सोशल मीडिया पर कंगना को लोग छोड़ रहे. ट्विटर पर अब कंगना के फॉलोवर 3M हैं, जबकि तापसी के बढ़कर 4.5M हो गए. इसी तरह इन्स्टाग्राम पर कंगना के 5 लाख फॉलोवर्स कम हुए हैं. इंस्टाग्राम में कंगना के फॉलोवर 5 लाख घटने के बाद 7.6 M रह गए, जबकि तापसी के बढ़ते हुए 18.3 M हो गए.
पंजाब, दिल्ली में बीजेपी का सूपड़ा साफ़ हो जाता है. असम में बीजेपी के खिलाफ़ नागरिकता कानून ही नहीं जनविरोधी नीतियों की भी वज़ह से तेज़ लहर चल रही है. लेफ़्ट-कांग्रेस की कोलकाता की ब्रिगेड जनसभा नए रिकॉर्ड कायम कर एक बड़ा सन्देश देती है. साथ ही केरल में इस बार बीजेपी अपना वजूद ही कायम रख सके वही उसकी उपलब्धि होगी. इसी तरह तमिलनाडु भी इनसे इसी अंदाज़ में पेश आएगा तस्वीर साफ़ है.
दुनिया में भारत को आजकल को किस तरह देखा जा रहा ये कभी वाशिंगटन टाइम्स से लेकर दुनिया के अख़बारों के सम्पादकीय में दिख जायेगा. आज अमरीका से भारत के गिरते फ्रीडम स्कोर की रिपोर्ट देखिये ,दुनिया में 70 सालों में जो साख कमाई थी नफरती राजनीति की वज़ह से कैसे पल भर में ख़त्म हो गयी.
फ्रीडम हाउस की रैंकिंग में भारत पहले ‘FREE’ कैटेगरी की देशों में था, लेकिन अब भारत की रैंकिंग को अब घटाकर ‘PARTLY FREE’ कैटेगरी में डाल दिया गया है. हर आने वाले दिन के साथ बीजेपी के एजेण्डे जनता के सामने आते जा रहे और जनता ये साफ़ महसूस
कर रही कि अपने दो कॉर्पोरेट दोस्तों के लिए बीजेपी सब कुछ उल्टा पुल्टा करने को तैयार है.
किसानों का महासंघर्ष चौथे महीने में प्रवेश कर चुका. किसानों के साथ खड़ा देश जो बोल रहा ,लिख रहा उसे पढ़ने -सुनने की फ़ुर्सत कहाँ ! वर्ना, समझते कि जनता ने धैर्य टूटने के बाद किसी को नहीं बख्शा है.
पंजाब के 109 म्युनिसिपल निकायों की कुल 1815 सीटों में बीजेपी सिर्फ़ 38 जीत पायी .किसान आंदोलन की व्यापकता इस बात से ज़ाहिर है कि बीजेपी को खड़े करने के लिए उम्मीदवार नहीं मिल रहे थे. ये वही पंजाब है जिसका अकाली दल बीजेपी का कट्टर दोस्त रहा और इसके नेता को ‘नेल्सन मंडेला ‘ के नाम तक से नवाजते रहे.
उत्तर प्रदेश जिसे बीजेपी गुजरात बनाना चाहती है, पर इन दिनों पश्चिमी उत्तरप्रदेश कि महापंचायतें देखें तो लगता है उत्तरप्रदेश को कहीं ये किसान आंदोलन पंजाब न बना दे. संजीव बालियान का ऐसा विरोध हुआ कि एक तरफ़ पूरे ग्रामीण दूसरी तरफ़ संजीव के साथ शासकीय -अशासकीय सेना !!
जिस हरियाणा में बड़े उपद्रव हुए वो किसान आंदोलन में शामिल होने के बाद पंजाब के साथ जिस तरह कदमताल कर रहा ,ऐसी एकजुटता कभी न देखी गयी .अभूतपूर्व सभाओं रैलियों ,संघर्षों से आये दिन सरकार हिलती नज़र आती है .सरकार खुलकर कोई सभा तक करने की स्थिति में नहीं है.
हाल में ही सयुंक्त किसान मोर्चा के 6 फरवरी के चक्का जाम में देश में 600 से ज़्यादा जिलों के 3000 केंद्रों में लाखों किसान आंदोलनरत रहे. तीन काले कानून की वापसी का आंदोलन आगे बढ़ता हुआ नवउदारवादी नीतियों से कॉर्पोरेट घरानों के सीधे फायदा पहुंचाने के खिलाफ खड़ा होता जा रहा है. सबसे बड़ा बदलाव आया कि अलग अलग जातियों क्षेत्रों में बंटे किसान जो एक दूसरे के खिलाफ होते थे. अब मिलकर परिवर्तन कि लड़ाई लड़ रहे हैं .जैसे जैसे किसानों के आंदोलन के दिन बढ़ते जा रहे हैं वैसे -वैसे कई बड़े परिवर्तन साफ़ नज़र आ रहे हैं.
ज़ाहिर है ऐसे परिवर्तनों का अंत एक दिन सत्ता परिवर्तन के रूप में ही होता है. अंत की शुरुवात की अलग -अलग झलकियाँ दिखाई दे रही हैं. जनता की लिखी इबारतों को जब-जब नजरअंदाज़ किया गया. तब-तब एक नया इतिहास रचा गया .सड़क पर रचा जा रहा इतिहास तो दिख रहा हैं ,चुनाव में कैसा इतिहास रचा जायेगा ये देखना बाक़ी हैं पर बदलाव की आहटें तो साफ़ साफ़ सुनाई दे रही हैं.