CG News Raipur : रायपुर. इस बार हरेली तिहार 28 जुलाई को मनाया जाएगा. हरेली तिहार छत्तीसगढ़ का सबसे पहला त्यौहार है, जो लोगों को छत्तीसगढ़ की संस्कृति और आस्था से परिचित कराता है. हरेली का मतलब हरियाली होता है, जो हर वर्ष सावन महीने के अमावस्या में मनाया जाता है. हरेली मुख्यतः खेती-किसानी से जुड़ा पर्व है. इस त्यौहार के पहले तक किसान अपनी फसलों की बोआई या रोपाई कर लेते हैं और इस दिन कृषि यंत्रों व औजारों की साफ-सफाई कर उसकी पूजा-अर्चना करते हैं.
इस पर्व पर घर में महिलाएं तरह-तरह के छत्तीसगढ़ी व्यंजन खासकर गुड़ का चीला बनाती हैं. हरेली में जहां किसान कृषि उपकरणों की पूजा कर पकवानों का आनंद लेते हैं, आपस में नारियल फेंक प्रतियोगिता करते हैं, वहीं युवा और बच्चे गेड़ी चढ़ने का मजा लेते हैं. छत्तीसगढ़ की संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन के लिए शासन द्वारा बीते साढ़े तीन वर्षों के दौरान उठाए गए महत्वपूर्ण कदमों के क्रम में स्थानीय तीज-त्यौहारों पर भी अब सार्वजनिक अवकाश दिए जाते हैं. इनमें हरेली तिहार भी शामिल है. तीजा, मां कर्मा जयंती, मां शाकंभरी जयंती (छेरछेरा), विश्व आदिवासी दिवस और छठ पर सार्वजनिक अवकाश दिए जाते हैं.
अब राज्य में तीज-त्यौहारों को व्यापक स्तर पर मनाया जाता है, जिसमें शासन भी भागीदारी बनता है. इन पर्वों के दौरान महत्वपूर्ण शासकीय आयोजन होते हैं तथा महत्वपूर्ण शासकीय घोषणाएं भी की जाती है. वर्ष 2020 में हरेली पर्व के ही दिन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने गोधन न्याय योजना की शुरूआत की थी, जो केवल 02 वर्षों में अपनी सफलता को लेकर अन्य राज्यों के लिए नजीर बन गई है. इस योजना का देश के अनेक राज्यों द्वारा अनुसरण किया जा रहा है. हरेली तिहार 28 जुलाई से इस योजना में और विस्तार करते हुए अब गोबर के साथ-साथ गोमूत्र खरीदी करने की भी निर्णय लिया गया है.
हरेली के दिन गांव में पशुपालन कार्य से जुड़े यादव समाज के लोग सुबह से ही सभी घरों में जाकर गाय, बैल और भैंसों को नमक और बगरंडा का पत्ता खिलाते हैं. हरेली के दिन गांव-गांव में लोहारों की पूछपरख बढ़ जाती है. इस दिन गांव के लोहार हर घर के मुख्य द्वार पर नीम की पत्ती लगाकर और चैखट में कील ठोंककर आशीष देते हैं. मान्यता है कि ऐसा करने से उस घर में रहने वालों की अनिष्ट से रक्षा होती है. इसके बदले में किसान उन्हें दान स्वरूप स्वेच्छा से दाल, चावल, सब्जी और नगद राशि देते हैं. ग्रामीणों द्वारा घर के बाहर गोबर से बने चित्र बनाते हैं, जिससे वह उनकी रक्षा करे.
हरेली से तीजा तक गेड़ी दौड़ का आयोजन
हरेली त्यौहार के दिन गांव के प्रत्येक घरों में गेड़ी का निर्माण किया जाता है, मुख्य रूप से यह पुरुषों का खेल है. घर में जितने युवा एवं बच्चे होते हैं उतनी ही गेड़ी बनाई जाती है. गेड़ी दौड़ का प्रारंभ हरेली से होकर भादो में तीजा पोला के समय जिस दिन बासी खाने का कार्यक्रम होता है उस दिन तक होता है. बच्चे तालाब जाते हैं, स्नान करते समय गेड़ी को तालाब में छोड़ आते हैं, फिर वर्षभर गेड़ी पर नहीं चढ़ते, हरेली की प्रतीक्षा करते हैं. गेड़ी के पीछे एक महत्वपूर्ण पक्ष है जिसका प्रचलन वर्षा ऋतु में होता है. वर्षा के कारण गांव के अनेक जगह कीचड़ भर जाती है, इस समय गाड़ी पर बच्चे चढ़कर एक स्थान से दूसरे स्थान पर आते जाते हैं, उसमें कीचड़ लग जाने का भय नहीं होता.
नारियल फेंक प्रतियोगिता
नारियल फेंक बड़ों का खेल है, इसमें बच्चे भाग नहीं लेते. प्रतियोगिता संयोजक नारियल की व्यवस्था करते हैं, एक नारियल खराब हो जाता है तो तत्काल ही दूसरे नारियल को खेल में सम्मिलित किया जाता है. खेल प्रारंभ होने से पूर्व दूरी निश्चित की जाती है, फिर शर्त रखी जाती है कि नारियल को कितने बार फेंक कर उक्त दूरी को पार किया जाएगा. प्रतिभागी शर्त स्वीकारते हैं, जितनी बात निश्चित किया गया है उतने बार में नारियल दूरी पार कर लेता है तो वह नारियल उसी का हो जाता है. यदि नारियल फेंकने में असफल हो जाता है तो उसे एक नारियल खरीद कर देना पड़ता है.
बस्तर में हरियाली अमावस्या पर मनाया जाता है अमूस त्यौहार
छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में ग्रामीणों द्वारा हरियाली अमावस्या पर अपने खेतों में औषधीय जड़ी-बूटियों के साथ तेंदू पेड़ की पतली छड़ी गाड़ कर अमूस त्यौहार मनाया जाता है. इस छड़ी के ऊपरी सिरे पर शतावर, रसना जड़ी, केऊ कंद को भेलवां के पत्तों में बांध दिया जाता है. खेतों में इस छड़ी को गाड़ने के पीछे ग्रामीणों की मान्यता यह है कि इससे कीट और अन्य व्याधियों के प्रकोप से फसल की रक्षा होती है. इस मौके पर मवेशियों को जड़ी बूटियां भी खिलाई जाती है. इसके लिए किसानों द्वारा एक दिन पहले से ही तैयारी कर ली जाती है.
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