लेखक – रुपेश गुप्ता

त्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल अपने बहुप्रतीक्षित अभियान भेंट- मुलाकात का पहला चरण पूरा कर चुके हैं. सरगुजा संभाग के छह जिलों में से तीन जिले में अपना कार्यक्रम पूरा करके वे राजस्थान के उदयपुर में हैं. भेंट मुलाकात के पहले चरण में भूपेश बघेल ने सरगुजा, बलरामपुर और सूरजपुर जिले की 7 विधानसभा में समाज के हर वर्ग के बीच, हर क्षेत्र में अपनी मौजूदगी दर्ज कराई. इसके अपनी अहमियत और आलोचनाएं है. जिसके प्रशासनिक, राजनीतिक और सामाजिक नतीजे और असर पड़ेंगे.

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल इस कार्यक्रम के जरिए मैदानी हालात से रुबरु हुए. उन योजनाओं के बारे में लोगों से बात करके उसका फीड बैक लिया, जिनके जरिए पार्टी 2023 में जनता से वोट मांगेगी. अधिकारियों की क्षमता और कार्यकुशलता से वे वाकिफ हुए. संगठन की खूबियों और खामियां समझने का उनको मौका मिला. लेकिन सतह पर सरगुजा की जनता भूपेश बघेल को भी समझा.

मुख्यमंत्री भेंट मुलाकात कार्यक्रम के ज़रिए लोगों के बीच सिर्फ खुद नहीं गए. बल्कि अपने सभी अधिकारियों को लेकर गए. पूरी सरकार को अपने बीच देखना सरगुजा की जनता के लिए एक अनूठा अनुभव रहा. जनता को समझने का मौका मिला कि सरकार उनकी अपनी है. उसमें उनका हस्तक्षेप कहां और कैसे हो सकता है. जब कोई अधिकारी किसी आम जन शिकायतों पर जवाब देता है तो लोकतंत्र में जनता को अपनी ताकत का एहसास होता है. आमतौर पर ये एहसास केवल चुनाव के वक्त ही जनता को होता आया है. लेकिन इतना लंबा समय लोगों के बीच बिताकर भूपेश बघेल ने उन्हें ये मौका तो दिया ही है. लेकिन इसकी वास्तविक कामयाबी तभी मानी जाएगी जब भूपेश बघेल के दौरे के बाद भी जनता का मनोबल इतना बढ़ा रहे कि वो अधिकारियों और सरकारी कर्मचारियों के सामने खड़े होकर अपने हक की बात रख सकें.  

भेंट मुलाकात का कार्यक्रम का स्वरुप अधिकारियों के लिए नया अनुभव है. अधिकारी अब तक ये ही देखते आए थे कि ऐसे आयोजनों में संवाद एकपक्षीय होता है. मुखिया बोलते हैं और जनता सुनती है. औपचारिक रुप से दो-चार सवाल जनता की ओर से आते हैं लेकिन वे कभी नेगेटिव नहीं होते. लेकिन भूपेश बघेल ने मैदान पर जाकर सच का सामना किया. उन्होंने जिनता बोला उससे ज्यादा सुना. मीठा भी कड़वा भी. ये एक खतरा है जबकि कांग्रेस के विपक्ष में भाजपा जैसी आक्रामक पार्टी हो. इस जोखिम भरे फैसले पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहना है कि यही असली डेमोक्रेसी है. जब सवाल पूछने की आज़ादी लोगों को हो.

भूपेश बघेल ने एक हफ्ते में इतने लोगों से इन अधिकारियों को मिलवा दिया कि वे कुछ अधिकारी अपने कैरियर में इनते लोगों से ना मिले हों. वो भी 40 से 45 डिग्री के तापमान में. मैदान पर डटे अधिकारियों ने मुख्यमंत्री ये करीब से देखा और जाना है कि मुख्यमंत्री क्या चाहते हैं. उनकी प्राथमिकताएं क्या हैं, इसमें कोताही बरतने पर बचने की कितनी गुंजाइश है. इसका क्या असर देखने को मिलता है, भेंट मुलाकात का ये तजुर्बा अधिकारियों की कार्यकुशलता को और व्याहारिक को बदलता है या नहीं ये देखने वाली बात होगी.

अपने दौरे से भूपेश बघेल को खुद फायदा होगा. उन्होंने अपनी सरकार की योजनाओं की धरातल पर स्थिति को भांपा और समझा. इसे लागू करने में किस तरह की दिक्कत आ रही है कहां सुधार की गुंजाइश है. ये सब उन्हें जानने का मौका मिला. डेढ़ साल में उनके पास वक्त है कि व्यावारिक दिक्कतों को समझते हुए इसके क्रियान्वयन में बाधाओं को दूर करें.

आठ दिन के अपने प्रवास में भूपेश बघेल ने अपने साहस, दबंग अंदाज़, नेतृत्व क्षमता और मेहनत से उस सरगुजा को बखूबी वाकिफ करा दिया, जो भूपेश को केवल मैदान का नेता समझती थी. भूपेश बघेल भी मैदानी हकीकत से वाकिफ हो रहे हैं. उन्होंने अधिकारियों की काबिलियत, कार्यकर्ताओं के मनोबल और नेताओं की हैसियत को अच्छे से तौल लिया.  

जनता ने भूपेश बघेल के नेतृत्व क्षमता उनकी सूझबूझ और बिना देरी किए फैसले लेने के अंदाज़ को करीब से देखा. इसके दो उदाहरण गौर करने लायक हैं.

पहला उदारण सूरजपुर जिले के कार्यक्रम का है. जिसका वायरल खूब वायरल हुआ. इस मामले में महिला सिमरन अग्रवाल ने उसे मिलने नहीं देने का आरोप लगाया तो उन्होंने इस आरोप को डांटकर खारिज किया. इस डांट को लेकर मुख्यमंत्री की आलोचना भी खूब हुई. लेकिन जब इसका दूसरा वीडियो सामने आया तो लोगों ने देखा कि मुख्यमंत्री ने नाराज़गी के बाद मामले को सुना और उसे सुलझाने की कोशिश भी की. महिला ने जब अपनी शिकायत नहीं दर्ज करने का दूसरा आरोप लगाया तो मुख्यमंत्री ने वहीं पुलिस अधिकारी से जवाब मांगा और महिला को पुलिस वालों के खिलाफ शिकायत दर्ज करने की समझाइश दी.

ऐसा ही एक और वाकया लुंड्रा विधानसभा के करजी में देखने को मिला. यहां भेंट मुलाक़ात कार्यक्रम में कई लोग हो- हल्ला करके बोलने का मौका देने की मांग करती रही. तब भूपेश बघेल ने भारत माता की जयकार करवाकर पहले शांत करवाया फिर कार्यक्रम के बाद वे खुद हल्ला कर रहे लोगों के बीच पहुंच गए और खुद एक- एक का आवेदन लेकर जनता को शांत कराया. कुछ लोग वहां के नवनिर्मित स्टेडियम को शहीद नंद किशोर शर्मा के नाम पर कर रहे थे. इसे उन्होंने फौरन पूरी कर दी और 10 मिनट पहले शोर कर रहे भीड़ जयकारे लगाने पर मजबूर कर दिया.

बघेल जहां भी गए लोगों से मुखाबित होने का मौका नहीं छोड़ा. वे जहां भीड़ देखते. रुक जाते उनसे बोलते-बतियाते और पूछते. फिर उसके फॉलोअप के लिए अधिकारियों को निर्देश देते. बघेल ने कोई औचक निरीक्षण नहीं किया लेकिन तयशुदा निरीक्षणों में इतने तरीके से क्रास चेक किया कि गड़बगड़ियां उनकी नज़र से नहीं बच पातीं. निरीक्षण के दौरान किए गए दावों का परीक्षण वहां के लोगों से पूछकर करते.

अंबिकापुर से कोई 15 किलोमीटर दूर गांव बटवाही में उन्होंने एक उप स्वास्थ्य केंद्र का निरीक्षण किया. वहां रिकार्ड मे अस्पताल के बंदोबस्त ठीक थे. जब वे लौट रहे थे तो वहीं कुछ महिलाएं दिख गईं. सीएम गाड़ी से उतरकर उनसे डाक्टरों और दवाइयों के बारे में जानकारी लेकर कागज़ी दावों की पड़ताल कर ली.

भूपेश बघेल ने बार-बार क्रास चेक करके, गलत करते पाए गए अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई करके  भेंट मुलाकात को प्रायोजित कार्यक्रम बताने की बीजेपी की आचोलना धार को कुंद कर दिया. अधिकारियों का एक धड़ा कार्रवाई से डरा हुआ नाखुश भी है. लेकिन जनता खुश है. भूपेश बघेल ने अंबिकापुर की अपनी आखिरी समीक्षा बैठक में कहा कि ये ना समझा जाए कि जाने के बाद सब बच गए हैं जिस तरह से काम पिछले 7 दिनों में हुआ है उसी तरह होना चाहिए. भूपेश बघेल ने ये भी कहा कि कुछ अधिकारियों पर कार्रवाई हुई लेकिन ज़्यादातर लोग अच्छा काम कर रहे हैं.

भूपेश बघेल ने पुराने कार्यकर्ताओं से नाता जोड़ने की कोशिश भी की. वे रोज़ाना एक पुराने कार्यकर्ता के यहां उनके साथ दोपहर का खाना खाते रहे. खाना भी ज़मीन पर बैठकर खाए. मुख्यमंत्री की थाली में एक खट्टी सब्जी,  स्थानीय भाजी और तिलौरी, पेंहठा ज़रुर होता था. वे स्थानीय खानपान को लेकर बात करते दिखे. चटनी और भाजी को लेकर वे ज़रुर पूछताछ करते दिखे. वे सरगुजा के पेंहठा के मुरीद दिखे. इसका ज़िक्र उन्होंने कई बार किया. जिस कार्यकर्ता के यहां वे खाना खाते. उसका नाम उन्हें मुंहज़ुबानी था.