रायपुर. छत्तीसगढ़ में महानदी, शिवनाथ और जोंक नदी के संगम पर बसा शिवरीनारायण धार्मिक, ऐतिहासिक और पौराणिक नगरी के रूप में प्रसिद्ध है. इस स्थान की महत्ता इस बात से पता चलती है कि देश के चार प्रमुख धाम बद्रीनाथ, द्वारिका, जगन्नाथपुरी और रामेश्वरम के बाद इसे पांचवें धाम की संज्ञा दी गई है. यह स्थान भगवान जगन्नाथ का मूल स्थान है इसलिए छत्तीसगढ़ के जगन्नाथपुरी के रूप में प्रसिद्ध है. यहां प्रभु राम का नारायणी रूप गुप्त रूप से विराजमान है, इसलिए यह गुप्त तीर्थधाम और गुप्त प्रयागराज के नाम से भी जाना जाता है.
शिवरीनारायण रामायण कालीन घटनाओं से जुड़ा है. मान्यता के अनुसार वनवास काल के दौरान यहां प्रभु राम ने शबरी के जूठे बेर खाए थे. रामायण काल की स्मृतियों को सजोने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा राम वन गमन पर्यटन परिपथ के विकास के लिए कॉन्सेप्ट प्लान बनाया गया है. इस प्लान में शिवरीनारायण में मंदिर परिसर के साथ ही आस-पास के क्षेत्र के विकास और श्रद्धालुओं और पर्यटकों की सुविधाओं के लिए यहां 39 करोड़ रुपए की कार्य योजना तैयार की गई है. प्रथम चरण में 6 करोड़ रुपए के विभिन्न कार्य पूर्ण कर लिए गए हैं, इससे यहां आने वाले लोगों को नई सुविधाएं मिलेंगी.
राम वन गमन पथ: कॉन्सेप्ट प्लान के लिए 133 करोड़ रूपए का प्रावधान
राम वन गमन कॉन्सेप्ट प्लान में प्रभु राम के छत्तीसगढ़ में वनवास काल में भ्रमण से संबंधित 75 स्थानों को धार्मिक और पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की योजना बनाई गई है. इनमें प्रथम चरण में 9 स्थल चिन्हित कर वहां श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए सुविधाएं विकसित की जा रही हैं. इसके लिए 133 करोड़ रुपए की कार्ययोजना तैयार की गई है. चयनित स्थानों पर आवश्यकता अनुसार पहुंच मार्ग का उन्नयन, संकेत बोर्ड, पर्यटक सुविधा केन्द्र, इंटरप्रिटेशन सेंटर, वैदिक विलेज, पगोड़ा वेटिंग शेड, मूलभूत सुविधा, पेयजल व्यवस्था, शौचालय, सिटिंग बेंच, रेस्टोरेंट, वाटर फ्रंट डेवलपमेंट, विद्युतीकरण आदि कार्य कराए जाएंगे. राम वन गमन मार्ग में आने वाले स्थलों को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का काम रायपुर जिले के आरंग तहसील के गांव चंदखुरी स्थित माता कौशल्या मंदिर से शुरू हुआ है.
शिवरीनारायण में नई सुविधाएं
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जांजगीर-चांपा जिले के शिवरीनारायण में राम वन गमन परिपथ के अंतर्गत विकसित की गई नई सुविधाओं और विभिन्न कार्यों का लोकार्पण करेंगे. यहां प्रथम चरण में 6 करोड़ के विकास कार्य पूर्ण कराए गए हैं. इनमें शिवरीनारायण के मंदिर परिसर का उन्नयन एवं सौदर्यीकरण, दीप स्तंभ, रामायण इंटरप्रिटेशन सेन्टर एवं पर्यटक सूचना केन्द्र, मंदिर मार्ग पर भव्य प्रवेश द्वार, नदी घाट का विकास एवं सौंदर्यीकरण, घाट में प्रभु राम-लक्ष्मण और शबरी माता की प्रतिमा का निर्माण किया गया है. इसी प्रकार घाट में व्यू पाइंट कियोस्क, लैण्ड स्केपिंग कार्य, बाउंड्रीवाल, मॉड्यूलर शॉप, विशाल पार्किंग एरिया और सार्वजनिक शौचालय का निर्माण शामिल है.
स्थापत्य कला और मंदिर
शिवरीनारायण का मंदिर समूह दर्शनीय है. यहां की स्थापत्य कला और मूर्तिकला बेजोड़ है. यहां नर-नारायण मंदिर है, इसका निर्माण राजा शबर ने करवाया था. यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है. केशवनारायण मंदिर ईंटों से बना है, यह पंचरथ विन्यास पर भूमि शैली पर निर्मित है. यहां चंद्रचूड़ महादेव मंदिर, जगन्नाथ मंदिर भी दर्शनीय है. यह पुरी के जगन्नाथ मंदिर के सदृश्य है। शिवरीनारायण शहर से लगे ग्राम खरोद में ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व के अनेक मंदिर हैं इनमें मुख्य रूप से दुल्हादेव मंदिर, लक्ष्मणेश्वर मंदिर, शबरी मंदिर प्रसिद्ध है.
प्रसिद्ध है यहां की रथ यात्रा
शिवरीनारायण शैव, वैष्णव धर्म का प्रमुख केन्द्र रहा है. यह स्थान भगवान जगन्नाथ का मूल स्थान होने के कारण यहां रथयात्रा का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है. ऐसी मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ की विग्रह मूर्तियों को यहीं से जगन्नाथपुरी ले जाया गया था. यहां पुरी की तर्ज पर रथ यात्रा का आयोजन होता है. इसमें छत्तीसगढ़ के अलावा अन्य राज्यों के साधू-संत और श्रद्धालु शामिल होते हैं.
सबसे बड़ा मेला: साधु संत का शाही स्नान
माघी पूर्णिमा को यहां छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा 15 दिवसीय मेला लगता है. महाशिवरात्रि के दिन मेले का समापन होता है. माघी पूर्णिमा के दिन यहां साधू-संत शाही स्नान करते हैं. यहां बहुत दूर-दूर से श्रद्धालु आते है, ऐसी मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ एक दिन के लिए शिवरीनारायण मंदिर में विराजते हैं.
प्रभुराम महानदी मार्ग से यहां पहुंचे
जनश्रुति के अनुसार प्रभु राम वनवास काल में मांड नदी से चंद्रपुर ओर फिर महानदी मार्ग से शिवरीनारायण पहुंचे थे. छत्तीसगढ़ में कोरिया जिले के भरतपुर तहसील में मवाई नदी से होकर जनकपुर नामक स्थान से लगभग 26 किलोमीटर की दूर पर स्थित सीतामढ़ी-हरचौका नामक स्थान से प्रभु राम ने छत्तीसगढ़ में प्रवेश किया था. प्रभु राम ने अपने वनवास काल के 14 वर्षों में से लगभग 10 वर्ष से अधिक समय छत्तीसगढ़ में विभिन्न स्थानों पर व्यतीत किया था.
छत्तीसगढ़ है प्राचीन दक्षिणापथ
शोधार्थियों के अनुसार त्रेतायुगीन छत्तीसगढ़ दक्षिण कोसल एवं दण्डकारण्य के रूप में विख्यात था. दण्डकारण्य में प्रभु राम के वनगमन यात्रा की पुष्टि वाल्मीकि रामायण से होती है. शोधकर्ताओं के शोध से प्राप्त जानकारी अनुसार प्रभु श्रीराम के द्वारा उत्तर भारत से छत्तीसगढ़ में प्रवेश करने के बाद छत्तीसगढ़ में विभिन्न स्थानों का भ्रमण करने के बाद दक्षिण भारत में प्रवेश किया गया था. अतः छत्तीसगढ़ को दक्षिणापथ भी कहा जाता है.