छत्तीसगढ़ के माटीपुत्र पद्मश्री पंडित श्यामलाल चतुर्वेदी जी के प्रतिमा अनावरण का यह अवसर प्रदेश के साहित्य, संस्कृति प्रेमियों के लिए गौरवपूर्ण है। यह बिलासपुर और छत्तीसगढ़ का सम्मान है। यह प्रतिमा वर्तमान और आने वाली पीढ़ी को असल छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़िया की अनुभूति कराती रहेगी। श्यामलाल जी का व्यक्तित्व असल छत्तीसगढ़ से मेल खाता है और उन्हें छत्तीसगढ़ का पर्याय कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
छत्तीसगढ़ जी हां। देश के नक्शे में एक सूबा…..जो अपनी सीमाओं के दायरे के हिसाब से बहुत बड़ा तो नहीं है……..और दूर से देखने वालों को बहुत छोटा भी नजर आता है……। लेकिन कोई नजदीक आकर नजर डाले तो जमीन के इस हिस्से में उसे सब-कुछ दिखाई देगा….।नदियां…पहाड़….जंगल…उपजाऊ जमीन…खेत-खलिहान…पानी….बिजली…खनिज…मेहनतकश लोग…..और सब कुछ जो एक खुशहाल इलाके को चाहिए…।खुशहाली की इस तस्वीर के साथ उपेक्षा के दंश भी है…….अपनी उम्मीदें पूरी न हो पाने का मलाल भी है…..। फिर भी भोले-भाले निश्छल छत्तीसगढ़ के चेहरे पर मुस्कान बरकरार है…..। हर हाल में खुश ….और आनंद में डूबे होने का अहसास कराने वाले छत्तीसगढ़ का यह चेहरा मेल खाता है……एक चेहरे से …..। यह चेहरा है…पं श्यामलाल चतुर्वेदी का चेहरा ……। एक ऐसी शख्सियत …जो नदियों की मानिंद सहज-सरल, भोला-भाला, निश्छल भी है…..। पहाड़ों की तरह विशाल भी है…..। जंगल की तरह शांत औऱ गंभीर भी है….। हरे-भरे खेतों की तरह खुश औऱ उन्नत भी है….।बड़े-बड़े बिजली घरों की तरह ऊर्जा के प्रवाह से भरपूर भी है….। गांव-गंवई के मेहनतकश लोगों की तरह शक्तिमान भी है…….यहां के संत-महात्माओँ की तरह कहीं भी सच बोलने का साहस भी है….।… जिनकी वाणी में छत्तीसगढ़़ के सुमधुर लोकसंगीत जैसी मिठास भी है….। जी हां यहां पर बात हो रही है …… एक ऐसे व्यक्तित्व की…… जिसकी आत्मा में असली छत्तीसगढ़ बसा हुआ है…..। इन्हे समझने के बाद असली छत्तीसगढ़ की समझ भी हो जाएगी और पहचान भी…..।
पं. श्यामलाल चतुर्वेदी जी छत्तीसगढ़ का पर्याय या असली चेहरा थे। सहजता-सरलता और विशालता का सम्मिश्रण था. उनका व्यक्तित्व…. उनकी आवाज में उनकी बात सुनना हमेशा ही एक नए अंदाज का अहसास करा देता। पूरी निश्छलता के साथ अपनी बात रखकर सुनने वाले को मुस्कान से भर देने वाली उनक़ी मीठी जुबान अपने-आप में अनूठी भी थी और यादगार भी।
पंडित श्यामलाल चतुर्वेदी जी का जन्म 20 फरवरी 1926 को गांव कोटमी में हुआ था। गांव के छोटे से स्कूल से पढ़ाई शुरू कर उन्होंने बाद में एम ए की उपाधि प्राप्त की। उनका प्रेरणादायी जीवन एक कवि, एक लेख़क, एक पत्रकार, एक अध्यापक, एक संपादक और एक ग्रंथकार का अनूठा संगम था। पंडित श्यामलाल चतुर्वेदी जी को छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग (मंत्री परिषद के मंत्री के समकक्ष ) का अध्यक्ष बनाया गया और वे जीवन पर्यंत एक स्वतंत्र पत्रकार के रूप में कार्य करते रहे। उन्हें शास्त्रीय संगीत से भी काफी लगाव था और बचपन में रास लीलाओं में कृष्ण चरित्र का अभिनय किया करते थे। छत्तीसगढ़ की ठेठ परंपरा, लोक शैली, भाषा -बोली का प्रतिनिधित्व करते हुए पंडित श्याम लाल चतुर्वेदी ज़ी ने अपनी कई रचनाओं – किताबों के जरिए छत्तीसगढ़ की माटी की महक को प्रदेश – देश और दुनिया के लोगों तक पहुंचाया।
उन्हें अनेक पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए। जिसमें भारत सरकार की ओर से पद्मश्री सम्मान भी सम्मिलित है। उन्हें भारतेंदु साहित्य समिति, एमपी श्रमजीवी पत्रकार संघ, एमपी हिंदी साहित्य सम्मेलन भोपाल, महाकौशल लोक महोत्सव समिति जबलपुर, गणेश शंकर विद्यार्थी मेमोरियल ट्रस्ट भोपाल, ठाकुर प्यारेलाल सिंह रायपुर, महाराष्ट्र मंडल, छत्तीसगढ़ भाषा साहित्य समिति वसुंधरा सृजन सम्मान प्रमुख है। पंडित श्याम लाल चतुर्वेदी ज़ी को छत्तीसगढ़ सरकार ने पंडित सुंदरलाल शर्मा पुरस्कार से अलंकृत किया। रामगढ़ महोत्सव अंबिकापुर, मंडल रत्न सम्मान और पंडित रविशंकर विश्वविद्यालय रायपुर द्वारा छत्तीसगढ़ पुरस्कार का सम्मान भी दिया गया। पंडित श्याम लाल चतुर्वेदी ज़ी 7 दिसंबर 2018 को ब्रह्मलीन हो गए। लेकिन उनका व्यक्तित्व -कृतित्व हमेशा प्रेरणा देता रहेगा। छत्तीसगढ़ के महान सपूत को शत शत नमन।
लेखक- रुद्र अवस्थी, वरिष्ठ पत्रकार, बिलासपुर