रायपुर। छत्तीसगढ़ के पावन भुइँया दाई कौशल्या का धाम है. माता कौशल्या की यह भूमि भगवान राम का ननिहाल है. पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक श्रीराम ने वनवास के 12 वर्ष इसी धरा पर बीताए थे. उत्तर से लेकर दक्षिण तक श्रीराम के प्रमाण मिलते हैं. माना यह भी जाता है कि लव-कुश का जन्म भी इसी धरा में हुआ. सप्त ऋषियों की भी तपस्थली यही छत्तीसगढ़ ही रहा. ऐसे धार्मिक-आधात्यामिक-पौराणिक पवित्र प्रदेश में राम वनगमन मार्ग को चिन्हित कर उसे विकसित करने का काम शुरू किया भूपेश सरकार ने.

माता कौशल्या धाम चंदखुरी से आगाज हुआ

चंदखुरी को भगवान राम की माता कौशल्या का जन्मस्थली माना जाता है. चंदखुरी में विश्व का एक मात्रा कौशल्या मंदिर है. इस मंदिर को भव्य मंदिर में बदलने का काम किया है भूपेश सरकार ने. मंदिर का पुनर्निर्माण का पूरा हो गया है. चंदखुरी को समृद्ध करने की दिशा में एक शानदार पहल भूपेश सरकार ने किया है. इसके साथ ही सरकार प्रदेश के उन 51 स्थानों को भी विकसित कर रही है, जहाँ भगवान राम अपने वनवासकाल के दौरान रुके थे.

दरअसल भगवान राम छत्तीसगढ़ के कण-कण, जन-जन में समाहित हैं. जंगल हो या बस्ती या हो बस्ती में रहने वाले लोग. हर कहीं श्रीराम के निशान मिल जाते हैं. कोरिया जिले से प्रभु श्रीराम का प्रवेश माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ छत्तीसगढ़ में होता है. छत्तीसगढ़ में प्रवेश के साथ भगवान राम प्रदेश के सघन वनों में वनवास के सर्वाधिक 12 वर्ष गुजारते हैं. कोरिया से सरगुजा, रायगढ़, जांजगीर, बिलासपुर, बलौदाबाजार, रायपुर, धमतरी, कांकेर, बस्तर, दंतेवाड़ा, सुकमा जिले तक उन्होंने वनवास के काल बीताए हैं.

15 करोड़ में माता कौशल्या धाम का भव्य पुनर्निर्माण

राम वनगमन के इन्हीं मार्गों को राज्य सरकार विकसित कर रही है. शुरुआत चंदखुरी सहित पहले चरण में 8 स्थानों के साथ हुई है. सबसे पहले चंदखुरी जो कि माता कौशल्या की जन्मभूमि है को विकसित किया गया. नवरात्र पर्व के मौके पर 7 अक्टूबर को तीन दिवसीय भव्य कार्यक्रम के साथ मंदिर का लोकार्पण हुआ.

माता कौशल्या माता मंदिर के पुनर्निर्माण और सौंदर्यीकरण में 14 करोड़ 45 लाख रुपये खर्च किया गया है. मंदिर को वैश्विक पर्यटन का स्वरूप दिया गया है. मंदिर परिसर में भव्य गेट, तालाब का सौंदर्यीकरण, आकर्षक पथ निर्माण, मंदिर के चारों ओर उद्यान, भगवान विष्णु और माँ लक्ष्मी की भव्य प्रतिमा, समुद्ध मंथन के दृश्य को मोहक रूप दिया गया है. मंदिर परिसर में भगवान राम की आकर्षक 51 फीट ऊँची प्रतिमा भी स्थापित की गई.

133 करोड़ 55 लाख में 2260 किलोमीटर राम वनगमन पर्यटन परिपथ

धर्मस्व एवं पर्यटन मंत्रालय की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक राम वनगमन पर्यटन परिपथ की शुरुआत कोरिया जिले से होती है. कोरिया से लेकर सुकमा तक कदम-कदम पर भगवान श्रीराम के दर्शन होंगे और उनसे जुड़ी महत्व की कथाएं देखने और सुनने को मिलेंगी. राम वन गमन पर्यटन परिपथ परियोजना में सीतामढ़ी हरचौका (कोरिया), रामगढ़ (सरगुजा), शिवरीनारायण (जांजगीर-चांपा), तुरतुरिया (बलौदाबाजार), चंदखुरी (रायपुर), राजिम (गरियाबंद), सिहावा सप्तऋषि आश्रम (धमतरी), जगदलपुर (बस्तर) और रामाराम (सुकमा) का 133 करोड़ 55 लाख रुपए की लागत से पर्यटन की दृष्टि से विकास का कार्य किया जा रहा है. इस पर्यटन परिपथ के माध्यम से राज्य में न केवल ग्रामीण पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि पर्यटन के नए वैश्विक अवसर बढ़ेंगे.

हमारे रग-रग में हैं श्रीराम- भूपेश बघेल

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का कहना है कि भगवान श्रीराम का छत्तीसगढ़ से बड़ा गहरा नाता है. भगवान श्रीराम हम छत्तीसगढ़ियों के जीवन और मन में रचे बसे हैं. सोते-जागते, एक-दूसरे का अभिवादन करते, सुख हो अथवा दुख हर पल हम छत्तीसगढ़िया लोग भगवान श्रीराम का सुमिरन करते हैं. हम छत्तीसगढ़िया लोग, भगवान श्रीराम को माता कौशल्या के राम, भांचा राम, वनवासी राम, शबरी के स्नेही और दयालु राम के रूप में जानते और मानते हैं.

मुख्यमंत्री यह भी बताते हैं कि श्रीराम का छत्तीसगढ़ के जन जीवन, लोक संस्कृति, लोक गीत में गहरा प्रभाव देखने और सुनने को मिलता है. माता कौशल्या से मिले संस्कार और छत्तीसगढ़ में ग्रामीणों, वनवासियों और किसानों के साथ बिताई अवधि ने उनके व्यक्तित्व को इतनी ऊंचाई दी कि भगवान श्रीराम मर्यादा पुरूषोत्तम कहलाए.

राम मानस मंडली को बढ़ावा

समूचा छत्तीसगढ़ राम मय है. गाँव-गाँव में यहाँ राम कथा का वाचन और गायन होता है. प्रदेश में ‘नवधा रमयान’ का आयोजन गाँव-गाँव में होता है. गाँव-गाँव में मानस मंडली होते हैं. जन्मोत्सव कार्यक्रम में भी रामायण कराने की परंपरा है. इसी परंपरा तकनीक के इस युग बचाए रखने के लिए, मानस मंडलियों को बड़ा मंच और अवसर देने के लिए सरकार ने योजना की शुरुआत की है. योजना का नाम है रामचरित मानस मंडली प्रतियोगिता है. इसके साथ गाँव स्तर, तहसील स्तर पर, जिला स्तर पर और राज्य स्तर पर प्रतियोगिताएं कराई जाएगी.

छत्तीसगढ़ की प्राचीन संस्कृति एवं परंपरा को किया जा संरक्षित

भूपेश सरकार राज्य निर्माण के बाद भी उपेक्षित रही छत्तीसगढ़ की प्राचीन संस्कृति को संरक्षित करने का काम शुरू किया है. आदिम संस्कृतियों को सहेजने के साथ पुनर्स्थापित करने काम किया जा रहा है. प्रचीन संस्कृति एवं परंपरा को बढ़ाने की दिशा में सरकार काफी सजग नजर आती है. बस्तर की देवगुड़ी परंपरा को समृद्ध करने काम सरकार ने किया है.

सिरपुर स्थित पुरातात्विक बौद्ध स्थल से लेकर बस्तर अंचल में आदिवासियों की संस्कृति एवं परंपरा से जुडे़ घोटुल और देवगुड़ियों के विकास के लिए काम किए जा रहे हैं. संस्कृति यहां की परंपरा, यहां के धार्मिक, पुरातात्विक महत्व के स्थल, पर्यटन स्थल, सरगुजा के रामगढ़ स्थित पांच हजार वर्ष पूर्व की प्राचीन नाट्यशाला को विश्व पटल पर लाने का प्रयास जारी है. मां बम्लेश्वरी की नगरी डोंगरगढ़ के साथ तमाम धार्मिक एवं पुरातात्विक महत्व के स्थलों को सुन्दर बनाने पर काम हो रहा है.