कोरोना के नाम पर जो खेल हुए उससे अर्थव्यवस्था बर्बाद हुई. घर की व्यवस्था बर्बाद हुई. बाज़ार बर्बाद हुए. नौकरी गई. महंगाई बढ़ी शरीर गया सो अलग. पर सूखे शरीर में हड्डियां तो हैं न ! जब तक आदमखोर पूंजीवाद इन हड्डियों को भी न चबा ले उसकी भूख शांत नहीं होने वाली. ये साफ़ था कोरोना के लिए कोई दवाई उपलब्ध नहीं है पर महामारी में और इस बड़ी आपदा में न कमाया तो सब कुछ गवाया और पूंजीपति ऐसे सुनहरे अवसर को हाथ से भला कैसे जाने देते. लिहाज़ा दुनिया भर में आम जनता के ग़ोश्त नोचने का बाक़ायदा रोड मैप तैयार किया गया.
इतिहास में पहली बार WHO हर दूसरे दिन बयान बदल- बदल कर कलाबाज़ियाँ खाता दिखा. शुरू में ईमानदार से बताया गया कि कोई स्पेसिफ़िक इलाज नहीं है पर HCQ [ हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन] टेबलेट से कण्ट्रोल किया जा सकता है. HCQ बाज़ार से ग़ायब कालाबाज़ारी शुरू यहाँ तक कि अमरीका की भारत को धमकी HCQ दो वर्ना… ? याद करिये ट्रम्प की धमकी. पर उधर डॉ फॉउसी को पहले ही मलाई नज़र आ गयी थी और उन्होंने ख़ुद को HCQ से अलग कर लिया था और इस पर प्रश्न चिन्ह लगा दिए थे.
इसके बाद पिटारा खुला ‘रेमडेसिविर’ का साथ ही ज़ाहिर हुई डॉ फॉउसी की विशेष दिलचस्पी. अमेरिका के फूड ऐंड ड्रग ऐडमिनिस्ट्रेशन (FDA) ने कोरोना वायरस के इलाज के लिए ऐंटीवायरल ड्रग ‘रेमडेसिविर’ को पूरी तरह से मंजूरी दे दी. पूरी दुनिया को बताया गया ‘रेमडेसिविर’ से अस्पताल में रहने का समय घटता है, बीमारी का बढ़ाव रोकता है, इस तरह के कई दावे सामने आये. कुल मिलकर कोरोना को इससे नियंत्रित कर लिया जायेगा सरीखे दावे सामने आये थे, जबकि हकीकत पहले से ज़ाहिर थी कि ‘रेमडेसिविर’ इबोला के मामले में पहले ही फेल हो चुका है. रेमेडिसविर की बिक्री से पहले 2.5 मिलियन डॉलर की अमरीकी कांग्रेस पर लॉबिंग की खबर थी. ज़ाहिर है कोरोना के नाम पर क्या क्या खेल हुआ.
बहुराष्ट्रीय कंपनी के पास इसके पेटेंट थे हरी झंडी के साथ दुनिया भर में खूब बिका और मरीज को चुभाया गया ‘रेमडेसिविर’. हमारे ही देश में ‘रेमडेसिविर’ के 6 इंजेक्शन कोरोना मरीज को 13440 रुपये में बेचे गए. सोचिये डरे हुए बीमार लोगों से ‘रेमडेसिविर’ के नाम पर कितना मुनाफा काटा गया जबकि ये Covid -19 वायरस पर सीधे काम कर मारे ऐसी दवा नहीं थी और आज WHO ने ‘रेमडेसिविर’ को अनुपयोगी बता कर ख़ारिज कर भी दिया. मतलब जिन मरीजों को ‘रेमडेसिविर’ लगे वो निरर्थक थे ? मतलब ‘रेमडेसिविर’ के नाम पर सिर्फ़ मुनाफ़े का खेल हुआ ? मतलब कोरोना का स्पेसिफ़िक इलाज तो दूर नॉन स्पेसिफ़िक इलाज तक मयस्सर नहीं है ! ज़ाहिर है ‘रेमडेसिविर’ पेटेंटेड है और पेटेंटेड प्रोडक्ट्स जिनकी पेटेंट अवधि समाप्त न हो उनका मुनाफ़ा आसमान को भी पार करता है.
सवाल ये उठता है जब ‘रेमडेसिविर’ कोरोना पर प्रभावी नहीं था तो इसे इतना बड़ा नाम क्यों दिया गया ? सवाल ये उठता है जब HCQ [ हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन] टेबलेट के प्रभावी होने की कुछ रिपोर्ट्स मौजूद थीं तो भी इसे बदनाम क्यों किया गया ? ज़ाहिर है HCQ को जितना बदनाम किया जाता उतना ही बड़ा बाज़ार ‘रेमडेसिविर’ का बनता और ‘रेमडेसिविर’ आपदा में बड़ा अवसर थी. HCQ बिल्कुल नहीं हो सकती थी जबकि 2005 से ‘फौसी’ भी HCQ टेबलेट्स के बारे में जानते थे ,वो जानते थे ये काम करेगी फिर भी ‘ रेमेडिसविर ‘ को प्रमोट किया, क्योंकि वो पेटेंट दायरे से बाहर थी. क्योंकि यदि ‘रेमडेसिविर’ के कोर्स की कीमत 13440 रुपये थी तो HCQ से कोर्स की कीमत सिर्फ़ 100 रुपये से भी कम और पूंजीपति छंटे व्यापारी हैं पादरी तो हैं नहीं ! क्योंकि कोरोना एक को होता है तो परिवार में भी होता है और औसत एक परिवार के 4 लोग ‘रेमडेसिविर’ के 50,000 रुपये से ज़्यादा चुकाएंगे तो HCQ की सिर्फ़ 500 रुपये से भी कम.
चलिए ये भी माना HCQ की भी सीधे भूमिका नहीं पर इससे मरीज की जेब तो नहीं कटती थी कम से कम. दूसरी बात बड़े पैमाने पर स्वस्थ्य विभाग के लोगों ने HCQ टेबलेट को प्रोफिलैक्सिस के तौर पर लेकर लोगों की सेवा की, इसका क्या अनुभव रहा लोगों के सामने रखना चाहिए और FDA ,WHO को बताया चाहिए कि ‘रेमडेसिविर’ ही क्यों ज़रूरी था ? पर कोरोना पर अलग अलग दावों बयानों की वजह से विश्वसनीयता खो रहे WHO पर अब लोग यक़ीन तक करने को तैयार नहीं .’रेमडेसिविर’ पर जिनका भरोसा है उनका मानना है कि ‘ बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ जिस तेवर से वैक्सीन ला रही हैं ये उससे पहले की सफाई मुहीम है ‘ .दूध से जले यहाँ तक कयास लगा रहे हैं कि कल वैक्सीन बिक जाने के बाद आप ‘रेमडेसिविर’ की तरह ही बयान सुनने के लिए तैयार रहें. एक महामारी को लेकर ये है गंभीरता का आलम ! वाकई कोरोना हारे या जीते बहुराष्ट्रीय बड़े निगम जीत चुके जनता थक हार चुकी तालियों थालियों के बीच इसे साफ़ महसूस किया जा सकता है.