वैभव बेमेतरिहा, रायपुर। छत्तीसगढ़…एक ऐसा राज्य जो आदिकाल से अपनी आदिम संस्कृति और सभ्यता के लिए प्रसिद्ध है. एक ऐसा राज्य जो निर्मल-निश्च्छल आदिवासियों की भूमि है. एक ऐसा राज्य जो देव भूमि है. एक ऐसा राज्य जिसे सप्तऋषियों का गढ़ होने का गौरव प्राप्त है. एक ऐसा राज्य जो रामायण और महाभारतकालीन गाथाओं को अपने में समेटे हुआ है. एक ऐसा राज्य जहाँ शिव बूढ़ा देव के रूप में समूचे छत्तीसगढ़ में विराजित हैं, तो शक्ति स्वरूपा माँ पार्वती आदि शक्ति के रूप में चारो दिशाओं में पूजित हैं. इन सबके बीच एक ऐसा नाम भी है जो देश के अन्य राज्यों में भले राजनीतिक तौर पर सर्वाधिक प्रयोग में लाए जाते हो, लेकिन छत्तीसगढ़ में पूर्णरूपेण संस्कृति के प्रतीक हैं. ये नाम है राम का जो छत्तीसगढ़ के घट-घट में, कण-कण में, रोम-रोम में बसा हुआ है. पूरे देश में छत्तीसगढ़ ही एक ऐसा राज्य जहाँ राम को भाँचा(भांजा) होने का गौरव प्राप्त है. ये गौरव छत्तीसगढ़ के हिस्से इसलिए है क्योंकि यहीं है माता कौशल्या का मायका. यहीं है राम का ननिहाल. जी हाँ राम का ननिहाल. छत्तीसगढ़ी लोकगीतो में इसे इस तरह गाया जाता है… राम के ममा गाँव इहाँ, ये माता कौशल्या के धाम(मामा का गाँव).
नई सरकार ने एक पहल की है. पहल ये कि राम वनगमनपथ को धार्मिक-पर्यटन के तौर पर विकसित किया जाएगा. इसके लिए प्रदेश में 51 संस्थानों का चयन कर लिया गया है. वैसे ऐसी पहल पूर्व की रमन सरकार के समय भी हुई थी. हालांकि उस पर हुआ क्या, क्या नहीं इसकी जानकारी कभी सामने न आ सकी ? नई सरकार ने कम से कम इस दिशा में आगे बढ़ चुकी है. सरकार ने बकायदा कैबिनेट में मंजूरी देने के बाद स्थानों का चयन भी कर लिया, साथ ही उसमें पहले चरण के 8 स्थानों पर काम की शुरुआत भी कर दी है. सबसे महत्वपूर्ण ये है कि शुरुआत माता कौशल्या के जन्मभूमि से हुई.
इस मामले में कम से कम भूपेश सरकार को धन्यवाद दिया जा सकता है कि उन्होंने राम को राजनीति का नहीं बल्कि संस्कृति का प्रतीक ही माना है. इस बात के लिए भी उनकी प्रशंसा की जा सकती है कि उन्होंने इसे धर्म से न जोड़कर छत्तीसगढ़ की परंपराओं से जोड़ा है. और वे हर मंच से यही कहते हैं कि राम छत्तीसगढ़ियों के लिए भाँचा(भांजा) है. राम को तो हमारे यहाँ भाँजे के रूप में पूजते हैं. इस बात के लिए भी उन्हें साधुवाद दिया जा सकता है कि कम से कम उन्होंने छत्तीसगढ़ में राम गमन को लेकर जो शोध हुए उस पर काम की शुरुआत तो की. देश-दुनिया में रामायण को लेकर जो भी शोध हुए हो, लेकिन छत्तीसगढ़ में स्वर्गीय मन्नूलाल यदु और अन्य विद्वानों ने जो शोध किए हैं उसमें राम के वनवास का 12 वर्ष यहीं बीतना पाया गया है. उत्तर में सरगुजा अँचल से लेकर दक्षिण में बस्तर तक की लंबी यात्रा राम ने भाई लक्ष्मण और माता सीता के साथ यही पर की है. इस शोघ के आधार पर सरकार ने घट-घट के वासी राम के स्थानों को विकसित करना शुरू किया है.
छत्तीसगढ़ में राम सिर्फ एक नाम ही नहीं, बल्कि एक समाज, एक सम्प्रदाय है. देश में छत्तीसगढ़ ही एक मात्र स्थान ऐसा है जहाँ रामनामी परिवार मिलता है. जाँजगीर और सारंगढ़ अँचल में निवासरत् रामनामी परिवार पूरी तरह से राममय है. रामनामी परिवार के प्रत्येक सदस्य राम में ऐसे रमे हुए हैं कि उनके पूरे शरीर में राम ही राम मिलते हैं. रामनामी परिवार अपने शरीर को राम नाम से गुदवा लेते हैं. यह इतना बड़ा परिवार है कि इसे एक समाज, सम्प्रदाय होने का गौरव मिल चुका है. हर साल रामनामियों का एक बड़ा मेला लगता है, जिसे देखने देश-दुनिया भर से लोग पहुँचते हैं.
वैसे इसी छत्तीसगढ़ के हिस्से एक और बड़ा गौरव है माता शबरी का पुण्य धाम भी यही हैं. जाँजगीर जिले में शिवरीनारायण नामक स्थान ही वह जगह माना जाता है जहाँ राम ने शबरी के हाथों झूठे बेर खाए थे. वाल्मिकी आश्रम हो या लोमस ऋषि का आश्रम सबकुछ तो इसी छत्तीसगढ़ में है. कहने का आशाय है कि दुनिया भले कहीं भी राम धार्मिक और राजनीतिक रूप में स्थापित हो, लेकिन छत्तीसगढ़ के संदर्भों में देखें या के छत्तीसगढ़ियों लोगों के दिलों-दिमाग में श्रद्धा और आस्था के साथ भाँचा के रूप में राम सच में संस्कृति और परंपरा के ही प्रतीक हैं. और छत्तीसगढ़िया होने के नाते मुझे इस बात की खुशी है कि छत्तीसगढ़िया सरकार भी राम को इसी प्रतीक के साथ देश-दुनिया में स्थापित करने की चाहत रखते हैं या कहिए करने की शुरुआत कर चुके हैं.