फीचर स्टोरी. जैसा आपने शीर्षक पढ़ा है. वैसा ही कुछ अब दिखाई पढ़ रहा है. बस्तर के उन हिस्सों में जहाँ नक्सल समस्या अभी भी सबसे बड़ी समस्या है. वहाँ इस समस्या का हल भी अब निकल रहा और वहाँ सुनहरा कल भी दिख रहा है. क्योंकि आदिवासी महिलाएं अब खौफ और आतंक से दूर नई लकीर खींच रही हैं, इलाके की तस्वीर और तकदीर बदल रही हैं.

आज का बस्तर वैसा बस्तर बिल्कुल नहीं जैसा आप दशकों पहले तक देखते रहे हैं और न ही वैसा बस्तर जैसा आज 2018 के पहले तक देखते रहे हैं. आज का बस्तर विकास का बस्तर है. एक नया और बदलाव से भरा बस्तर है. इस बस्तर के अलग-अलग हिस्सों में जहाँ आपको नक्सल समस्या दिखती है, उन्हीं इलाकों में विकास की अब कहिनयाँ भी सुनने को मिलेगी. ऐसे ही बस्तर की एक अच्छी और सच्ची तस्वीर, कहानी यहाँ आपके लिए लेकर आए हैं.

कहानी छिंदगढ़ में धोबनपाल की

यह अच्छी और सच्ची कहानी है बस्तर संभाग में सुकमा जिले के छिंदगढ़ ब्लॉक में धोबनपाल गाँव की. छिंदगढ़ ब्लॉक आज भी नक्सल प्रभावित इलाका है. नक्सलियों की मौजूदगी आज भी अंदरुनी गाँवों में रहती है. लेकिन इस खौफनाक चुनौती के बाद भी सरकार की पहुँच अंदर तक हो रही है. शासन की योजनाओं को प्रशासन अंतिम छोर तक लेकर जा रहा है. सरकार की सुराजी योजना इलाके में सुराज लेकर आ रहा है.

सुराजी योजना से सुराज और नवा बिहान धोबनपाल में जो आज दिखाई देता है उसके पीछे गाँव की महिलाओं का अथक परिश्रम है. गाँव में जब भूपेश सरकार की सुराजी योजना पहुँची, तो जैसे सुराज लेकर पहुँची. बिहान समूह से जुड़ी महिलाओं के सामने अब स्वरोजगार का नया काम था. नई योजना थी तो बहुत कुछ नया करने का अवसर भी. जिला प्रशासन की ओर से बिहान समूह को योजनाओं से संबंधित पूरी जानकारियाँ दी गई.

जिला प्रशासन के द्वारा बिहान समूह की महिलाओं को सुराजी योजना से जोड़कर उन्हें रोजगारमूलक कार्यों के बारे में बताया जा रहा है. सुराजी योजना अंतर्गत मुर्गी पालन, अण्डा उत्पादन, सब्जी उत्पादन, वर्मी खाद आदि. ग्राम धोबनपाल की बाल गणेश स्व-सहायता समूह की महिलाएं, जो कि सुराजी योजना से जुड़ी हैं, वो आज अन्य महिलाओं के लिए मिसाल बन चुकी हैं.

धोबनपाल में इस तरह आया बदलाव

बाल गणेश समूह की प्रमुख राजमणी बताती हैं कि शुरुआत में पारा की महिलाएं समूह से जुड़ने में हिचकिचा रही थी. घर के कामों से इतर कार्यों में समय दे पाने में अधिकतर ने असमर्थता जता दी थी. ऐसे में संबंधित क्षेत्र की पीआरपी बुधमनी की सहायता लेकर गांव की महिलाओं को प्रेरित कर समूह से जोड़ती गई. आज समूह में 10 सदस्य हैं. समूह के बनते ही महिलाओं ने कुछ धनराशि एकत्रित करती गई. वहीं 3 महीने के पश्चात् आरएफ राशि प्राप्त कर महुआ खरीदी-बिक्री का कार्य किया. महुआ व्यवसाय से समूह को 7 हजार का लाभ हुआ.

मसाला तैयार कर आर्थिक उन्नति की ओर अग्रसर

इस आय के साथ धोबनपाल में बदलाव का बयार शुरू हुआ. समूह की महिलाओं ने मसाला कारोबार की ओर कदम बढ़ाया. बाल गणेश समूह ने वर्ष 2020 में मसाला कूटने और पीसने वाली मशीन खरीदी. साप्ताहिक बाजार में होटल का संचालन प्रारंभ किया. मसाला तैयार करने के लिए कच्चा माल जैसे- हल्दी, धनिया, मिर्ची का क्रय किया. इसके साथ ही शुरू हुआ बाजार का सफर. समूह की महिलाओं लगन के साथ काम को आगे बढ़ाया है. कोरोना संक्रमण के काल के दौरान उन्होंने अपने कार्य को गाँव में रखकर जारी रखा. धीरे-धीरे बाजार तक मसाले की खुशबू पहुँची. बाल गणेश का मसाला अब विक्रय के लिए तैयार था. समूह ने पहली शुरुआत मसाला बेचकर 20 हजार रुपये की आय अर्जित कर ली. समूह की ओर से करीब ढाई क्विंटल मसाला विक्रय अब तक किया जा चुका है. वहीं डेढ़ क्विंटल मसाला बनकर तैयार है. राजमणी कहती है कि प्राप्त आय से कारोबार को और गति दिया जा रहा है.

6 महिला समूहों ने आगे बढ़ाया काम

राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन की प्राप्त जानकारी के अनुसार में सुकमा जिले में कुल 6 महिला समूह मसाला उद्योग से जुड़ी है. अन समूहों की ओर से तैयार मसाला आवासीय संस्थानों तक पहुँचाया जा रहा है. समूहों की ओर से 20-20 क्विंटल तक धनिया, हल्दी, मिर्च का मसाला 9 लाख रुपये की आय अर्जित की जा चुकी है.

आवासीय संस्थानों में विक्रय

जिले में आदिम जाति कल्याण विभाग और शिक्षा विभाग के अंतर्गत संचालित होने वाले आश्रम छात्रावासों, पोटाकेबिन सहित ही अन्य आवासीय संस्थानों में बाल गणेश समूह की ओर से तैयार किया गया मसाला इस्तेमाल किया जा रहा है. प्रशासन सभी आवासीय संस्थानों को महिला समूहों की ओर से तैयार किया गया मसाला ही लेने को कहा है. इससे जहाँ समूहों को लगातार काम मिल रहा है, तो वहीं बाजार से आने वाली मिलावट समाग्रियों से छुटकारा.

वहीं अब समूह की महिलाओं लोकल से ग्लोबल बनाने की दिशा में काम किया जा रहा है. प्रशासन की ओर से उन्हें सेल्स और मार्केटिंग में प्रशिक्षित किया जा रहा है. इससे वे शहरों और महानगरों में अपने उत्पादों को विक्रय हेतु उपलब्ध करा सके. रंग रहित शुद्ध मसालों की मांग आज लगातार बनी हुई. सुकमा की महिला समूहों ने आज इसमें अपनी विश्वनीयता बना ली है.

निश्चित ही यह बदलाव नक्सल का हल जैसा है. अगर इसी तरह से अंचल की महिलाएं, स्थानीय लोग सरकार की योजनाओं से जुड़कर, आगे बढ़कर समाज की मुख्यधारा में आती रहेंगी, तो सुकमा या बस्तर के इलाकों की पहचान नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के रूप में नहीं होगी. कहा जा सकता है कि यही सुनहरा कल, यही नक्सल का हल है.