कोई सरकार और उसके मुखिया अपनी अवाम के लिए कैसा काम कर रहे हैं, इसको परखने का एक ही तरीका है कि वो गरीबों और वंचितों का कितना ख्याल रख रहे है। महात्मा गांधी ने सबसे कमज़ोर व्यक्ति को लाभ मिलने का जो सूत्रवाक्य दिया था, उसी सूत्रवाक्य से सत्ता के कामकाज और नीतियों के क्रियान्वयन को सफलता और असफलता की कसौटी पर परखा जा सकता है। संकटकाल में आज हर सत्ता की परख इसी आधार पर हो सकती है कि वो कैसे अपने मज़दूरों, गरीबो और मेहनतकशों के साथ पेश आ रही है। वंचितों के कष्ट और गम को दूर करने के उपाय में कितनी संवेदनशीलता बरत रही है।

राजनीतिक दावों और बयानों से हटकर इस कसौटी पर अपने राज्य छत्तीसगढ़ को भी परखना चाहिए। सरकार के दावे बताते हैं कि सरकार सफल है। विपक्ष सरकार को असफल और केंद्र सरकार को सफल बताने की कोशिश कर रही है। पर ज़मीनी हालात क्या हैं। प्रभावित और गरीब तबके के लोग क्या सोचते हैं – ये ही उसकी सफलता और असफलता की कसौटी हो सकती है।

जब देश भर में प्रवासी श्रमिकों के सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर लौटने की तस्वीरें और कहानियां देशभर से आ रही हैं, मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश जैसे राज्य श्रम कानूनों को खारीज़ कर रहे हैं। उस दौर में भूपेश बघेल का मज़दूरों को गाड़ी में बॉर्डर तक छोड़ने का ऐलान किया। हांलाकि इसके लागू होने की जमीनी हकीकत क्या है, इसको समझना भी ज़रुरी है।

राज्य भर से मज़दूरों से जुड़ी जो तस्वीरें आ रही हैं, उसमें वे अब पैदल चलते नहीं दिख रहे हैं बल्कि ज़्यादातर बसों और ट्रकों में जाते दिख रहे हैं। सरहदी ज़िले सरगुजा के मुख्यालय अम्बिकापुर में ड्यूटी पर तैनात जवान बता रहे हैं कि दो – तीन दिनों से मज़दूर पैदल नही आ रहे हैं बल्कि गाड़ियों में आवाजाही कर रहे हैं। मज़दूरों का जो ग्रुप दिखता भी है वो पैदल एक चौक से दूसरे चौक तक ही गाड़ी बदलने के लिए चलता है। उसके बाद किसी गाड़ी में बैठकर रवाना हो जाता है। इन तस्वीरों और हालात के मद्देनज़र ऊपरी तौर पर लगता है कि राज्य सरकार अब गरीबो को मदद पहुंचाने में कामयाब हो रही है। लेकिन गहराई से इसकी पुष्टि दूसरे राज्य के मज़दूर ही कर सकते हैं। झारखण्ड के बोकारो ज़िले के चंदनक्यारी के रहने वाले 39 साल के नंदलाल छत्तीसगढ़ और झारखंड की बसों से अपने घर पहुंच चुके हैं। नन्दलाल होम करन्टीन है। वे इस बात पर खुश हैं कि पीसीआर टेस्ट में नेगेटिव निकले हैं। वे कहते हैं कि तेलंगाना, महाराष्ट्र छत्तीसगढ़ से होकर घर पहुंचे लेकिन मज़दूरों के लिए जैसा इन्तज़ाम छत्तीसगढ़ में था वैसा कहीं नहीं था। नंदलाल फैक्टरी में काम करने वाले पचास साथियो के साथ 9 मई को रवाना हुए तो उन्हें सर पर कफन बांधकर निकलना पड़ा। तब हज़ारों मज़दूर अपने घर पैदल जाने को मजबूर थे। डर ये भी था कि इतनी दूर जाते-जाते कोरोना न हो जाये। लेकिन घर जाने के अलावा कोई चारा नहीं बचा था। फैक्ट्री मालिक ने काम बंद कर दिया था और कुछ दिनों बाद खाना खिलाने से भी हाथ खड़े कर दिए थे। लेकिन नंदलाल और उनके साथियो की किस्मत अच्छी थी। उन्हें बहुत पैदल नही चलना पड़ा। नन्दलाल बताते हैं कि ट्रकों को हज़ार-बारह सौ देने पड़े लेकिन वे सभी छत्तीसगढ़ पहुंच गए। नंदलाल कहते हैं कि छत्तीसगढ़ में जगह-जगह खाना खिलाया जा रहा था। पानी पिलाया जा रहा था। टाटीबंध पहुंचे तो सरकार ने बाकायदा बसों की व्यवस्था कर रखी थी। किसी भी व्यक्ति को ये उम्मीद नहीं थी इस माहौल में उन्हें सवारी गाड़ी में जाने को मिलेगा। बस से रवाना होने के बाद रास्ते मे भी खाने का इंतज़ाम किया था। वे बार-बार यहां की भूपेश सरकार की तारीफ कर रहे हैं। उनका कहना था कि भूपेश सरकार ने जैसा काम किया है अगर वो अन्य राज्य सरकारें भी कर लेतीं तो किसी मज़दूर को भटकना नहीं पड़ता।नंदलाल को झारखंड में डालटनगंज पहुंचकर करीब 10-20 किलोमीटर चलना भी पड़ा। खाने की भी यहां दिक्कत हुई। वे कहते हैं कि ये दोनों व्यवस्थाएं झारखंड में बेहतर करने की ज़रूरत है।

नंदलाल की तरह कुछ और मज़दूर हैं जो भूपेश बघेल की इस बात को लेकर सराहना कर रहे हैं। गिरिहडीह के लताकी गांव के रहने वाले 25 वर्षीय मोहम्मद नदीम छत्तीसगढ सरकार को धन्यवाद देते हैं। हैदराबाद में फेब्रिकेशन का काम करने गए नदीम का कहना है वे अपने 11 साथियो के साथ निकलकर छत्तीसगढ पहुंचे। यहां तक पहुंचने में उनके 17 से 18 हज़ार खर्च हो गए। क्योंकि सभी लोगों को वे ही हैदराबाद काम के लिए ले गए थे। उनका कहना है कि छत्तीसगढ़ में जो उन्हें सहायता और सुविधायें मिली।उसकी उम्मीद उन्हें नहीं थी। वहां बॉर्डर के बाद बिलासपुर में उनकी स्वास्थ्य जांच हुई। इसके अलावा खाने-पीने का बराबर इन्तज़ाम किया गया। कहीं भी उन्हें भूखा नहीं रहना पड़ा। जबकि उन्हें तेलंगाना, महाराष्ट्र और अपने खुद के राज्य झारखण्ड में खाने की किल्लत हुई। नदीम बताते हैं कि छत्तीसगढ़ के लोगों का व्यवहार भी अच्छा रहा। अधिकारियों ने मुझसे रुकने के लिए व्यवस्था देने की पेशकश की थी।

मजदूरों को कुछ राहत देने की तस्वीर और यहां से जाने वाले मज़दूरों की सुखद यादों से पहले एक और तस्वीर भी आई थी, जिसमें एक सामाजिक कार्यकर्ता मंजीत कौर बल 11 मई को मज़दूरों के साथ अव्यवस्था को लेकर धरने पर बैठ गयी थी। मंजीत कौर बल का कहना है कि घोषणा के बाद पहले दो दिन इसे लागू करने में अधिकारियों ने कोताही बरती। फिर ऐसा क्या हुआ कि व्यवस्था बदल गयी।

दरअसल, मुख्यमंत्री के किसी श्रमिक के राज्य से पैदल न गुजरने के आदेश के बाद भी इसे लागू करने में अधिकारियों ने कोताही बरती। जिससे रायपुर में काफी अव्यवस्था हो गई। इससे नाराज़ सामाजिक कार्यकर्ता मंजीत कौर बल 11 मई की रात को टाटीबंध पर धरने पर बैठ गईं। इसके अगले दिन के हालात पूरी तरह से जुदा थे।

मंजीत कौर का कहना है कि “तीसरे लॉकडाउन में श्रमिको का धैर्य टूट चुका था। लोग पैदल चलकर आ रहे थे, जिसमें महिलाएं और बच्चे भी थे। श्रमिकों के मौत और एक्सीडेंट की खबरें देशभर से आ रही थीं, उस दौर में मुख्यमंत्री का वक्तव्य बेहद महत्वपूर्ण था कि हमारे राज्य से कोई भी श्रमिक पैदल नहीं चलेगा। लेकिन अधिकारी श्रमिकों को ट्रकों में किसी भी तरह से भरकर भेज रहे थे, इसमें उनके सुरक्षा और उनकी मंज़िल तक छोड़ने की कोई गारन्टी नहीं थी। अधिकारियों को जब इसकी जानकारी दी गई तब भी उन्होंने ध्यान नही दिया।”

इसके बाद सांकेतिक विरोध दर्ज कराने के लिए मंजीत कौर रात को ही धरने पर बैठ गयीं। धरना थोड़ी देर बाद खत्म हुआ और व्यवस्था अगले दिन पूरी तरह बदल गयी। टाटीबंध में बसें लग गईं। अधिकारी खुद मुस्तैद हो गए। सामाजिक कार्यकर्ता और विधायक सभी मज़दूरों को खाना खिलाकर रवाना करने की व्यवस्था में जुट गए।

अगले दिन टाटीबंध का जायज़ा लेने के बाद मज़दूरों के लौटने की व्यवस्थाओं पर नज़र बनाकर रखने वाले कांग्रेस के नेता डॉक्टर राकेश गुप्ता ने अपनी फेसबुक पर लिखा-
“निज़ाम-ए-रायपुर इस संकटकाल में कितना मुस्तैद है ये समझने के लिए रायपुर के ट्रांसपोर्ट नगर, टाटीबंध चौक जाना चाहिए . जहां तमाम व्यवस्थाओं के साथ सड़क पर चलने वाले मज़दूर बसों से अपने राज्य भेजे जा रहे हैं। राकेश गुप्ता का कहना है कि संवेदनशील सरकार के मुखिया की इच्छा के अनुरूप (शुरुआती अव्यवस्था के बाद) व्यवस्था को सजग रखने के फरमान के मर्म को समझा गया और व्यवस्था को आज सुबह से चाक-चौबंद किया गया.

देर सुबह के बाद स्थिति यह है कि वहां उपस्थित जनप्रतिनिधि ,सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि और पूरा प्रशासन सजगता के साथ छत्तीसगढ़ की धरती से होकर जाने वाले दूसरे प्रदेशों के मजदूरों को खाना पानी और दूसरी जरूरतें पूरी सजगता और तन्मयता के साथ पूरी कर रहे हैं। मंजीत कौर और उनकी टीम, रायपुर पश्चिम के युवा विधायक विकास उपाध्याय और सदैव सजग लगनशील सिक्ख समाज के सभी कार्यकर्ता टाटीबंध चौक में पैदल और ट्रकों में भरकर आने वाले प्रवासी मजदूरों को ना केवल खाना खिला रहे हैं बल्कि उनकी दूसरी जरूरतें पूरी कर रहे हैं। वहां होकर व्यवस्था प्रशासनिक अधिकारी देख रहे हैं।

सजग सामाजिक कार्यकर्ता संदीप यादव के अनुसार आज मोटे अनुमान से 5000 से ऊपर दूसरे प्रदेशों को जाने वाले प्रवासी और छत्तीसगढ़ के अतिथि मजदूरों को उपलब्ध ट्रांसपोर्ट और स्कूली बसों में प्रदेश की सभी सीमाओं तक ना केवल छोड़ा जा रहा है बल्कि उनके रास्ते में खाने का सामान और बच्चों के लिए दूध और मट्ठे की व्यवस्था भी की गई है।

छत्तीसगढ़ के मजदूरों को उनके गृह जिले तक अलग-अलग अधिग्रहित बसे तो ले जा ही रही हैं प्रवासी अतिथि मजदूरों को वहां उपस्थित मनजीत बल की अगुवाई में उपस्थित सामाजिक कार्यकर्ताओं और लगनशील विधायक विकास उपाध्याय के साथ लगे कार्यकर्ता यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि छत्तीसगढ़ की सीमा पार करने से पहले अगले राज्य के लगने वाले जिले के कलेक्टर और प्रशासन के साथ ही वहां लगी सामाजिक कार्यकर्ताओं की टीम को पूर्व सूचना हो जाए कि अमुक बस नंबर से पहुंचने वाले मजदूरों को आगे किस जिले और साधन से पहुंचाना जरूरी है. पूरी टीम से बस ड्राइवर कंडक्टर और बस में बैठने वाले कुछ मजदूरों के नंबर साझा किए जाते हैं। छोटे बच्चे और महिलाओं के लिए चप्पल सैंडल खाना पूरे 24 घंटे कार्यकर्ताओं द्वारा उपलब्ध कराए जा रहे हैं। कौन क्या दान कर रहा है , इसके नाम से किसी को मतलब नहीं वह तो यह देख रहे हैं आगे जरूरतमंद को पहुंचाने वाले हाथ बहुत विश्वसनीय हैं और सामग्री एक जरूरतमंद के पास जरूर पहुंचेगी.

सरकार आपदा जैसी मुश्किल में वंचित वर्ग और गरीब मजदूरों के साथ खड़ी है, यह हर व्यक्ति महसूस करें। इस मायने में छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल की कांग्रेस सरकार अनूठी है। देश में यह पहला उदाहरण है कि रास्ते चलते न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि प्रवासी मजदूरों की भी फिक्र छत्तीसगढ़ सरकार के मुखिया भूपेश बघेल ने की है । लोगों में आपदा के समय लड़ने के लिए आत्मबल आ जाए तो बड़ी से बड़ी बाधा पार की जा सकती है। आज मजदूरों के बीच जाकर यह महसूस किया गया।”

एक दिन पहले जब हमने अव्यवस्था के खिलाफ धरने पर बैठीं मंजीत कौर से बात की तो उनका मानना था कि धरने के अगले दिन जो अधिकारी अपनी नहीं मुख्यमंत्री जी की मंशानुरूप पहुंचे थे। सीएम ने अव्यवस्था से जुड़ी जानकारी को बहुत ही गंभीरता से फीड बैक के रूप में लिया। उनके द्वारा आईजी से लेकर तमाम अधिकारियों को कहा गया था कि आप लोग मैदान में जाएं और तैयारियों को खुद देखें। इसके बाद अचानक से बदलाव आया हर जिले से बसें चलना शुरू हुईं। स्वास्थ्य शिविर लगे, बसों की संख्या बढ़ गई। महिलाओं के लिए अलग से बसें चलना शुरू हुईं। उन्हें दूध और अंडे बांटा जाने लगा। आरटीओ के द्वारा रोज़ाना 300 के करीब बसों का इन्तज़ाम किया जा रहा है।”

इसी बीच डॉक्टर कांग्रेस के बड़े पदाधिकारी के मोबाइल पर एक सन्देश मुख्यमंत्री के खास अधिकारी आया। जिसमें उन्होंने व्यवस्थाओं को लेकर फीड बैक मांगा था। कांग्रेस के इस पदाधिकारी ने बताया कि सीएम पहले दिन के बदइंतजामी की खबरों से बेहद नाराज़ थे। उन्होंने व्यवस्था को लागू करवाने की रणनीति में बदलाव किया। मज़दूरों के लिए हर तरह की व्यवस्था को लागू करने में ज़िम्मेदारी थाने से लेकर कलेक्टर तक सुनिश्चित की गई। ग्राउंड रिपोर्ट प्रशासनिक अधिकारियों से मंगवाने की बजाय ग्राउंड ज़ीरो पर डटे नेता और सामाजिक कार्यकर्ताओं के हवाले से आने वाली जानकारियों के आधार पर बनवाने को कहा गया। ज़मीन पर काम करने वाले लोगों से समन्वय के लिए कांग्रेस से जुड़े तीन लोगों को ज़िम्मा सौंपा गया।
दरअसल, काम करने का सही तरीका यही होता है फीड बैक के आधार पर खामियों को दूर करते हुए व्यवस्था को चुस्त- दुरुस्त बनाना और अब तक बघेल सरकार ने इसे करती दिख रही है।हालाकिं मज़दूरों को लेकर भूपेश बघेल की चुनौतियाँ यहीं खत्म नहीं हुई है। अभी कई अहम ज़िम्मेदारियाँ निभाने की चुनौती उनकी सरकार के सामने है। इस वक़्त डेढ़ से दो लाख छत्तीसगढ़ के मज़दूर राज्यो से बाहर हैं जिनके लौटने का सिलसिला शुरू हो चुका है। उनमें से कुछ कोरोना संक्रमित हो सकते हैं।अभी बड़ी चुनौती उनसे अन्य लोगों तक संक्रमण फैलने से रोकने का बंदोबस्त करना है। उसके बाद इनके भोजन और रहने की व्यवस्था भी तात्कालिक रूप से सरकार को करनी होगी और इनके हुनर अनुरूप काम उपलब्ध कराना बड़ी चुनौती है। लेकिन भूपेश बघेल सरकार के अब तक के कामकाज उम्मीद तो जगाते ही हैं।