फीचर स्टोरी। सरकार की जब नीयत साफ हो, मंशा स्पष्ट और नीति कारगर तो योजनाएं अवश्य साकार होती हैं. छत्तीसगढ़ में भी यह सब देखने को मिल रहा है. जहाँ भूपेश सरकार की नीयत, नीति और मंशा सबकुछ साफ और स्पष्ट है. सरकार बुनियाद को मजबूत कर, गाँवों में उपल्बध संसाधनों के माध्यम से गढ़बो नवा छत्तीसगढ़ के नारे को साकार करती हुई नजर आ रही है.

भूपेश सरकार की योजनाएं किस तरह से साकार हो रही है. इसे मुख्यमंत्री खुद हितग्राहियों के बीच जाकर देख कर रहे हैं. हिताग्राहियों से मिल रहे हैं, उनसे बात कर उनके आत्मनिर्भर बनने, आर्थिक रूप से सशक्त बनने की कहानी को सुन रहे हैं.

खास तौर पर सरकार ने ग्रामीण महिलाओं को स्वरोजगार से जोड़ने का काम किया है. नतीजा ये रहा है कि आज बस्तर की दुरस्त अँचलों में रहने वाली आदिवासी महिलाएं भी अनेक तरह के कार्यों से जुड़कर स्वरोजगार को प्राप्त कर रही हैं. फिर चाहे वह गौठान में संचालित योजनाएं हो या फिर स्थानीय संसाधनों की उपलब्धता के साथ आगे बढ़ने का काम हो. या खेती ही क्यों न हो.

बस्तर की ऐसी ही तीन सच्ची कहानियों को हम यहाँ पर बता रहे हैं. जिन्हें पढ़कर आप जान पाएंगे कि किस तरह से बस्तर की आदिवासी महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही हैं, आर्थिक रूप से स्वालंबी बन रही हैं. स्वयं रोजगार को प्राप्त कर दूसरों को रोजगार दे रही हैं.


माँ दंतेश्वरी और मणिकंचन महिला स्व-सहायता समूह : गौठान संचालन के साथ खाद निर्माण और मुर्गी पालन 

जिस तस्वीर को आप यहाँ देख रहे हैं. यह अभी बीते कुछ दिनों पहले की तस्वीर है. बीजापुर की माँ दंतेश्वरी महिला स्व-सहायता समूह की यह महिलाएं राज्य सरकार की सुराजी योजना के तहत गौठान जहाँ संचालन करती है, वहीं गौठान में क्रियान्वयित नरवा-घुरवा-बारी के जरिए अनेक तरह के कार्यों के माध्यम से स्वरोजागर को प्राप्त कर रही हैं.

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जब बीजापुर के दौरे पर पहुँचे तो उन्होंने माँ दंतेश्वरी महिला स्व-सहायता समूह की सदस्यों से मुलाकात की. मुख्यमंत्री समूह की महिलाओं से मिलकर बेहद खुश हुएं. उन्होंने बेहद खुशी हुई की महिलाएं स्वयं गौठान का संचालन कर रही हैं. उन्होंने समूह की महिलाओं से उनके काम-काज की जानकारी भी ली.

समूह की सदस्यों ने बताया कि यहां आवारा पशुओं को रखने के लिए गौठान का निर्माण किया गया है. यहाँ पर गौठान संबंधित सभी तरह के कार्यों की जिम्मेदारी वे खुद निभा रही हैं. पशुओं की देखभाल से लेकर चारा-पानी तक और दुध उत्पादन और विक्रय तक.  महिलाओं ने यह भी बताया कि गौठान में बायो गैस प्लांट भी बनाया गया है, इससे ईंधन की पर्याप्त उपलब्धता हो रही है. इससे उच्च गुणवत्ता का खाद भी तैयार हो रही है. उन्होंने बताया कि यहां वर्मी कम्पोस्ट का भी उत्पादन किया जा रहा है. गौठान में अब तक करीब तीन सौ क्विंटल वर्मी कम्पोस्ट का उत्पादन किया गया है, जिसमें से 33 हजार रुपए की वर्मी कम्पोस्ट खाद बेची गई है.

गौठान में देशी मुर्गा का पालन कर रही मणिकंचन महिला स्वसहायता समूह के सदस्यों ने बताया कि देशी मुर्गों की अच्छी मांग के कारण इसके पालन के लिए प्रेरित हुई हैं. उन्होंने बताया कि वे यहां मशरुम उत्पादन भी कर रही हैं.

मुख्यमंत्री ने आत्मनिर्भरता की राह पर आगे बढ़ रही महिलाओं के आत्मविश्वास को देखकर प्रसन्नता जताई और कहा कि गरीबों के समृद्ध होने का सपना साकार होते देखकर खुशी हो रही है. उन्होंने महिलाओं को इन आर्थिक गतिविधियों के माध्यम से परिवार को खुशहाल बनाने की शुभकामनाएं दी.


अबूझमाड़ की झाड़ू से देश की राजधानी दिल्ली हो रही चकाचक

मुख्यमंत्री जिस झाड़ू को हाथ उठाए हुए नजर आ रहे हैं यह अबूझमाड़ की झाड़ू है. यह झाड़ू सामान्य झाड़ू से अलग और खास है. यही वजह है कि इसकी मांग देश की राजधानी दिल्ली सहित कई राज्यों में है. क्यों है और क्या खासियत अबूझमाड़ की झाड़ू में यही जानने के लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल इन महिलाओं के बीच फूलझाड़ू प्रोसेसिंग केंद्र पहुँचे थे.

यहाँ वन विभाग की ओर से फूलझाड़ू प्रोसेसिंग केंद्र संचालित की जा रही है. जहाँ बड़ी संख्या में माड़ की आदिवासी महिलाओं को रोजगार मिला है. या यह भी कह सकते हैं कि माड़ की मेहनतकश महिलाएं इसका संचालन कर रही हैं.

मुख्यमंत्री ने महिलाओं से फूलझाड़ू के लिए कच्चे माल, मिलने वाली मजदूरी आदि के बारे में भी जानकारी ली. मुख्यमंत्री को महिलाओं ने बताया कि उनके द्वारा तैयार की गई फूलझाड़ू से छत्तीसगढ़ के अलावा 45 हजार फूलझाड़ू देश की राजधानी दिल्ली भेजी गई. माड़ की झाड़ू का योगदान देश की राजधानी दिल्ली को भी चकाचक करने में हो रहा है.

वन विभाग के अधिकारियों ने बताया कि वर्ष 2019-20 में फूलझाड़ू निर्माण परियोजना अंतर्गत 315.45 क्विंटल कच्चा माल संग्रहण किया गया, जिसका 9.46 लाख रूपये का भुगतान संग्राहकों को किया गया. प्रसंस्करण केन्द्र के माध्यम से स्व-सहायता समूह की महिलाओं को 2.29 लाख रूपये की मजदूरी एवं 3.81 लाख लाभांश का भुगतान भी किया गया. इसी तरह वित्तीय वर्ष 2020-21 में राज्य शासन की एमएसपी के तहत 249.10 क्विंटल कच्चा माल फूलझाड़ू तैयार करने के लिए संग्रहित किया गया, जिसके लिए संग्राहकों को 12.45 लाख रूपये का भुगतान किया गया है.

बासमती की खुशबू से महकता बीजापुर 

जिस किसान को इस तस्वीर में आप पर देख रहे हैं यह बीजापुर के भैरमगढ़ जनपद के कोडोली गाँव निवासी नरहर नेताम की है. नेताम बीजापुर सहित पूरे बस्तर में प्रगतिशील किसान के तौर पर अब जाने जाते हैं. नरहर नेताम बासमती की खेतों के लिए प्रसिद्ध हो चुके हैं. नरहर के खतों से निकली बासमती की खुशबू से बीजापुर ही नहीं पूरा बस्तर महक रहा है.

नरहर एक प्रगतिशील किसान इसलिए बन पाया क्योंकि सरकार की कई योजनाएं उसके लिए बेहद कारगर सिद्ध हुई हैं. योजनाओं के जमीन पर बेहतर क्रियान्वयन का परिणाम यह रहा कि आज नरहर ने खेती को ही रोजगार का एक बड़ा माध्यम बना लिया है.

दरअसल कोडोली जलाशय से नहर लाइनिंग कार्य (तालाब क्रमांक -1 व 2 से) में कुल 1,800 मीटर लम्बाई की सी.सी. लाइनिंग कर सिंचाई व्यवस्था पुनर्स्थापित की गई है. महज एक साल के अंदर ही इन कार्यों के सुखद परिणाम देखने को मिल रहे हैं. यह परियोजना क्षेत्र में नरहर जैसे किसानों के जीवन में खुशहाली की छटा बिखेर रही है.

सिंचाई के बेहतर साधन के साथ कोडोली में नरहर ने 7 एकड़ में खेती को विकसित किया और उन्नतशील किसान बनने की ओर आगे बढ़े. नरहर कहता है कि नहर में पानी के बाद उसके जैसे कितने ही किसानों के लिए सिंचाई वरदान साबित हो रहा है. पहले गाँव में कच्ची नहर थी.  जब भी किसी किसान को पानी की जरूरत होती थी, तो वह नहर के किनारों को काटकर अपने खेतों की सिंचाई कर लेता था. इसके कारण जलाशय के समीप के ही कुछ खेतों को पानी मिल पाता था. वहीं नहर कच्ची होने के कारण, उसमें गाद भरने के साथ-साथ झाड़ियां भी उग आती थी. इन सब कारणों से गांव के अंतिम छोर के किसानों तक नहर का पानी नहीं पहुँच पा रहा था. लेकिन अब पहले जैसे हालात नहीं, अब सब कुछ बदल गया है. अब सब अच्छा है.

नरहर कहता है कि नहर लाइनिंग के बाद मिली सिंचाई सुविधा के बाद उन्होंने खरीफ़ फसल के रूप में 4 एकड़ में बासमती और 3 एकड़ में महेश्वरी किस्म की धान की बुआई की थी, जो अब पककर घर आ चुकी है. इस बार पिछले वर्षों की तुलना में धान की फसल अच्छी हुई है. ऐसा अनुमान है कि बासमती का 50-55 क्विंटल और माहेश्वरी का 20-25 क्विंटल धान का उत्पादन हुआ है.

खरीफ़ फसल के बाद नरहर अब दोहरी फसल की तैयारी में लग गए हैं. तीन साल बाद उन्होंने अपने एक एकड़ खेत में भुट्टा, आधा एकड़ में चना-सरसों और आधा एकड़ में खरबूजे की बुआई की है. इनकी मेहनत और महात्मा गांधी नरेगा योजना के साथ जिला खनिज न्यास निधि के अभिसरण से विकसित हुई सिंचाई सुविधा के फलस्वरूप आने वाले कुछ महीनों में भैरमगढ़, कोडोली, मिरतुर और नेलसनार के बाजारों में इनके उत्पाद नज़र आएंगे.

योजना से प्रत्यक्ष लाभ

सरकारी आँकड़ें के मुताबिक नरहर नेताम के परिवार को महात्मा गांधी नरेगा अंतर्गत वर्षः 2019-20 में 80 दिनों के रोजगार के लिए 14,080.00 रुपये एवं चालू वित्तीय वर्षः 2020-21 में 105 दिनों के रोजगार के लिए 19,950.00 रुपये की मजदूरी का भुगतान किया गया है.