अहिल्याबाई होलकर ने भारतभर के दर्जनों तीर्थस्थलों पर शिव मंदिरों, घाटों और धर्मशालाओं का निर्माण कराया. आज रानी अहिल्याबाई होलकर की जयंती है. वह महान राजमाता जिन्होंने न केवल शासन व्यवस्था में अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया, बल्कि पूरे भारतवर्ष में सनातन संस्कृति के संरक्षण में अमूल्य योगदान दिया. रानी अहिल्याबाई को विशेष रूप से एक ऐसी शिव भक्त के रूप में याद किया जाता है, जिन्होंने भारत के विभिन्न हिस्सों में फैले प्राचीन शिव मंदिरों का जीर्णोद्धार और पुनर्निर्माण कराया. अहिल्याबाई होलकर को लोग लोकमाता कहकर संबोधित करते थे. सन 1725 में 31 मई के दिन महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के जामखेड कस्बे के ग्राम चांडी में अहिल्याबाई होलकर का जन्म हुआ था.

भारतभर में शिवभक्ति की अमिट छाप
काशी विश्वनाथ मंदिर (वाराणसी), सोमनाथ (गुजरात), ओंकारेश्वर, रामेश्वरम, तिरुपति, द्वारकाधीश और गंगोत्री, प्रयागराज, नासिक जैसे पवित्र तीर्थस्थलों के शिव मंदिरों का जीर्णोद्धार रानी अहिल्याबाई के कर-कमलों से ही हुआ. उनके कार्यों ने भारतीय स्थापत्य और धार्मिक आस्था को नया जीवन दिया.
सबसे अधिक ध्यान मध्यप्रदेश पर
रानी ने पूरे भारत में शिव मंदिरों का कायाकल्प कराया. हिन्दुत्व के स्वाभिमान को जगाने के लिए टूटे हुए मंदिरों को पुर्ननिर्माण कराया और 250 मंदिर बनवाये लेकिन सबसे अधिक मंदिरों का निर्माण और जीर्णोद्धार उन्होंने मध्यप्रदेश में कराया.
महेश्वर, जो उनकी राजधानी थी, आज भी अहिल्याबाई की शिवभक्ति की जीवंत छाप को संजोए हुए है. यहाँ का किला परिसर, अहिल्येश्वर शिव मंदिर, और नर्मदा किनारे बने कई घाट रानी की भक्ति और वास्तुकला दृष्टि के प्रतीक हैं.
इंदौर, जो होलकर वंश की राजधानी बनी, वहाँ भी रानी अहिल्याबाई द्वारा स्थापित और पुनर्निर्मित कई मंदिर हैं. राजवाड़ा के पास स्थित अन्नपूर्णा मंदिर परिसर, भूतनाथ मंदिर, और श्री हरसिद्धि मंदिर उनकी धार्मिक नीति का हिस्सा रहे हैं.
ओंकारेश्वर (खंडवा ज़िला) – द्वादश ज्योतिर्लिंगों में एक, इस मंदिर के विकास में भी रानी अहिल्याबाई का योगदान रहा.
उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर – यद्यपि इसका बड़ा जीर्णोद्धार बाद में हुआ, लेकिन अहिल्याबाई ने यहाँ भी धर्मशालाओं और घाटों का निर्माण कराया था.
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