रायपुर। किसी भी देश की बुनियाद उसके नागरिक होते हैं और अच्छे नागरिक वही बनते हैं, जिनके बचपन की बुनियाद मजबूत हो. वो स्वस्थ हों, शिक्षित हों. पश्चिमी देशों की तरह देश में भी कुपोषण एक बड़ी समस्या है. कुपोषण के खिलाफ चल रही जंग में देश को अगर साथ मिला है तो वो है यूनिसेफ का. बावजूद कई राज्य ऐसे हैं जहां कुपोषण एक बड़ी समस्या अभी भी बना हुआ है. अपनी भौगोलिक परिस्थितियों, अशिक्षा, गरीबी और नक्सल समस्याओं की वजह से छत्तीसगढ़ भी उन सबसे ज्यादा कुपोषित राज्यों में से एक रहा है.

इन विपरीत परिस्थितियों से लड़ने के लिए अगर आवश्यकता थी तो वह थी मजबूत इच्छा शक्ति, इरादे और संवेदनशीलता की. इसी संवेदनशीलता का ही परिणाम है जब सूबे के मुखिया भूपेश बघेल ने भविष्य के छत्तीसगढ़ को सिर झुकाकर अपने नौ निहालों के स्वास्थ्य के लिए चिंतित देखा तो सूबे में सुपोषण एक मिशन बन गया, और प्रदेश में शुरुआत हुई एक नए मिशन की, वह मिशन था छत्तीसगढ़ के गर्व का, अपने नौनिहालों को स्वस्थ और सुपोषित बनाने का, वह मिशन ‘मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान’ था.

इस अभियान के तहत सरकार महिला एवं बाल विकास विभाग के तहत आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के जरिये घर-घर पहुंचने लगी और बच्चों को सुपोषित आहार प्रदान किया जाने लगा. सरकार को इन चुनौतियों से लोहा लेते हुए अभी साल भर भी गुजरे नहीं हुआ था कि कोरोना महामारी का संकट सामने आ खड़ा हुआ. परिवहन के सारे साधन बंद कर दिये गए और देश में लॉकडाउन लगा दिया गया.

ऐसे में अन्य राज्यों में रह रहे छत्तीसगढ़ियों के अलावा अन्य राज्य के लोग भी अपने राज्यों की ओर लौटने लगे. अपने छोटे-छोटे बच्चों और महिलाओं के साथ पैदल मीलों-हजारों किलोमीटर की दूरी तय करते लोग छत्तीसगढ़ पहुंचे. लोगों के साथ ही उनके बच्चों के मुरझाए चेहरे थे. देश में इन्हें प्रवासी नाम दिया गया। सूबे के हर जिले में इनके ठहरने का इंतजाम किया गया.

लॉकडाउन में सूबे के बच्चों के साथ ही देश के अन्य राज्यों से आ रहे बच्चों को कुपोषण से दूर रखना सबसे बड़ी चुनौती थी. इस चुनौती को स्वीकार करते हुए सूबे की भूपेश सरकार ने अपनी जवाबदेही निभाते हुए घर-घर एक-एक बच्चे तक सुपोषित आहार पहुंचाने की रुपरेखा खींची. इसी का नतीजा था कि कोरोना काल में जहां देश के अन्य राज्यों में कुपोषण की दर तेजी से बढ़ी वहीं छ्तीसगढ़ में कुपोषण को मात मिलने लगी.

उदाहरण के तौर पर दुर्ग जिले के पाटन ब्लॉक स्थित इन दो गांवों गुजरा और बटरेल हैं, जो कुपोषण से पूर्ण मुक्त हो चुके हैं. मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान के अंतर्गत यह बड़ी सफलता मिली है. कोरोना काल में दिक्कतों के बावजूद महिला एवं बाल विकास विभाग के संकल्पबद्ध कार्यकर्ताओं ने यह लक्ष्य प्राप्त किया है. यह बेहद मुश्किल लक्ष्य है क्योंकि स्वास्थ्यगत परिस्थिति के चलते कोई न कोई बच्चा कुपोषण के दायरे में आ ही जाता है ऐसे में संपूर्ण सुपोषण के लक्ष्य को प्राप्त करना बड़ी सफलता है.

मुख्यमंत्री सुपोषण मिशन के अंतर्गत गुजरा ग्राम पंचायत के 6 आंगनबाड़ी केंद्रों के 150 बच्चों में 16 बच्चे कुपोषित चिन्हांकित किये गए थे. मिशन के अंतर्गत लगातार इन बच्चों की बेहतर फीडिंग की गई और नतीजा सामने आया है. पिछले हफ्ते मटिया ग्राम की एकमात्र कुपोषित बच्ची क्षमा भी कुपोषण के दायरे से बाहर आ गई. गुजरा गांव दो महीने पहले ही कुपोषण के दायरे से बाहर आ गया था. इसी प्रकार बटरेल में अक्टूबर 2019 में 177 बच्चों में से 5 कुपोषित थे। अभी यहाँ 230 बच्चे हैं और एक भी कुपोषित नहीं है.

जिला कार्यक्रम अधिकारी विपिन जैन ने बताया कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की मंशानुरूप कलेक्टर डॉ. सर्वेश्वर नरेंद्र भुरे के मार्गदर्शन में मुख्यमंत्री सुपोषण मिशन के अंतर्गत कुपोषित बच्चों को कुपोषण के दायरे से बाहर निकालने का कार्य निरंतर जारी है. इसे ट्रैक करने के लिए सुपोषण साफ्टवेयर भी दुर्ग जिले में बनाया गया है. प्रथम फेस के लिए 11 हजार कुपोषित बच्चे चयनित किए गए थे. इसमें से लगभग 3600 कुपोषण की श्रेणी से बाहर आ गए थे. दूसरे चरण के बाद लगभग छह हजार बच्चे कुपोषण के दायरे में हैं जिन्हें सुपोषित करने निरंतर कार्य किया जा रहा है.

इस तरह कदम दर कदम पहुँचे मंजिल पर

कुपोषण मुक्ति का लक्ष्य लेकर आंगनबाड़ी कार्यकर्ता घर-घर गृह भेंट के लिए पहुँचे. कार्यकर्ता लता नायर ने बताया कि हमने गृह भेंट के दौरान लोगों को बताया कि बच्चों को कुपोषण से बचाने बीच-बीच में खिलाना बेहद आवश्यक है. नारियल तेल के साथ रोटी देने की सलाह दी गई। पहले बच्चों के आहार में केवल चावल शामिल था, हमने रोटी की भी आदत की. खाने में मुनगा और भाजियों का समावेश किया। हमने अपनी आंगनबाड़ी में मुनगा भी रोपा.

महिला पुलिस वालंटियर की ली मदद

लोगों को कुपोषण मुक्ति के लिए प्रेरित करने अभिनव पहल महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा की गई. पाटन ब्लॉक के परियोजना अधिकारी सुमीत गंडेचा ने बताया कि महिला पुलिस वालंटियर की सहायता भी ली गई. वालंटियर शाम के भोजन के समय बच्चों के परिजनों से मिलने रोज पहुँचे. इससे नियमित रूप से बच्चों का आहार रूटीन में आ गया.

गृह भेंट की फोटो व्हाटसएप ग्रुप पर

कार्यकर्ताओं के हर दिन गृह भेंट का शेड्यूल तय किया गया. इसके फोटोग्राफ कार्यकर्ताओं को सुपरवाइजर को देने थे और इस तरह से जिला कार्यक्रम अधिकारी द्वारा सभी कार्यकर्ताओं की मानिटरिंग की गई. कार्यकर्ताओं ने इसमें फीडबैक भी शेयर किये और व्हाटसएप ग्रुप्स के माध्यम से उन्हें सलाह दी गई. गुजरा केंद्र की सुपरवाइजर समता सिंह ने बताया कि हर दिन यह फोटो उच्चाधिकारियों को शेयर किये जाते हैं.

सरपंच और जनप्रतिनिधियों ने भी लगाया जोर

ग्राम पंचायत गुजरा में सरपंच एवं अन्य जनप्रतिनिधियों तथा ग्रामीणों ने भी मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान को सफल करने पर पूरा जोर लगाया. ग्राम गुजरा में यह लक्ष्य पूरा प्राप्त कर लिया गया था. मटिया में केवल क्षमा इस दायरे से बाहर थी. क्षमा को भी सुपोषित करने पूरा जोर लगाया गया. अब क्षमा भी कुपोषण के दायरे से बाहर है.