फीचर स्टोरी. छत्तीसगढ़ की पहचान है ‘धान’. राज्य को धान की अधिक उत्पादकता के लिए धान का कटोरा कहा जाता है. लेकिन अब धान के साथ-साथ राज्य की पहचान फल और सब्जी उत्पादक राज्य के तौर भी देश में बनने लगी है. भूपेश सरकार ने अब राज्य में सब्जी और फल की खेती को बढ़ावा देने का काम शुरू किया है. सरकार फल और सब्जी की खेती करने वाले किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए कई तरह की योजनाओं को संचालित किया है. उद्यानिकी विभाग की ओर से फल और सब्जी की खेती करने वाले किसानों को अनेक तरह की सब्सिडी दी जा रही है. साथ-साथ सुराजी योजना से भी किसानों को जोड़ा जा रहा है. नरवा-गरवा, घुरवा-बारी और गोधन न्याय योजना का भी व्यापक असर फल और सब्जी की खेती करने वाले किसानों पर पड़ा है. फल और सब्जी की खेती कैसे राज्य के किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो रही है इसकी कहानी इस रिपोर्ट में आप पढ़ेंगे. एक सफल कहानी है फल की खेती करने वाली महिला की किसान की, तो दूसरी सफल कहानी है सब्जी की खेती करने वाले भुनेश्वर सिंह की.

पपीता की खेती, सालाना लाखों का आय देती

सफलता की ये कहानी है बेमेतरा जिले में बाराडेरा पंचायत के आश्रित गाँव मुंगेली की है. इस गाँव में फलों की खेती बहुत अधिक नहीं होती. खास तौर पपीता की खेती बड़े पैमाने पर नहीं होती. ज्यादातर गाँव के किसान धान की खेती ही करते हैं. लेकिन गाँव की एक महिला किसान कुंजबाई की कहानी कुछ और ही है.

कुंजबाई बताती हैं कि पहले वह भी अपने खेतों में धान की ही खेती करती थीं. धान की खेती से कमाई तो होती थी, लेकिन उतनी नहीं जितनी फलों की खेती से होने वाली कमाई के बारे में सुन रखी थी. लिहाजा उन्होंने धान से अलग फल की खेती ओर आगे बढ़ने का विचार किया.

धनहा खेत में पपीता की खेती कैसे हो सकती है ? इस बारे में उन्होंने जानकारी जुटानी शुरू की. जानकारी के लिए वो पहुँची बेमेतरा जिला मुख्यालय के उद्यानिकी विभाग और कृषि विज्ञान केंद्र में. मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गांरटी अधिनियम), उद्यानिकी विभाग और कृषि विज्ञान केंद्र के अभिसरण से धान के बदले कुंजबाई ने पपीता की खेती की शुरुआत कर दी.

विभागीय अधिकारियों के मार्गदर्शन में उन्होंने अपने दो एकड़ खेत में पपीते के दो हजार पौधे लगाए. पौधों और अन्य समानों के लिए विभाग ने दो एकड़ खेत में एक लाख 27 हजार रूपए की लागत से पपीता की खेती का प्रस्ताव स्वीकृत किया.

कुंजबाई के खेत में जून-2020 में पपीता उद्यान का काम शुरू हुआ. मनरेगा से भूमि विकास का काम किया गया. इसमें दस मनरेगा मजदूरों को 438 मानव दिवस का रोजगार मिला, जिसके लिए 83 हजार रूपए से अधिक का मजदूरी भुगतान किया गया. कुंजबाई के परिवार को भी इसमें रोजगार मिला और 33 हजार रूपए की मजदूरी प्राप्त हुई.

कुंजबाई और विभागीय अधिकारियों की मेहनत रंग लगाई. भूपेश सरकार की योजना से कुंजबाई की बारी अब लखपति बनने की थी. दो एकड़ में लगाए पपीते पर फल आना शुरू हुआ. कहते हैं सब्र का फल मीठा होता है. कुछ ऐसा ही हुआ कुंजबाई के साथ. खेत-खेत ही सारा फसल बिलासपुर के एक थोक फल विक्रेता ने खरीद लिया. कुंजबाई के खेत में करीब पाँच सौ क्विंटल पपीता का उत्पादन हुआ था. व्यापारी ने आठ रुपये प्रति किलोग्राम की धर से पपीता खरीद है. इस तरह पाँच सौ क्विंटल पपीता के बदले उसे 4 लाख रुपये मिले. पपीते बेचने के लिए कुंजबाई को कहीं बाहर जाने की जरूरत नहीं पड़ी.

वहीं कुंजबाई ने कृषि विशेषज्ञों की सलाह पर पिछले वर्ष पपीता के पौधों के बीच में अंतरवर्ती फसल के रूप में भुट्टा, कोचई और अन्य सब्जियों की भी खेती की. इससे उसे अतिरिक्त कमाई हुई.

कुंजबाई ने इस साल अपने खेतों में छब्बीस सौ पपीते के पौधे लगाए हैं. कुंजबाई को विभाग की ओर से खाद, पौधे, ड्रिप पाइप जैसे कई तरह की सुविधाएं योजना के तहत मिली है. विभिन्न योजनाओं का लाभ लेकर कुंजबाई आज सालाना लाखों रुपये कमा रही हैं. वह गाँव की अब लखपति महिला किसान बन चुकी हैं.

सब्जी की खेती, मुनाफे की खेती

फल की तरह है सब्जी की खेती भी आज फायदेमंद साबित हो चली है. पढ़े-लिखे लोग भी अब बड़े पैमाने पर सब्जी की खेती की ओर बढ़ रहे हैं. यही नहीं राज्य के अनेक ऐसे लोग जिन्होंने सब्जी की खेती को एक बड़े कारोबार में बदल दिया है. राज्य सरकार ने भी सब्जी की खेती करने वालों को विभिन्न योजनाओं से प्रोत्साहित करने का काम कर रही है. इस रिपोर्ट में बात राज्य के एक सफल सब्जी किसान की.

ये कहानी है कोरबा जिले के चौनपुर गाँव के किसान भुनेश्वर सिंह की. भुवनेश्वर सिंह आज सब्जी की खेती से दोगुना तक आय अर्जित कर रहे हैं. भुनेश्वर कहता है कि उन्होंने सब्जी की खेती की शुरुआत दो एकड़ से की थी. दो एकड़ की खेती में उन्होंने अच्छी खासी कमाई कर ली थी. इससे उन्हें काफी हौसला मिला. उन्होंने दो एकड़ से अब दस एकड़ में सब्जी की खेती करना प्रारंभ कर दिया है.

भुनेश्वर सिंह बताते हैं कि उद्यान विभाग के अधिकारियों के मार्गदर्शन, तकनीकी सलाह और प्रोत्साहन से उन्होंने शुरू में दो एकड़ रकबे में सब्जी की खेती की. शासकीय योजनाओं के तहत उन्हें बरबट्टी, फूलगोभी, पत्तागोभी, टमाटर, करेला, भिण्डी जैसी सब्जियों के बीज मिनी किट मिले. डीएमएफ और अन्य शासकीय योजनाओं के समन्वय से खेत पर फेंसिंग, मल्चिंग और पॉवर स्प्रेयर भी उन्हें दिलाया गया. दो एकड़ में सब्जी की खेती से भुनेश्वर को धान की खेती से ज्यादा फायदा हुआ. अब वे धान की खेती छोड़कर 10 एकड़ खेत में सब्जी की खेती कर रहा है.

वह कहता है कि अब खेत के खेत ही सब्जियाँ बिक जाती है. कहीं बाजार जाने की भी जरूरत ही नहीं. थोक व्यापारी खेत ही सारा माल उठा ले जाते हैं. उन्हें सब्जी की खेती से दो एकड़ में दो लाख रुपये की आय प्राप्त हुई थी. अब 10 एकड़ की खेती में 7 से 8 महीने में 10 लाख रुपये तक की आय हो गई है. अब 4 से 5 लाख और आय होने की संभावना है. साला अब 10 एकड़ में 10 से 12 लाख रुपये की अर्जित कर पा रहे हैं. यह सब भूपेश सरकार की ओर संचालिज की जा रही उद्यानिकी योजनाओं के तहत ही संभव हो पा रहा है.