फीचर स्टोरी। छत्तीसगढ़ राज्य की आर्थिक निर्भरता खेती आधारित है. राज्य की उन्नति और प्रगति का मुख्य आधार खेती ही है. वजह राज्य में ग्रामीण आबादी का 70 फीसदी से अधिक होना है. वजह है 70 फीसदी आबादी का मुख्य कार्य खेती का होना. लिहाजा खेती-किसानी की पृष्ठभूमि से आने वाले मुख्यमंत्री भूपेश बघेल इस दिशा में लगातार सकरात्मक कदम उठाते जा रहे हैं. उन्होंने सत्ता संभालने के साथ ही कर्जा माफी कर किसानों को राहत देने, किसानों की दशा सुधारने की शुरुआत की थी. बतौर ढाई सालों में मुख्यमंत्री ने किसानों को जहाँ कर्जा मुक्ति दिलाई, तो वहीं 25 सौ रुपये धान का देकर उन्हें समृद्ध करने का काम भी किया.

इसी दिशा में मुख्यमंत्री कई प्रयोग भी कर रहे हैं. नवीन सोच, नवीन तकनीक और खेती में कई नवाचारों के साथ वे राज्य के किसानों को और उन्नतशील बनाने में लगे हैं. यह महज खबर के लिहाज से या तारीफ में कही जा रही बातें नहीं है. इन बातों के पीछे पर्याप्त आधार है. इस आधार को समझाने हम इस स्पेशल स्टोरी में आपको मुख्यमंत्री के उस फैसले के बारे में बताने जा रहे हैं, जिससे राज्य में एक नई व्यवासायिक खेती क्रांति आने वाली है.

बात मछलीपालन खेती की हो रही है. जी हाँ मछलीपालन भी अब खेती करना है. भूपेश सरकार ने मछलीपालन को खेती का दर्जा देकर इस व्यवसाय जुड़े हजारों व्यवासायी किसान परिवार को लाभांवित करने का काम किया है. मुख्यमंत्री ने बीते 20 जुलाई को कैबिनेट की बैठक में यह निर्णय लिया कि राज्य में मछली पालन को आज से कृषि का दर्जा दिया जाता है.

क्या होगा इससे फायदा

मुख्यमंत्री के इस फैसले मछुआरों को क्या फायदा होगा ? यह सवाल सजह रूप से हर किसी के मन में आ सकता है. इसका जवाब भी है. सरकार के इस फैसले से मछुआरों को मत्स्य पालन के लिए किसानों के समान ही ब्याज रहित ऋण दिया जाएगा. इसके साथ ही जलकर और विद्युत शुल्क में भी छूट का लाभ मिलेगा. अन्य कई योजनाओं का लाभ मछली पालकों को दिया जाएगा. सरकारी आकड़ों के मुताबिक सरकार के इस कदम से मछली पालन से जुड़े 2 लाख 20 हजार लोगों की स्थिति में सकारात्मक बदलाव आएगा.
बता दें कि राज्य में मत्स्य पालन के लिए अभी मछुआरों को एक प्रतिशत ब्याज पर एक लाख तक तथा 3 प्रतिशत ब्याज पर अधिकतम 3 लाख रुपए तक ऋण मिलता था. इस क्षेत्र को कृषि का दर्जा मिलने से अब मत्स्य पालन से जुड़े लोग सहकारी समितियों से अब अपनी जरूरत के अनुसार शून्य प्रतिशत ब्याज पर सहजता से ऋण प्राप्त कर सकेंगे. किसानों की भांति अब मत्स्य पालकों एवं मछुआरों को क्रेडिट कार्ड की सुविधा मिलेगी.

मछलीपालकों को अब फ्री मिलेगा

मछलीपालन को खेती का दर्जा मिलने का बड़ा फायदा मछलीपालकों अब मिलेगा. यह फायदा जुड़ा है पानी के शुल्क से. दरअसल किसानों को अब पानी का शुल्क नहीं देना पड़ेगा. खेती का दर्जा मिलने से पूर्व तक राज्य में मछली पालन के लिए किसानों को जो पानी दिया जाता है, उसके लिए उन्हें प्रति 10 हजार घन फीट 4 रुपये देने पड़ते थे. अब यह शुल्क उन्हें देने की जरूरत नहीं है. बता दें कि राज्य में मछली पालन के लिए 30 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई बांधों एवं जलाशयों से नहर के माध्यम से जलापूर्ति आवश्यकता पड़ती थी, जिसके लिए मत्स्य कृषकों एवं मछुआरों को प्रति 10 हजार घन फीट पानी के बदले 4 रूपए का शुल्क अदा करना पड़ता था, जो अब उन्हें फ्री में मिलेगा.

बिजली दर में भी छूट

इसके साथ ही मत्स्य पालक कृषकों एवं मछुआरों को प्रति यूनिट 4.40 रुपए की दर से विद्युत शुल्क भी अदा नहीं करना होगा. सरकार के इस फैसले से मत्स्य उत्पादन की लागत में प्रति किलो लगभग 10 रुपए की कमी आएगी, जिसका सीधा लाभ मत्स्य पालन व्यवसाय से जुड़े लोगों को मिलेगा. इससे उनकी आमदनी में इजाफा होगा और उनकी माली हालत बेहतर होगी.

मछली उत्पादन में अग्रणी राज्य की ओर

राज्य में मत्स्य कृषकों मछुआरों को सरकार द्वारा दी जा रही सहूलियतों का ही यह परिणाम है कि छत्तीसगढ़ राज्य मत्स्य बीज उत्पादन एवं मत्स्य उत्पादन में देश में छठवें स्थान पर है. मछली पालन को कृषि का दर्जा मिलने से राज्य 6 वें पायदान से ऊपर की ओर अग्रसर होगा और मत्स्य पालन के क्षेत्र में देश का अग्रणी राज्य बनेगा, इसकी उम्मीद बढ़ गई है. राज्य में वर्तमान में 93 हजार 698 जलाशय और तालाब विद्यमान हैं, जिनका जल क्षेत्र एक लाख 92 हजार हेक्टेयर है.इसमें से 81 हजार 616 जलाशयों एवं तालाबों का एक लाख 81 हजार 200 हेक्टेयर जल क्षेत्र मछली पालन के अंतर्गत है, जो कुल उपलब्ध जल क्षेत्र का 94 प्रतिशत है.

मत्स्य बीज उत्पादन के मामले में छत्तीसगढ़ राज्य न सिर्फ आत्मनिर्भर है, बल्कि यहां से मत्स्य बीज की आपूर्ति पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश महाराष्ट्र आंध्र प्रदेश उड़ीसा और बिहार को होती है.

छत्तीसगढ़ राज्य में वर्तमान में 288 करोड़ मत्स्य बीज फ्राई तथा 5.77 लाख मैट्रिक टन मछली का उत्पादन प्रतिवर्ष होता है. राज्य की मत्स्य उत्पादकता प्रति हेक्टेयर 3.682 मीटरिक टन है, जो राष्ट्रीय उत्पादकता 3.250 मीटरिक टन से लगभग 0.432 मीटरिक टन अधिक है.

केज कल्चर को बढ़ावा

छत्तीसगढ़ राज्य में मत्स्य उत्पादन में उत्तरोत्तर वृद्धि के लिए अब केज कल्चर को तेजी से बढ़ावा दिया जा रहा है. राज्य में अब तक 2386 केज स्थापित किए जा चुके हैं. कोरबा जिले के हसदेव बांगो जलाशय में 1000 केज की स्थापना की जा रही है. इस तकनीकी में जलाशयों में 6 बाई 4 बाई 4 मीटर में केज स्थापित कर तीव्र बढ़वार वाली मछली जैसे पंगेसिएश एवं तिलापिया प्रजाति का पालन किया जाता है, जिससे प्रति केज 3 मेट्रिक टन से अधिक मत्स्य उत्पादन होता है.

ढाई साल में 9 प्रतिशत की उल्लेखनीय वृद्धि

छत्तीसगढ़ में मछलीपालन का व्यवसाय तेजी फूल-फल रहा है. सरकारी आँकड़े बताते हैं कि बीते ढाई साल में 9 प्रतिशत की उल्लेखनीय वृद्धि हुई है. जानकारी के मुताबिक राज्य में ढाई सालों में मत्स्य बीज उत्पादन के मामले में 13 प्रतिशत और मत्स्य उत्पादन में 9 प्रतिशत की उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है.

यह तब की स्थिति है जब मछलीपालन को खेती का दर्जा नहीं मिला था. अब जब इसे खेती का दर्जा मिल गया है तो प्रबल संभावना है कि मछली उत्पादन में वृद्धि और तेजी से होगी.

अनुदान, सहायता के साथ बीते ढाई साल में ये हुआ

लैंडलॉक प्रदेश होने के कारण राज्य के मत्स्य कृषकों एवं मछुआ समूहों द्वारा स्वयं की भूमि पर बड़ी संख्या में तालाबों का निर्माण कराकर मत्स्य पालन करना, मत्स्य क्षेत्र के विस्तार का अच्छा संकेत है.

बीते ढाई सालों में सरकार की मदद से लगभग एक हजार नवीन तालाबों का निर्माण मत्स्य पालन के उद्देश्य से हुआ है.

सरकार इसके लिए सामान्य वर्ग के मत्स्य कृषकों को अधिकतम 4.40 लाख रुपए तथा अनुसूचित जाति जनजाति एवं महिला वर्ग के हितग्राहियों को 6.60 लाख रुपए की अनुदान सहायता तालाब निर्माण और मत्स्य आहार के लिए देती है.

छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा मत्स्य पालन क्षेत्र को संवर्धित करने के उद्देश्य से मछुआरों को मछुआ दुर्घटना बीमा का कवरेज भी प्रदान करती है.

बीमित मत्स्य कृषक की मृत्यु पर 5 लाख रूपए की दावा राशि का भुगतान किया जाता है.

बीमारी के इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती होने पर 25 हजार रुपये तक के इलाज की सुविधा का प्रावधान है.
मछुआ सहकारी समितियों को मत्स्य पालन के लिए जाल, मत्स्य बीज एवं आहार के लिए 3 सालों में 3 लाख रुपए तक की सहायता दी जाती है.
बायोफ्लॉक तकनीकी से मत्स्य पालन को बढ़ावा देने के लिए मत्स्य कृषकों को 7.50 लाख रुपए की इकाई लागत पर 40 प्रतिशत की अनुदान सहायता दिए जाने का प्रावधान है.

नवीन नीति और कार्ययोजना

राज्य में मत्स्य पालन को बढ़ावा देने और मत्स्य कृषकों मछुआरों को सहूलियत देने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा नवीन मछली पालन नीति तैयार की जा रही है.

इसके लिए कृषि एवं जल संसाधन मंत्री श्री रविंद्र चौबे की अध्यक्षता में गठित समिति ने मछुआरों को उत्पादकता बोनस दिए जाने, ऐसे एनीकट जिनका क्षेत्रफल 20 हेक्टेयर तक है, उसे स्थानीय मछुआरों के निःशुल्क मत्स्याखेट के लिए सुरक्षित रखने तथा मछुआ जाति के लोगों की सहकारी समिति को सर्वोच्च प्राथमिकता के आधार पर जलाशयों को मछली पालन के लिए पट्टे पर देने की सिफारिश की है.