ओडिशा के भवानीपटना और खरियार से रुपेश गुप्ता की रिपोर्ट। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ओडिशा के बंलगीर आने से दो दिन पहले पड़ोसी जिले कालाहांडी के जिला मुख्यालय भवानीपटना के महावीर चौक पर केक के साथ चाय पीते हुए वहां मौजूद चार-पांच लोग राज्य के सियासी समीकरण पर चर्चा कर रहे थे. ये चर्चा मोदी के तीन हफ्ते में तीसरी बार ओडिशा आने, केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के रोज़ाना ओडिशा दौरे से मिल रहे संकेतों को लेकर थी.जिस चाय की दुकान पर ये चर्चा चल रही थी.
चुनाव से करीब 2 से ढाई महीने पहले हो रहे इस चर्चा से साफ है कि राज्य का शहरी मतदाता सियासी रुप से बेदह समझदार है. प्रधानमंत्री अगर तीन हफ्ते से लगातार ओडिशा दौरे पर आ रहे हैं. केंद्रीय मंत्री अगर अमूमन रोज़ हवाई दौरे पर ओडिशा पहुंचकर दिल्ली निकल जा रहे हैं तो ओडिशा के आसमान से होने वाले वीआईपी मूवमेंट को जनता भांप रही है. ओडिशा के शहरी मतदाताओं की चर्चा में बीजेपी के एक तीसरे नेता भी हैं. जो पांच साल पहले तक छत्तीसगढ़ के तब के मुख्यमंत्री डॉक्टर रमन सिंह को उनके पायलट के तौर पर हवा की सैर कराया करते थे. 2014 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के विधायक के तौर पर राजनीतिक लैंडिग की. लेकिन 2019 के आते-आते मतदाता ये मान रहे हैं कि वो भले ही चुनाव में ज़मीन पर आ गए. लेकिन उनका मिज़ाज आज भी हवा हवाई है.
बीजेपी के इन तीन नेताओं को मतदाताओं के नज़रिए से देखने पर राज्य की राजनीति काफी हद तक समझ आ जाती है. डीएस मिश्रा जैसे नेताओं से जनता की नाराज़गी बताती है कि इस बार मतदाता सिर्फ पार्टी नहीं बल्कि नेता को देखकर मतदान करेगा. कालाहांडी से अलग होकर बने नुआपाड़ा जिले के गांव धरमसागर के एक छोटे और गरीब किसान घासीराम अगर कहते हैं कि इस बार वोट उम्मीदवार देखकर ही देंगे. तो ये माना जाना चाहिए कि इस दफा चुनाव में प्रत्याशियों का चेहरा अहम होने जा रहा है. 2014 में जिस तरीके से चुनाव मोदी और पटनायक के चेहरे के बीच लड़ा गया. स्थितियां सिर्फ वैसी नहीं होंगी.
इस चुनाव में बीजेपी प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे के साथ मैदान में उतेरगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ओडिशा के लगातार दौरे इन खबरों पर बल दे रहे हैं कि वे ओडिशा के पुरी से लोकसभा चुनाव लड़ सकते हैं. अगर वे ऐसा करते हैं तो गंगा मैय्या के बाद मोदी और बीजेपी इस बार भगवान जगन्नाथ की शहण में होगी. बीजेपी जिन राज्यों में अपनी सीटों की संख्या 2019 में बढ़ते हुए देख रही है, उसमें ओडिशा प्रमुख है. 2014 में मात्र एक जीत से बीजेपी को संतोष करना पड़ा था. बीजेपी मान रही है कि मोदी के पुरी से चुनाव लड़ने का असर पूरे प्रदेश पर पड़ेगा, न सिर्फ लोकसभा चुनाव में बल्कि उसके साथ होने वाले विधानसभा चुनाव में भी.
विधानसभा का जिम्मा बीजेपी की ओर से पांच साल से केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान पर है. माना जाता है कि धमेंद्र प्रधान की लंबे समय से महात्वकांक्षा ओडिशा के मुख्यमंत्री की कुर्सी पाने की है बीजेपी और बीजेडी गठबंधन टूटने की बड़ी वजह धमेंद्र प्रधान की इसी महात्वकांक्षा को माना गया. लिहाज़ा वे पूरी ताकत के साथ मैदान में डटे हुए हैं. वे लगातार ओडिशा के अलग-अलग क्षेत्रों का दौरा कर रहे हैं. हालांकि बीजेपी के चेहरे तय हैं. लेकिन मुद्दा क्या होगा ये साफ नहीं है. राज्य में कांग्रेस की लोकप्रियता में गिरावट दर्ज की गई है. राज्य में कांग्रेस को पंचायत स्तर के चुनाव में तीसरा स्थान हासिल हुआ . जबकि बीजेपी ने उससे दूसरा स्थान झटक लिया था. बीजेपी को उम्मीद इसी बात को लेकर है.
जबकि उनके प्रमुख प्रतिदंदी बीजेडी का चेहरा और मुद्दा दोनों तय हैं. बीजेपी अगर भगवान जगन्नाथ की शरण में है तो बीजेडी भगवान जगन्नाथ के साथ किसानों की शरण में है. बीजेडी इस बात के लिए तैयार है कि अगर चुनाव में भगवान जगन्नाथ का नाम लेकर बीजेपी फायदा लेने की कोशिश करे तो उसके पास जवाब तैयार रहे. इसलिए उसने इस चुनाव के अपने ट्रंप कार्ड का नाम कालिया रखा है. भगवान जगन्नाथ का एक नाम कालिया ही है. हालांकि करीब 10 हज़ार करोड़ के कृषक एसिस्टेंस फॉर लाइवलीहुड एंड इन्कम ऑगमेंटेशन (कालिया) परियोजना लाई है. इस परियोजना में किसानों को बीमा के साथ-साथ वित्तीय, आजीविका और खेती के लिए सहायता प्रदान की जाएगी. योजना में भूमिहीन खेतिहर मजदूरों, दुकानदारों और बटाईदारों को भी जोड़ा जा रहा है. इसका फायदा प्रदेश के 92 फीसदी किसानों को होगा. जिसमें ज्यादातर लघु और सीमांत किसान हैं. इस योजना में रबि और खऱीफ की फसलों के लिए सरकार हर किसान को 5 हज़ार रुपये देगी. कृषक एसिस्टेंस फॉर लाइवलीहुड एंड इन्कम ऑगमेंटेशन योजना का ही शॉर्ट नाम कालिया है.
एक रुपये किलो गरीब को चावल का फायदा बीजेडी को हुआ है. बलंगीर के भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में इस बात को रेखांकित किया था कि केंद्र तीन रुपये किलो चावल राज्य सरकार को दे रही है. केवल 2 की सब्सिडी राज्य सरकार देकर 1 रुपये किलो बेच रही है. लेकिन ये बात किसी की समझ में नहीं आएगी. भवानीपटना से 38 किलोमीटर पश्चिम में स्थित जेरलासोडा गांव के मारकोंड गोहिर पूरजो़र तरीके से बोलते हैं कि वे वोट नवीन पटनायक को देंगे क्योंकि नवीन पटनायक उन्हें एक रुपये किलो चावल दे रहे हैं.  तमाम निजी सर्वे में उनके आस-पास भी प्रदेश का कोई नेता नहीं फटकता. युवाओं को जोड़ने के लिए पटनायक ने बीजू युवा वाहिनी कार्यक्रम के जरिए जोड़ रहे हैं.
कांग्रेस इस बार पूरी तरह से किसानों की शरण में है. कांग्रेस ने किसानों के मुद्दे पर तीन राज्यों में हाल ही में बीजेपी को जिस तरीके से पटखनी दी है, उससे कांग्रेस के नेता उत्साहित हैं. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष निरंजन पटनायक ने किसानों के कर्जमाफी की घोषणा कर दी है. निरंजन पटनायक हर जिले में किसानों के साथ मीटिंग कर रहे हैं. लेकिन यहां कांग्रेस के संगठन को साधने में पटनायक असफल साबित हो रहे हैं.  पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी के दौरे से कुछ दिन पहले कार्यकारी अध्यक्ष बना किशोर दास ने पार्टी छोड़ दी है. झारसुगड़ा से विधायक नबा बीजेडी में जा रहे हैं. अब नज़रें 25 जनवरी को राहुल गांधी के भुवनेश्वर के दौरे को लेकर है.
कांग्रेस के हक में ये बात है कि ओडिशा की सीमा से लगे छत्तीसगढ़ में उसकी पार्टी की सरकार ने किसानों को 2500 रुपये क्विंटल धान देना शुरु कर दिया है. इन जगहों पर ये मुद्दा तेजी से बनता जा रहा है कि जब छत्तीसगढ़ में धान की कीमत 2500 रुपये है तो ओडिशा में 1800 से भी कम क्यों. इस पर ध्यान न बीजेपी का है न ही बीजेडी का. कांग्रेस इस मुद्दे को ठीक चुनाव से पहले लपक सकती है. क्योंकि कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व और छत्तीसगढ़ में पिछले चुनाव में कांग्रेस के रणनीतिकारों में एक प्रमुख व्यक्ति भक्त चरणदास को मालूम है कि धान की कीमत ज़्यादा देने के वादे के साथ कांग्रेस छत्तीसगढ़ में 2013 में सत्ता में आने से चूक गई और ज्यादा का वादा करके 2018 में सत्ता में आ गई.