वैभव बेमेतरिहा, रायपुर। मोहन जोदारो की सभ्यता बहुत पुरानी हो गई. लेकिन वो भी कभी बहुत भव्य और नई रही होगी. जैसे आज छत्तीसगढ़ की एक अत्याधुनिक शहर को देख रहे हैं. नाम नया रायपुर है. खैर मोहन जोदारो का जिक्र क्यों करे, चर्चा छत्तीसगढ़ के पुरातात्विक स्थलों की करते हैं. सिरपुर तो देखा ही है, खुदाई में बहुत कुछ मिले हैं. नगर, महल, बाजार, बंदरगाह, मंदिर और भी बहुत कुछ. तर्रीघाट के लिए कहा जाता है कि छत्तीसगढ़ का सबसे प्राचीन नगर तर्रीघाट था. करीब 24 सौ साल पुराना. यहां से भी मौर्य कॉलीन मुद्राए, साजो-समान और नगरीय सभ्यता के प्रमाण मिले हैं.
पुरातात्विक महत्व के स्थलों का जिक्र नया रायपुर के लिए क्यों ये सवाल हो सकता है ? लेकिन सवालों का जवाब वर्तमान के इस अत्याधुनिक शहर के बनने और बसने में ही छिपा है. जिसके प्रमाण अभी है, लेकिन उसे माना नहीं जा सकता बतौर प्रमाण के तौर पर.
शहर कितना सुंदर होता ना, मनमोहक, आकर्षक, चकाचौंध वाला, चौड़ी सड़क वाला, बिजलियों की रौशनी में जगमगाता हुआ ऊंची-ऊंची इमारतों वाला, बड़ें-बड़ें शाही महल की तरह बंगले वाला. लेकिन गाँव ऐसे भव्य और आधुनिक शहर में…? कच्ची मकान, बिना नालियों वाली कच्ची गलियां, खप्परैल वालें आड़े-तिरछे वाले मिट्टी के घरौंदे. कहीं गौठान, कहीं कोठार, कहीं चारागाह, कहीं हाट-बाजार, कहीं बरगद-पीपल के छांव वाले चौपाल. गांव की तमाम सुंदरता पर अत्याधुनिक शहर चांद में जैसे दाग की तरह है.
आगे की कहानी से पहले इसी नया रायपुर में जिक्र मुक्तांगन का. मुक्तांगन के बारे में हम सब जानते ही होंगें. हमने देखा भी होगा. प्रदेश के कोने-कोने के लोग ना सही राजधानी के आस-पास के लोग और सरकारी अमला तो सब. मुक्तांगन में आपकों गांव देखने को मिलेगा. मुक्तांगन में आपकों बस्तर देखने को मिलेगा. मुक्तांगन में ग्रामीण संस्कृति देखने को मिलेगी. मुक्तांगन में यह दिखाया गया है कि वास्तव में गांव के घर-आंगन, वहां उपल्बध रहने वाली वस्तुएं सब कैसे होती है.
चलिये अब मुक्तांगन घुमने मूल विषय पर आ जाते है. दरअसल ये तमाम बातें लिखीं क्यों गई है और इसे यहां इस रूप में बताया क्यों जा रहा है इसके पीछे गांव ही है जो आपका अपना गांव हो सकता है. अगर आप नई राजधानी, नया रायपुर देखने और घुमने जा रहे हो, तो नया रायपुर से लगे उन तमाम गाँवों में जाइएगा जिसने नई राजधानी को बसाने में अपनी कुर्बानी दी है.
ना सिर्फ जाइएगा, बल्कि हमारी आने वाली पीढ़ी के लिए अगर कैमरों या मोबाइल से तस्वीर कैंद कर सकें तो वो भी कैद कर रख लीजिएगा. वो इसलिए ताकि असल इतिहास से हमारे बाद की पीढ़ी वाकिफ रह सकें. ये जान सकें कि नया रायपुर असल में नया रायपुर नहीं है, नई राजधानी असल में नई राजधानी नहीं है. बल्कि नई राजधानी के बनने के पीछे की एक कड़वी और पीड़ादायक सच्ची कहानी है.
इस सच्ची कहानी के कुछ पीड़ादायक दृश्य आप यहां वर्तमान में देख पा रहे हैं. इन दृश्यों में सच्ची कहानी के असल पात्र भी दिख रहे हैं. इन पात्रों के दर्द पठकथा में विस्तार से नहीं है, लेकिन जो पढ़ रहे हैं दरअसल वहीं सच्ची स्कृप्ट है. इनमें अनगिनत नायक और खलनायक हैं जिनकी भूमिकाएं अगल-अलग रूप में दिखती है. पूरी कहानी किताब में लिखीं जा सकती है. या तब जब नया रायपुर का इतिहास लिखा जाएगा.
फिलहाल मोहन जोदारो से लेकर सिरपुर और तर्रीघाट तक के जिन सभ्यताओं से आपका परिचय है उसी पर केन्द्रित रहते हुए है नया रायपुर को समझिएगा. दरअसल आज से सैकड़ों साल बाद जब हमारी कई पीढ़ियां इस दुनिया में नहीं होगी. तब यहां कभी कोई खुदाई होगी, तो यहां आपको एक गाँव मिलेगा, यहां आपको चारागाह मिलेगा, यहां आपको गौठान मिलेगा, यहां आपको कच्ची गलियों के प्रमाण मिलेंगे, यहां आपको बरगद-पीपल वाला चौपाल मिलेगा, यहां आपको कच्चे मकानों के अवशेष मिलेंगे, यहां आपको कुछ टूटी चुड़िया, कुछ टूटे खिलौने, कुछ मिट्टी-जर्मन के बर्तन और हो सकता चंद सिक्के भी इस दौर के मिलेंगे और यहां हो सकता है आपको राखी मिले, राखी गांव.
हां जी हां बेशक यही सब मिलेंगे जब आज से सैकड़ों साल बाद कभी यहां किसी हिस्से में कोई खुदाई होगी, कोई निर्माण होगा. क्योंकि जो शहर, जो अत्याधुनिक नगर, जो नई राजधानी, जो नया रायपुर आज बन रहा, बस रहा है दरअसल गांव को तबाहकर, उसे मिटाकर, खत्म कर बनाया और बसाया जा रहा है. इसलिए भविष्य को दिखाने, वर्तमान पीढ़ी को अतीत और वर्तमान को देखने नया रायपुर के उन गांवों में जाना चाहिए, जो अभी बीते कुछ सालों में खत्म हो गए हैं, जो शेष है वो इसी तरह से खत्म हो रहे हैं.