रूपेश गुप्ता रायपुर। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने एक हफ्ते में करीब 50 कांग्रेसियों को अहम जिम्मेदारियां सौंप दी हैं. जिन्होंने   कई साल के संघर्ष में अहम योगदान दिया है. भूपेश बघेल ने संसदीय सचिवों की नियुक्ति में युवाओं को मौका दिया तो बड़ी ही मज़बूती के साथ उऩ कांग्रेसियों को निगम-मडंलों के अहम ओहदों पर बिठाया जिन्होंने 15 साल तक विपक्ष में रहते हुए मज़बूती के साथ पार्टी के लिए काम किया.
जिन हालात में ये नियुक्तियां हुई हैं. उसका कारण राजस्थान और मध्यप्रदेश की स्थिति को बताने की चर्चाएं खूब हैं. लेकिन कांग्रेस की विधानसभा में ताकत को देखते हुए इऩ चर्चाओं में हवाबाज़ी ज़्यादा नज़र आती है. मध्यप्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस मार्जिनल बहुमत के साथ सत्ता में आई है. जबकि छत्तीसगढ़ में तीन चौथाई से ज़्यादा बड़ी बहुमत के साथ भूपेश बघेल काबिज है. ये कहने में किसी तरह का संकोच नहीं है कि जिस तर्ज पर मप्र और राजस्थान में कांग्रेस ने पर्दे के पीछे से खेल खेला, वैसा वो छत्तीसगढ़ में नहीं खेल सकती.
लिहाज़ा इन नियुक्तियों को दूसरे आयामों से भी देखना चाहिए. भूपेश बघेल ने संसदीय सचिवों और निगम-मंडल की नियुक्तियों के साथ उन नेताओं की सत्ता में हिस्सेदारी सुनिश्चित की है. जिन्होंने विपक्ष की राजनीति और चुनाव में पार्टी के लिए अहम योगदान दिया है. इऩ नियुक्तियों में भूपेश बघेल ने बड़ी बाज़ीगरी दिखाई है. उन्होंने अलग-अलग समीकरणों जातिगत समीकरण, क्षेत्रीय समीकरण, गुटीय राजनीति और परफॉर्मेंस के बीच संतुलन स्थापित किया है.
संसदीय सचिवों की नियुक्तियों में भूपेश ने क्षेत्र और जाति के संतुलन को तरजीह दी है. कांग्रेस बंपर जीत के साथ सत्ता पर काबिज हुई थी. लेकिन मंत्रियों की संख्या सीमित रखने की अनिवार्यता के चलते हर क्षेत्र को मंत्रीमंडल में जगह नहीं मिल पायी. कई जिलों से सभी सीटें कांग्रेस ने जीतीं लेकिन वहां से किसी को मंत्रीमंडल में जगह नहीं मिल पाई. संसदीय सचिवों की नियुक्ति में उस कमी को दूर करने की कोशिश की गई है.

संसदीय सचिवों की नियुक्ति में भूपेश बघेल ने उन युवा नेताओं को ज़्यादा मौका दिया है जो राजनीति में छत्तीसगढ़ का भविष्य हो सकते हैं. नियुक्तियों में भूपेश बघेल ने प्रतिद्वंदी माने जाने वाले टीएस सिंहदेव के करीबियों को भी खूब जगह दी. जिसमें से तीन सरगुजा से हैं.
इसी तरह, भूपेश बघेल ने निगम और मंडल की नियुक्तियों में सभी बातें दरकिनार करते हुए उन लोगों को अहम ओहदों पर बिठाया है. जो 15 साल तक कांग्रेस के संघर्ष के साथी रहे हैं. अगर जातिगत रुप से देखें तो इनमें सबसे ज्यादा 8 ब्राह्मण जाति से हैं.
प्रदेश कांग्रेस अध्य़क्ष मोहन मरकाम ने नियुक्तियों से पहले ही बता दिया था कि आगे आने वाली लिस्ट में जातिगत और क्षेत्रवार समीकरणों का ज़्यादा ख्याल रखा जाएगा. लेकिन फिर भी इन नियुक्तियों में 8 ओबीसी, 5 आदिवासी, 2 अनुसूचित जाति और 3 अल्पसंख्यकों समाज को जगह देकर इसे संतुलित करने की कोशिश की गई है. इसी तरीके से क्षेत्रवार देखें तो सत्ता में सबसे सीमित हिस्सेदारी दर्ज कराने वाले संभाग के 14 लोगों को सत्ता में हिस्सा दिया गया है. इसमें रामगोपाल अग्रवाल को भूपेश बघेल ने नान की अहम जिम्मेदारी देकर उनके व्यापारिक अनुभव का लाभ उठाया जाएगा. भूपेश बघेल ने गिरीश देवागंन के साथ अपनी शानदार ट्यूनिंग की वजह से उऩ्हें छत्तीसगढ़ मिनरल ड्वेलपमेंट बोर्ड का अध्यक्ष बनाया है. चूंकि खनिज विभाग खुद उनके पास है. इसी तरह शैलेष नितिन त्रिवेदी को 15 साल तक की उनकी मेहनत और पार्टी के प्रति समर्पण को दखते हुए उन्हें पाठ्य पुस्तक निगम का अहम ओहदा दिया है. मंहत के करीबी सुभाष धुप्पड़ को आरडीए का अध्यक्ष बनाया है. धुप्पड़ से भी उम्मीद है कि वे अपने अनुभवों की वजह से आरडीए को संकट से निकाल लेंगे. कुलदीप जुनेजा को कोरोना काल में अपनी सक्रियता और जनता की सेवा का ईनाम हाऊसिंग बोर्ड के रुप में मिला है. किरणमयी नायक खुद के लिए कोई मंडल या निगम चाहती हैं लेकिन उनकी इमेज और पेशे के अनुकुल उन्हें महिला आयोग दिया गया है. उनके अध्यक्ष बनने से महिलाओं को बेहतर तरीके से इंसाफ मिलने की उम्मीद होगी. करुणा शुक्ला ने जिस अंदाज़ में विधानसभा चुनाव में डॉक्टर रमन सिंह के खिलाफ ताल ठोंका था, उसे देखते हुए उन्हें समाज कल्याण बोर्ड में अध्यक्ष बनाया गया है. सतीश अग्रवाल को विधानसभा में टिकट न दिला पाने की भरपाई की गई है. राजेंद्र तिवारी के अनुभव और अध्ययन को देखते हुए उन्हें खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड का अध्यक्ष बनाया गया है. बेहद ईमानदार और सरल सुरेंद्र शर्मा के अनुभव को देखते हुए राज्य कृषक कल्याण परिषद का अध्यक्ष बनाया गया है.

सरगुजा को मंत्रीमंडल और संसदीय सचिव में पर्याप्त प्रतिनिधित्व पहले से मिला हुआ है जिसे देखते हुए यहां से 4 लोगो को ही लिया गया। टीएस खेमे से 3 लोगों को लिया गया है जबकि अमरजीत खेमे से एक को जगह मिली है. टीएस के लोगों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व देते हुए भूपेश ने उनकी और टीएस के बीच चल रहे द्वंद की अटकलों पर विराम देने की कोशिश की है. निगम-मंडल में टीएस के सबसे करीबी तीन नेताओं को शामिल करके भूपेश ने बढ़िया राजनीतिक सूझबुझ का परिचय दिया है.
बिलासपुर से चार लोगों को निगम मंडल में स्थान मिला है. इसमें महंत रामसुंदर दास का नाम अहम है. जिन्हें गौसेवा आयोग का अध्यक्ष बनाया गया है. दुर्ग से भी चार लोगों को जगह दी गई है. यहां मोतीलाल वोरा के बेटे अरुण वोरा को एडजस्ट वेयर हाऊस कार्पोरेशन में एडजस्ट किया गया है. जबकि बैजनाथ चंद्राकर के सहकारिता की पृष्ठभूमि को देखते हुए एपेक्स बैंक का जिम्मा दिया गया है.
बस्तर में नारायणपुर के विधायक चंदन कश्यप को अनुसूचित जनजाति आयोग का अध्यक्ष बनाया गया है. पार्टी में उनके द्वारा लगातार किए जा रहे योगदान और दिग्गज भाजपा नेता केदार कश्यप को हराने का ईनाम उन्हें मिला है. इसी तरह महेंद्र कर्मा के बेटे छविंद्र कर्मा से विधानसभा चुनाव के समय किया गया वादा कांग्रेस पार्टी ने निभाया है.

( ये लेखक के निजी विचार है )