छत्तीसगढ़ में दूसरे चरण के विधानसभा चुनाव के प्रचार का आखिरी दिन था. मैं मौजूदा मुख्यमंत्री और तब के छत्तीसगढ़ कांग्रेस के अध्यक्ष भूपेश बघेल के साथ उनका आखिरी दिन का प्रचार कवर कर रहा था. सरकार बनाने को लेकर बेहद आश्वस्त भूपेश बघेल अपनी महात्वाकांक्षी नारे – ‘नरवा, गरुआ,घुरवा अऊ बारी’- को समझा रहे थे.

चूंकि मैं गौपालन से जुड़ा हुआ था तो मेरी दिलचस्पी ये जानने में थी कि नरवा गरुवा घुरवा अऊ बारी के नारे के पीछे क्या है. इससे पहले मैंने सोशल मीडिया पर इसे लेकर उनकी पार्टी का कैंपेन देखा था. चर्चा छ़ेड़ने पर मैंने प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल से पूछा कि पुआल या पैरा से मवेशियों का साल भर पेट भर जाएगा ? कुछ देर रुकने के बाद उन्होंने कहा ज़रुरत पड़ी तो साइलेज देंगे.

मुझे ये वाकया इसलिए याद पड़ रहा है क्योंकि अब भूपेश बघेल ने गौठानों के लिए साइलेज की बात कही है. ढाई साल के अपने कार्यकाल में भूपेश बघेल  6000 गौठानें बनवा चुके हैं. गौठानों के लिए हरे चारे उगाए जाने लगे हैं. सरकार ने कलेक्टरों को डीएमएफ फंड से चारागाह को और विकसित करने कहा है. साइलेज और हरा चारा दूध उत्पादन की लागत को कम करता है इसलिए उन्नत नस्ल तैयार करने और दूध उत्पादन बढ़ाने में ये बेहद कारगर है.

साइलेज होता क्या है

एक किस्म का पशु चारा है. जो अनाज वाली फसलों का बनाया जाता है. ये संरक्षित हरा चारा होता है. ये लैक्टोबेसिलस द्वारा ऑक्सीजन रहित किण्वन विधि से बनता है. ये मवेशियों की साल भर हरे चारे की ज़रुरत को पूरा करता है. साइलेज सबसे ज़्यादा ये मक्के से बनाया जाता है. लेकिन ये गेंहू, गन्ने, शकरकंद और सुपर नेपियर से भी बनाया जाता है.

आंध्रप्रदेश और तेलंगाना जैसे राज्यों में पशुपालकों को साइलेज सब्सिडी पर सरकार मुहैया कराती है. पंजाब और हरियाणा में 25 किलो दूध देने वाले मवेशी पाले जाते थे. लेकिन साइलेज के आने के बाद सभी पशुपालक 40 किलो से ज़्यादा दूध देने वाली गायें रखना पंसद करते हैं. साइलेज का इस्तेमाल महाराष्ट्र और गुजरात जैसे राज्यों में तेज़ी से बढ़ा है. छत्तीगसगढ़ में अभी अंबिकापुर, दुर्ग और कोंडागांव में तीन जगहों पर साइलेज का उत्पादन होता है.

एनडीडीबी के आंकड़ों पर गौर करें तो छत्तीसगढ़ उन राज्यों में से एक है जहां प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता सबसे कम है. छत्तीसगढ़ में वर्ष 2018-19 में हर आदमी के हिस्से में रोज़ाना केवल 157 ग्राम दूध रोज़ाना आता था. जबकि पंजाब और हरियाणा में दूध की उपलब्धता 1181 ग्राम और 1087 ग्राम थी. छत्तीसगढ़ से ज़्यादा बेहतर स्थिति में झारखंड और बिहार जैसे अति पिछड़े सक्किम और उत्तराखंड जैसे दुगर्म पहाड़ी राज्य हैं. झारखंड में दूध 177 ग्राम और बिहार में 255 ग्राम हिमाचल में 187 ग्राम और उत्तराखंड में दूध की उपलब्धता 455 ग्राम की है. इसका बड़ा कारण नस्ल सुधार के कार्यक्रम में ढिलाई और हरे चारे की अनुपलब्धता है.

जोगी के तीन साल और बीजेपी सरकार ने 15 साल के कार्यकाल में दूध के उत्पादन को बढ़ाने पर ज़ोर नहीं दिया गया. अपने तीसरे कार्यकाल के आखिरी सालों में रमन सिंह डेयरी उद्यमिता लेकर आए. लेकिन योजना में इसमें टिकाऊ और स्वालंबी बनाने पर कोई ज़ोर नहीं था. जिससे ये योजना बुरी तरह नाकामयाब रही. बीजेपी के देसी प्रेम का खामियाजा नस्ल सुधार कार्यक्रम पर भी पड़ा. रमन सरकार ने बिना किसी प्रामाणिक आधार पर उन्नत विदेशी नस्ल  को हतोत्साहित किया. एचएफ और जर्सी जैसी गाय, जो पीढियों के नस्ल सुधार के बाद हासिल की गई थीं, उनमें एआई वर्कर ने देसी गायों के सीमेन लगवाए. जबकि इन्हीं नस्लों के ज़रिए भारत ने दूध की उत्पादकता को तेजी से बढ़ाया था. इसके बाद रही-सही कसर पशुपालन विभाग ने कर दी जिसने इसे सब्सिडी स्कीम बना दिया.

हालांकि भूपेश बघेल की सरकार गौपालन को लेकर कोई कोई स्कीम लागू नहीं की. लेकिन गोबर खऱीदी शुरु करके गौपालन को संजीवनी दे दी. सरकार ने गौठानों के ज़रिए गायों के लिए चारे और दिन में बैठने का इंतज़ाम भी किया है. अब इन गौठानों में सूखे और हरे चारे का पर्याप्त इंतज़ाम सरकार कर दे तो दूग्ध उत्पादन और नस्ल सुधार का काम तेज़ी से आगे बढ़ेगा और लोगों के लिए दूध की उपब्धता भी बढ़ेगी.

इसका एक उदाहरण सरगुजा के लुंड्रा ब्लॉक में दूध सागर सहकारी समिति है. समिति में शामिल किसान गौठान में गोबर बेच रहे हैं और गौठान से उसके बदले हरा चारा ले रहे हैं. इससे दूध की उत्पादन लागत तेज़ी घट रही है. समिति के कुछ सदस्यों ने आमदनी बढ़ने के बाद अच्छे नस्ल की गायों को लाकर पालना शुरु कर दिया है.

लेकिन ज़्यादातर जगहों पर स्थिति ऐसी नहीं है. ग्रामीण विकास की अवधारणा को समझने वाले ये मानते हैं ‘नरवा गरुवा घुरवा अऊ बारी’ के नारों के साथ शुरु हुई ग्राम सुराजी योजना आईडिया के स्तर पर बहुत शानदार है. लेकिन ये उस तरह लागू नहीं हो पाया जिस तरह ये बना था.

इस योजना का बुनियादी आईडिया गाय को लेकर पैदा होने वाली समस्याएं थीं. अगर गायों को दिन में गौठानों में रोक लिया गया तो जो खेत एक फसल वाले होते हैं. वहां से ज़्यादा फसल लिये जा सकते हैं. लेकिन ज़्यादातर गौठानों में गाय को उसके पालकों ने रखा ही नहीं. क्योंकि ज़्यादातर जगहों पर हमेशा चारा उपलब्ध नहीं रहता. इसके अलावा इलाज और एआई की दूसरी सुविधाएं अब तक गौठानों से पूरी तरह नहीं जोड़ी गई हैं.

ढाई साल में गौठानों में साल भर चारे की आपूर्ति सुनिश्चित करना एक चुनौती बनी हुई है. इसके लिए पहले पैरादान पर ज़ोर दिया गया. उसके बाद पैरा के लिए रीपर की चर्चा भी चली. लेकिन दोनों विकल्प कामयाब नहीं हो पाए. सरकार इसे लेकर गिव एंड टेक के आईडिया पर विचार कर सकती है.

सरकार का पशुपालन विभाग लंबे समय से पशुपालकों को पैरा या कुट्टी को यूरिया से उपचारित करने को कहता है. क्या सरकार इसे अपने गौठानों में लागू नहीं कर सकती. अगर किसानों के सामने ये विकल्प रख दे कि जितना पैरा या कुट्टी वे देंगे, उसका करीब 40  या 50 फीसदी किसान को यूरिया उपचारित करके देंगे. पशुपालन विभाग कहता है कि यूरिया उपचार करने के बाद पैरा या कुट्टी में प्रोटीन की मात्रा 1 से बढ़कर 9 प्रतिशत हो जाती है. मुझे लगता है कि ये व्यवस्था लागू करने से गौठानों में पैरा दान काफी बढ़ जाएगा. इसी तरह मटका विधि से चूने से कैल्शियम का सप्लीमेंट बनाकर किसानों में बांटा जाए तो गौपालकों का विश्वास गौठान के प्रति बढ़ सकता है.

पशुपालन विभाग लंबे समय तक कई नवाचार चलाता आया है. जिसमें कामयाबी बेहद कम मिली है. अगर तमाम नवाचारों को गौठान में लागू कराया जाए तो इसके शानदार नतीजे आ सकते हैं.

हरे चारे में सरकार ने नेपियर की सी 5 और बरसीम के उत्पादन पर ज़ोर दिया लेकिन जब पूरे भारत में पैकचौंग और ताइवान की वैरायटी को अन्य राज्य तेज़ी से अपना रहे हैं. उस वक्त हम पुरानी वैरायटी पर ध्यान क्यों दे रहे हैं. पैकचांग में सालाना उत्पादन प्रति टन 200 टन तक है. जो किसी भी तरह का सर्वाधिक बायोमास उत्पादन है. इसमें प्रोटीन करीब 16 फीसदी तक होता है.  जबकि ताइवान बंगाल में इससे भी ज़्यादा 20 प्रतिशत तक प्रोटीन होने का दावा किया जाता है. ये सभी हरे चारे वाली फसलों में सर्वाधिक है. मध्यप्रदेश, झारखंड और ओडिशा के कई ज़िलों में किसानों को पैकचोंग की स्टिक पशु चारे के लिए उपलब्ध करा रही है. कई राज्य में जंगलों में इसे लगाया जा रहा है ताकि जंगली जानवरों को आहार मिल सके. इन वैराइटी का फायदा है कि इससे साइलेज भी बनाया जा सकता है.

(क्रमश:)