि दिए गए हैं.
मंत्री जी आप से वो सवाल जो हमारे माध्यम से यहां पढ़ने वालें बच्चों और मोहल्लेवासियों ने पूछे हैं-
वैसे शिक्षा मंत्री जी ये कोई नया सवाल नहीं है. और ना ही इस तरह का कोई पहला मामला आपके सामने आ रहा होगा. ऐसी शिकायतों को सुन-सुनकर आपके कान पक गए होंगे. फिर भी आप तक ये रिपोर्ट हम पहुंचा रहे हैं. आपको फोन लगाकर इसलिए कुछ नहीं पूछ रहे हैं क्योंकि आप यही बोलेंगे कि मुझ तक ये मामला नहीं आया है मैं दिखवाता हूँ. मंंत्री जी हम आप तक ये पूरी रिपोर्ट भेज रहे हैं. 10 मिनट का समय निकालकर पढ़िएगा जरूर. क्योंकि ये आपके अपने उस विभाग से जुड़ा विषय है जिस पर भारत सरकार से लगातार पुरस्कार ग्रहण कर रहे हैं. हमें मालूम है कि आप एक संवेदनशील मंत्री हैं. आप स्वयं ऐसे इलाके से आते है जहां आपने बहुत करीब से शिक्षा व्यवस्था की स्थिति को समझा और जाना है. फिर भी आपके विभाग के अधिकारियों की लापरवाही का नतीजा ये है कि आपके दामन पर दाग लगाने में वे कहीं कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं. और सरकारी स्कूलों की स्थिति को सुधारने के बजाय अधिकारी उसे बिगाड़ने में दिखाई दे रहे हैं. क्योंकि इस स्कूल की समस्या की शिकायत बीईओ, डीईओ और आपके कार्यालय तक भी पहुंच चुकी है. हम उम्मीद करते हैं कि रिपोर्ट पढ़ने के बाद आप स्वयं बीएसयूपी कॉलोनी में संचालित इस सरकारी स्कूल में जाकर व्यवस्था का आंकलन करेंगे. आप बच्चों को उनका अधिकार देंगे. मूल-भूत सुविधाओं की कमी को पूरा करेंगे. आप अपने बजट का कुछ हिस्सा इस स्कूल के विकास में खर्च करेंगे. हमें उम्मीद है कि आप एक सच्चे और अच्छे आदिवासी मंत्री हैं. आपकी संदेनशीलता को देखने उसे महसूस करने इस सरकारी स्कूल के बच्चें आपका इंतजार कर रहे हैं.