फीचर स्टोरी । कोरोना संकट में ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाए रखने के लिए भूपेश सरकार ने महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना(मनरेगा) के बेहतर क्रियान्वयन पर विशेष जोर दिया है. सरकार ने तय किया कि ग्रामीण मजदूरों को संकट से उबारने, गाँवों की आर्थिक दशा को चलायमान रखने लिए मनरेगा के कार्यों को जारी रखना होगा. लिहाजा मुख्यमंत्री भूपेश बघेल स्वयं इसे लेकर बेहद गंभीर दिखे हैं. उन्होंने पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री टीएस सिंहदेव के साथ समीक्षा बैठकें की है. तय हुआ कि मनरेगा के अधिक से अधिक काम गाँवों में कराई जाए. ऐसा हुआ भी यही वजह है कि आज छत्तीसगढ़ देश में मनरेगा के क्रियान्वयन में नंबर बना है. देश भर में सर्वाधिक कार्य प्रदेश में हुआ है. वहीं सरकार ने यह भी तय किया कि संकट के समय में ग्रामीणों को नगद भुगतान की व्यवस्था की जाए. क्योंकि लॉकडाउन की स्थिति में बैंकों तक मजदूरों का पहुँच पाना संभव ही नहीं. ऐसी स्थिति में सरकार ने कार्यस्थल तक बैंक को पहुँचा दिया. सरकार के इस अहम निर्णय के बाद ‘बैंक सखी’ के माध्यम से अब मजदूरों को तत्काल और नगद भुगतान किया जा रहा है. एक ऐसा बैंक जो मजदूरों को पैसा देने खुद उन तक पहुँच रहा है.
मनरेगा मजदूरों के कार्यस्थल पर ही पहुंचा बैंक
राज्य सरकार की पहल पर अब मनरेगा मजदूरों के कार्य स्थल पर ही बैंक पहुंच गया है. प्रदेश के गांवों में मनरेगा अंतर्गत कार्य कर रहे मजदूरों को बीसी सखी (बैंक करेसपॉन्डेट) और डीजी-पेय (डिजीटल पेमेण्ट) सखी के द्वारा कार्यस्थल पर ही उनके खाते से मजदूरी राशि का नगद भुगतान किया जा रहा है. इससे मनरेगा मजदूरों को खाते से पैसे निकालने हेतु बैंको में लंबी लाइन की जरूरत नहीं पड़ रही है. इससे मजदूरों के समय के साथ बैंक आने-जाने में लगने वाले पैसों की भी बचत हो रही है. साथ ही घर पहुंच बैंकिंग सुविधा से बैंकों में अनावश्यक भीड़ रोकने में सफलता मिली है.
मजदूरों ने बताया कि पहले उन्हें मजदूरी की राशि निकालने के लिए अपने गांव से दूर बैंक जाना पड़ता था. बैंको में राशि आहरण करने के लिए उन्हें घंटों भीड़ में लंबी-लंबी लाइनों में खड़ा होना पड़ता था. अब सुविधाजनक रूप से कार्यस्थल पर मनरेगा मजदूरी भुगतान से हम सभी अत्यंत खुश हैं. इससे बैंक आने जाने में लगने वाले समय के साथ पैसों की भी बचत हो रही है. कलेक्टर और पंचायत सीईओ के मार्गदर्शन में बैक सखियों द्वारा हितग्राहियों को उनकी आवश्यकतानुसार पेंशन भुगतान, मनरेगा मजदूरी भुगतान, राशि निकासी और जमा, बैंक खाता खोलने सहित अन्य योजनाओं के तहत उनके खाते मे सीधे अन्तरित होने वाली राशियों का नगद भुगतान किया जा रहा है. इससे बैंको में कोरोना संक्रमण के दौरान भीड़ कम होने के साथ लॉकडाउन के दौर में लोगों को बैंक पहुंचने मे हो रही दिक्कतों से राहत मिली है.
बेमेतरा जिले के रजकुड़ी संकुल अंतर्गत ग्राम खिलौरा की अस्थिबाधित दिव्यांग डीजी-पेय सखी बिंदा यादव ने केवल 18 दिनों में 46 हजार 100 रूपए का ट्रान्जेक्शन कर लोगों के समक्ष मिसाल पेश की है. लॉकडाउन में कर्मठता से काम कर रही बैंक सखियों का उत्साहवर्धन भी प्रशासन द्वारा किया जा रहा है. बैंक सखी मोतिम साहू द्वारा पेंशन, मनरेगा मजदूरी, हितग्राही मूलक योजनाओं की कुल 1 लाख 75000 रू. का जन-जन तक पहुच कर नगद भुगतान करने पर जिला कलेक्टर ने टैबलेट प्रदान कर सम्मानित किया है.
इसी तरह से सरगुजा जिले में मनरेगा और राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (बिहान) के अभिसरण से बैंक सखियों द्वारा मजदूरों को मनरेगा कार्यस्थल पर ही मजदूरी की राशि का भुगतान किया जा रहा है. लॉकडाउन अवधि में बैंक सखियों के द्वारा गांव-गांव जाकर 7 करोड़ 50 लाख रूपए का भुगतान किया गया है. जिले में मनरेगा के तहत 25 करोड़ 84 लाख रूपए लागत के एक हजार 926 कार्य स्वीकृत किए गए हैं, जिसमें एक लाख 8 हजार मजदूर कार्यरत् हैं. इन कार्यों में मुख्यतः जल संरक्षण एवं जल संवर्धन, कृषि सिंचाई से संबंधित कार्य चल रहे हैं। कोविड-19 के संक्रमण से बचाव के लिए सभी कार्य स्थलों पर सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क, साबुन, सैनिटाइजर के उपयोग के साथ कार्य किया जा रहा है.
हितग्राहियों के आजीविका संवर्धन के साथ ही ग्रामीणों को रोजगार
ये कहानी है कबीरधाम जिले के फिरतू की. फिरतू की बाड़ी में कूप (कुआं) निर्माण का काम चल रहा है. पंडरिया विकासखण्ड के पोलमी पंचायत में रहने वाले फिरतू की मांग पर एक लाख 90 हजार रूपए की लागत से सिंचाई के लिए कुआं खोदा जा रहा है. अन्य ग्रामीणों के साथ उनके परिवार के लोग भी इसमें काम कर रहे हैं. कुएं का काम शुरू होने के बाद से अब तक इसमें 180 मानव दिवस रोजगार का सृजन हो चुका है. फिरतू के परिवार के चारों सदस्यों ने भी इस दौरान 96 मानव दिवस काम कर 17 हजार 088 रूपए की मजदूरी प्राप्त की है. लॉक-डाउन में मनरेगा के तहत बन रहे इस कुएं ने फिरतू के साथ चार और परिवारों को सीधे रोजगार उपलब्ध कराया है.
इसी तरह की एक और कहानी कबीरधाम जिले के बोड़ला विकासखण्ड के समनापुर निवासी गौतर सिंह की भी है. गौतर सिंह के खेत में भी सिंचाई के लिए डबरी निर्माण का काम चल रहा है. मनरेगा के अंतर्गत इस काम के लिए एक लाख 24 हजार रूपए मंजूर किए गए हैं. इसमें अभी तक गांव के 60 परिवारों को पांच सप्ताह का रोजगार मिल चुका है. कोविड-19 के चलते लागू लॉक-डाउन के बीच हितग्राही गौतर सिंह के आजीविका संवर्धन के लिए बन रहे इस डबरी से 721 मानव दिवस रोजगार सृजित हुआ है. इसमें काम करने वाले श्रमिकों को एक लाख 10 हजार 146 रूपए की मजदूरी मिली है. गौतर सिंह के परिवार ने भी अपने खेत में निर्माणाधीन डबरी में 38 दिन काम किया है. इसकी मजदूरी के रूप में परिवार को 7220 रूपए मिले हैं.
कार्यस्थल पर सामाजिक-शारीरिक दूरी बनाए रखने दो पालियों में काम
कबीरधाम जिले के ढोलबज्जा ग्राम पंचायत ने कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाव के साथ ही ज्यादा से ज्यादा ग्रामीणों को रोजगार देने दो पालियों में काम का रास्ता निकाला. यहाँ मनरेगा के अंतर्गत स्वीकृत तालाब गहरीकरण का कार्य श्रमिकों ने दो पालियों में काम कर पूर्ण किया. सुबह पाली में रोज 60 मजदूर और शाम की पाली में 50 अन्य मजदूर काम करने आते थे. करीब माह भर चले इस कार्य में सुबह की पाली में 35 महिला एवं 25 पुरूष तथा शाम की पाली में 23 महिला एवं 27 पुरूष श्रमिकों ने काम किया.
बता दें कि कबीरधाम जिले के बोड़ला विकासखण्ड का ढोलबज्जा पंचायत आदिवासी बाहुल्य है. यहाँ विशेष पिछड़ी जनजाति बैगा परिवारों की संख्या बहुतायत में है. लॉक-डाउन के दौर में मनरेगा के तहत चार लाख रूपए से अधिक की लागत से वहां के बगीचा तालाब के गहरीकरण का कार्य मंजूर होने पर गांववालों ने आपसी सलाह-मशविरा से दो पालियो में काम का रास्ता निकाला. इससे जहां कोविड-19 के संक्रमण से बचाव के लिए कार्यस्थल पर एक-दूसरे से सुरक्षित शारीरिक दूरी बनाए रखने में मदद मिली, वहीं इस काम में ज्यादा से ज्यादा लोगों को रोजगार का मौका मिला. सामाजिक और शारीरिक दूरी बनाकर काम करने के साथ ही ग्रामीणों ने हाथ धुलाई तथा मास्क या कपड़े से मुंह ढंककर काम करने के दिशा-निर्देशों का भी पालन किया. ढोलबज्जा में करीब माह भर चले तालाब गहरीकरण के काम में दो हजार मानव दिवस रोजगार का सृजन हुआ. इसमें काम करने वाले श्रमिकों को अब तक तीन लाख 72 हजार रूपए से अधिक का मजदूरी भुगतान किया जा चुका है. इस कार्य से रोजगार की मांग करने वाले गांव के 92 परिवारों को माह भर काम मिला. इनमें विशेष पिछड़ी बैगा जनजाति के 75 परिवार भी शामिल हैं.
अप्रैल महीने में 20 लाख लोग को सीधे रोजगार, 548 करोड़ से अधिक का भुगतान
राज्य सरकार की ओर से मई की शुरुआत सप्ताह में मनरेगा के कार्य-योजना को लेकर जारी की गई रिपोर्ट के मुताबिक अप्रैल महीने में ही 20 लाख लोगों को सीधे रोजगार मनरेगा के जरिए मिला है. वहीं 548 करोड़ से अधिक का भुगतान किया गया है. सरकारी आँकड़ों के मुताबिक 10 लाख 24 हजार मनरेगा जॉब कार्ड धारी परिवारों को एक करोड़ 23 लाख से अधिक मानव दिवस का रोजगार उपलब्ध कराया गया है.
सरकारी आँकड़े यह बताते हैं कि कोरोना संकट के बीच ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुचारू रूप से संचालित रखने में, मजबूत रखने में, मजदूरों के बीच आर्थिक संकट को दूर रखने में भूपेश सरकार सूझ-बूझ के साथ काम किया है. यही वजह है कि लॉकडाउन के बीच जहाँ अनेक जगहों पर ज़िंदगी बेपटरी हो रही चली है, वहाँ छत्तीसगढ़ में ग्रामीण मजदूरों की ज़िंदगी बिना रुके दौड़ रही है, सँवर रही है. सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि आज ग्रामीणों के पास नगदी की समस्या नहीं है. सरकार सखी बैंक के माध्यम से नगद संकट को दूर करने का सबसे अच्छा और बेहतर काम किया है.
मनरेगा के तहत रोजगार पाने वाले मजदूर यही कह रहे हैं-
गाँव-गँवई म भूपेश सरकार करत कमाल हे। छत्तीसगढ़ म तो सब ठीक हे, बता तुँहर राज म का हाल हे ।।