फीचर स्टोरी। छत्तीसगढ़ के बस्तर को लाल आतंक का गढ़ माना जाता था, जहां सिर्फ बारूदी धमाके और गोलियों की गड़गड़ाहट सुनाई देती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं है. यहां अब भूपेश सरकार के विकास की तूती बोलती है. यहां मछली पालन से किसान करोड़ों कमा रहे हैं. बस्तर के हरे-भरे क्षेत्र में नीली क्रांति से अभूतपूर्व परिवर्तन देखने को मिला है. अति नक्सल प्रभावित क्षेत्र कोयलीबेड़ा की तस्वीर बदलने लगी है. यह इलाका क्लस्टर एप्रोच आधारित मछलीपालन में देश के नक्शे पर खास जगह बना चुका है. पखांजूर इलाके में पांच हजार से अधिक किसान मछली पालन से जुड़े हैं.
प्रदेश के कांकेर जिले के कोयलीबेड़ा विकासखण्ड के तस्वीर बदलने लगी है. इस विकासखण्ड का पखांजूर क्षेत्र मत्स्य उत्पादन के नाम से देश में अपनी एक नई जगह बना रहा है. अब यह क्षेत्र देश में मछली पालन के नक्शे पर जाना पहचाना नाम है. यहां क्लस्टर एप्रोच पर मछली पालन किया जा रहा है. यह संभव हुआ है कि कोयलीबेड़ा विकासखण्ड के पंखाजूर क्षेत्र के किसानों की मेहनत और शासन की योजनाओं के मदद के फलस्वरूप.
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में बीते साढ़े 4 वर्षों में छत्तीसगढ़ हर क्षेत्र में उत्तरोत्तर प्रगति कर रहा है और पूरे देश में छत्तीसगढ़ की एक नई पहचान स्थापित हो रही है. पखांजूर इलाके में मछली पालन से लगभग पांच हजार से अधिक मत्स्य पालक किसान जुड़े हैं. यहां मछली पालन किस वृहद तौर पर किया जा रहा है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इन किसानों के द्वारा मछली बीज, मछलियों के उत्पादन और परिवहन आदि में औसत वार्षिक टर्न ओवर 500 करोड़ रूपए से अधिक का है. इस क्षेत्र में लगभग 19,700 तालाबों, इनमें लगभग 99 प्रतिशत तालाबों में मछली पालन किया जा रहा है.
कृषकों की मदद से मछली पालन
इस क्षेत्र के किसानों ने अपनी मेहनत और हुनर तथा शासन की योजनाओं के फलस्वरूप इस क्षेत्र में क्रांति ला दी. इन परिवारों ने स्थानीय कृषकों की मदद से मछली पालन के काम को आगे बढ़ाया. अब यह कार्य पखांजूर विकासखण्ड के आसपास के गांवों में फैल चुका है. यहां मछली उत्पादन के साथ-साथ मत्स्य बीज का भी उत्पादन हो रहा है. यहां से महाराष्ट्र, उड़ीसा, आंध्रप्रदेश, मध्यप्रदेश, पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश सहित देश के विभिन्न हिस्सों में मछली बीज की सप्लाई की जाती है. अकेले मछली बीज से ही किसानों को करीब 125 करोड़ रूपए की आय होती है.
पखांजूर के बड़ेकापसी गांव की कहानी
पखांजूर के बड़ेकापसी गांव की कहानी और भी उत्साहवर्धक है, आसपास के 5 गांवों में किसान मछली की सामूहिक खेती कर रहे हैं. इन गांवों में मछली पालन के लिए 1700 तालाब बनाए गए हैं, जिनमें 30 हजार मीट्रिक टन मछली का उत्पादन होता है. गांव के लोग बताते हैं कि अब वे परंपरागत खेती-किसानी का काम छोड़कर लोग अब मछली पालन व्यवसाय की ओर बढ़ रहे हैं, क्योकि कम लागत में अधिक मुनाफे का धंधा है. गांवों के उनके कई खेत अब मछली की खेती के लिए तालाब में बदल गए हैं.
पखांजूर क्षेत्र में क्लस्टर एप्रोच में मछली पालन की यह तकनीक किसानों में लगातार लोकप्रिय होते जा रही है. इन गांवों में लगभग 12 हजार 500 हेक्टेयर का जल क्षेत्र मछली पालन के लिए उपलब्ध है. इसके अलावा यहां 27 हेचरी, 45 प्राक्षेत्र, 1623 पोखर, 1132 हेचरी संवर्धन पोखर उपलब्ध हैं. यहां 72 करोड़ मछली बीज का उत्पादन हो रहा है. इनमें से 64 करोड़ मछली बीज देश के विभिन्न राज्यों को भेजा जाता है.
पखांजूर क्षेत्र में आधुनिक तकनीक से मछली पालन करने से यहां लगभग 51000 मीट्रिक टन मत्स्य उत्पादन हो रहा है. यहां प्रति हेक्टेयर जल क्षेत्र मत्स्य उत्पादन 8000 में 12000 मीट्रिक टन मछली का उत्पादन लिया जा रहा है. इसके अलावा यहां 8 करोड़ पगेसियस मत्स्य बीज का उत्पादन भी हो रहा है. पगेसियस मत्स्य बीज केज कल्चर के जरिए मत्स्य पालन के लिए देश के विभिन्न हिस्सों में भेजा जाता है.
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