विश्वनाथ वैशम्पायन जो ‘आज़ाद’ के लिए हथियार जुटाया करते थे, भगत सिंह को जेल से छुड़ाने की योजना में शामिल थे, जिनकी बाँहों में भगवती चरण वोहरा ने दम तोड़ा था रायपुर में पत्रकारिता करते हुए जिन्होंने 8 साल गुज़ारे. शहीदों की याद में भगत सिंह अक्सर गुन -गुनाया करते थे ‘वो सूरते-इलाही किस देश बस्तियां हैं, जिनको निहारने को अँखियाँ तरस्तियां हैं.
इन शहीदों के साथी एक इलाही आठ बरसों तक रायपुर में बसे. रायपुर का ये सौभाग्य था कि ये अकेले नहीं बल्कि अपने परिवार पत्नी दो बेटियों के साथ रायपुर में पूरे आठ बरस रहे, पर हमारे पास शहीदों जैसी अँखियाँ नहीं थीं जो ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन’ के क्रांतिकारी और आज़ाद के सबसे भरोसेमंद कामरेड विश्वनाथ वैशम्पायन ‘बच्चन’ को याद कर तरस सके.
क्रांतिकारी सुखदेव राज के बाद ये दूसरे क्रांतिकारी थे, जिन्होंने छत्तीसगढ़ को गले लगाया था. सुखदेवराज ने तो अंतिम सांस भी 5 जुलाई 1973 को दुर्ग के अण्डा गाँव में कुष्ठ रोगियों की सेवा करते हुए ली और उनकी प्रतिमा भी यहाँ स्थापित है, पर आज़ाद के इस कामरेड सेनापति की यादें भी कहीं खो गयी हैं.
विश्वनाथ वैशम्पायन ने रायपुर के दैनिक ‘महाकौशल’ में आठ वर्ष काम किया. इस शहर के कुछ पुराने लोग क्रांतिकारी और शहीद चंद्रशेखर आज़ाद के इस साथी की चर्चा करते रहे होंगे. कभी कुछ छपा भी होगा पर इस देश, उस वक़्त के मध्य प्रदेश और आठ साल जिस रायपुर शहर में उन्होंने पत्रकार के तौर पर गुज़ारे, उन्हें कितना याद रखा?
विश्वनाथ वैशम्पायन चंद्रशेखर आज़ाद के सबसे विश्वस्त क्रांतिकारी साथी ही नहीं उनके सिपाही, कामरेड और छोटे भाई थे. ये वो विश्वनाथ वैशम्पायन या आज़ाद के बच्चन हैं जो चंद्रशेखर आज़ाद के हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन’ के सबसे गोपनीय और खतरनाक मिशन में शामिल हुआ करते थे.
ये वो वैशम्पायन थे जो आज़ाद के लिए हथियार जुटाया करते थे, जो भगत सिंह को जेल से छुड़ाने की योजना में शामिल थे, जिनकी बाँहों में भगवती चरण वोहरा ने दम तोड़ा था. इनके लिए सुखदेवराज ने लिखा था ‘वैशम्पायन की गिरफ़्तारी का भैया (आज़ाद) को ज़बरदस्त सदमा पहुंचा. वह उनका विश्वस्त साथी था. से उनका काम सम्हालता था. गुप्त से गुप्त बातों की भी भैया उससे विवेचना कर लेते थे.
हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के क्रांतिकारी सदस्य शचीन्द्र नाथ बख़्शी जिन्हे काकोरी काण्ड में आजीवन कारावास की सजा हुई थी, जब झाँसी में नए क्रांतिकारियों की भर्ती के सिलसिले में वैशम्पायन से मिले तो उनके साहस, सूझ-बूझ और बुद्धि से बहुत प्रभावित हुए. शचीन्द्र नाथ बख़्शी ने वैशम्पायन के लिए लिखा –” इस किशोर बालक में अपनी उम्र से ड्योढ़े उम्र से भी ज़्यादा उम्र के नौजवानों से भी ज़्यादा बुद्धि थी और था अन्तर्निहित साहस जिसका रूप बाहर से दीखता नहीं था, समय पर बहिर्प्रकाश होकर साथियों को चकित कर देता था.”
‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन’ के क्रांतिकारी विचारक और प्रचारक और सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी दुर्गा भाभी के पति भगवती चरण वोहरा के बलिदान के दौरान भी वैशम्पायन ही मौज़ूद थे. 28 मई, 1930 को रावी नदी के किनारे जब भगवती चरण वोहरा बम टेस्ट करते वक़्त शहीद हुए उनके साथ सुखदेव राज के आलावा वैशम्पायन ही साथ थे. बम फटने के बाद घायल भगवती चरण को घने जंगल में पट्टियाँ वैशम्पायन ने ही बाँधी थीं, और उनके सामने ही भगवती चरण वोहरा वीरगति को प्राप्त हुए.
वैशम्पायन आज़ाद के साथ अंत तक थे .वह आज़ाद के सर्वाधिक विश्वस्त सहयोगी के रूप में हमें हर जगह खड़े दिखाई देते हैं, पर उनकी शहादत के कुछ दिन पहले मुख़बिरी के चलते कानपुर के कुली बाज़ार में 11 फरवरी 1931 को पकड़े गए .उन्हें 2 वर्ष के कठिन कारावास का दंड आर्म्स एक्ट में मिला. आजाद की शहादत के वक़्त कानपुर जेल में थेय 14 फरवरी से 3 अप्रेल 1931 तक वे कानपुर जेल में रहे बाद में दिल्ली षड्यंत्र के मुक़दमे में अभियुक्त बनाकर उन्हें दिल्ली भेज दिया गया, पर आज़ाद के शहीद होने से 15 दिन पहले तक ये उनके साथ थे.
वैशम्पायन सन 1939 में ही जेल से रिहा होने के बाद पत्रकारिता से जुड़ चुके थे. ललिता वैशम्पायन ने लिखा है ”उनका विश्वास था कि पत्रकार समाज का प्रतिनिधि एवं जनता का सेवक है .अतः जनता पर अत्याचार करने वालों को उचित दण्ड मिलना चाहिए.” रायपुर के दैनिक महाकौशल में भी वैशम्पायन ने आठ बरसों तक काम किया.
विश्वनाथ वैशम्पायन जी की पत्नी श्रीमती ललिता वैशम्पायन ने यह भी लिखा है ”चीन और पकिस्तान युद्ध के दौरान ये कुछ करना चाहते थे .सेना में बढ़ती उम्र के कारण जा नहीं सकते थे तो अपनी अभिव्यक्त ‘बर्फ़ीली’ नाटक लिख कर किया ‘चट्टानों का गरम लहू’ लिख कर किया. श्रीमती वैशम्पायन ने लिखा ”इनके नाटक का प्रथम प्रयोग रायपुर में महाराष्ट्र नाट्य मंडल द्वारा सुरक्षा कोष के लिए सन 1963 की जनवरी में हुआ था तथा दूसरा प्रयोग धमतरी में शासकीय उच्चतर माध्यमिक कन्या शाला की छात्राओं ने 8 एवं 9 जनवरी 1966 को सुरक्षा कोष के लिए धन जुटाने के लिए किया गया था.”
वैशम्पायन ने अपने सेनापति शहीद चंद्रशेखर आज़ाद की जीवनी, संस्मरण जिसके वे साक्षी रहे, तीन खण्डों में लिख कर अपने ऐतिहासिक दायित्व का निर्वाह किया. वैशम्पायन ने न लिखा होता तो आज़ाद का ये क्रांतिकारी स्वरुप शायद पूरी तरह हमारे सम्मुख न होता. वैशम्पायन अपने क्रांतिकारी जीवन को और भी विस्तार से लिखना चाहते थे वे शहीद क्रांतिकारी भगवती चरण वोहरा पर पूरी किताब लिखना चाहते थे, पर बीस अक्टूबर 1967 को हृदयघात से उनका निधन हो गया.
रायपुर के इतिहास में ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन’ का ये महत्वपूर्ण सितारा चमका और चमक कर कहीं लुप्त हो गया. काश, हम इस नगीने को उनके अंतिम समय तक सहेज कर उनकी यादें, बातें और क्रांतिकारी इतिहास का पूरा विवरण रख पाते, काश, हम ऐसा कर पाते!