डॉ. वैभव बेमेतरिहा, रायपुर। छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव-2023 में जिस सीट पर सबकी नजर है, वो सीट है पाटन. दुर्ग जिले का पाटन विधानसभा पूरे 90 विधानसभा सीटों में सबसे महत्वपूर्ण है. क्यों है यह आप सभी जानते हैं. इस सीट से कांग्रेस विधायक भूपेश बघेल प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं और देश में सबसे लोकप्रिय और ताकतवर नेताओं में से एक हैं.

फिलहाल, इस सीट की चर्चा इसलिए ज्यादा और होने लगी है क्योंकि भाजपा ने 21 प्रत्याशियों की जो पहली सूची जारी की है, उसमें पाटन विधानसभा के प्रत्याशी का भी नाम है. भाजपा ने पाटन से जिस चेहरे पर भरोसा वो वही चेहरा जिसके भरोसे ने 2008 में भाजपा ने भूपेश बघेल के खिलाफ जीत दर्ज की थी. नाम है विजय बघेल.

विजय बघेल वर्तमान में दुर्ग लोकसभा से सांसद हैं. भाजपा चुनाव घोषणा-पत्र समिति के संयोजक हैं. छत्तीसगढ़ में सांसद रहते विधानसभा लड़ने वाले दूसरे नेता होंगे. कुर्मी समाज में सामाजिक तौर पर सक्रिय हैं.

इन सबके बीच विजय बघेल की एक पहचान भूपेश बघेल के भतीजे के तौर पर भी है. विजय बघेल उम्र में भूपेश बघेल से दो साल बड़े हैं, लेकिन नातेदारी मे छोटे हैं. कुर्मी समाज में दोनों की पहचान चाचा और भतीजे की है. यही वजह है कि पाटन के मुकाबले को कका और भतीजे के मुकाबले के तौर पर भी देखा जा रहा है.

भूपेश बघेल और विजय बघेल चौथी बार आमने-सामने होंगे. पहला मुकाबला 2003 में हुआ था. विजय बघेल तब एनसीपी की टिकट पर चुनाव लड़े थे. 2008 में दूसरी बार विजय बघेल भाजपा की टिकट से लड़े और जीते थे. तीसरी बार 2013 में लड़े लेकिन हार गए थे. 2018 में टिकट नहीं दी गई, 2019 लोकसभा लड़े और जीते.

राजनीतिक पृष्ठभूमि

भूपेश बघेल, मुख्यमंत्री छग

भूपेश बघेल 4 दशकों से राजनीति में सक्रिय है. 5 बार के विधायक हैं. दो बार प्रदेश अध्यक्ष रहे हैं. अविभाजित मध्यप्रदेश में मंत्री रहे. वर्तमान में 5 साल से छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री है. देश में सबसे लोकप्रिय और ताकतवर नेताओं में से एक हैं.

विजय बघेल, सांसद, दुर्ग

विजय बघेल भी तीन दशकों से राजनीति में सक्रिय हैं. नगर पालिका अध्यक्ष रहे, एक बार विधायक और वर्तमान में दुर्ग लोकसभा से सांसद हैं. कुर्मी समाज में सामाजिक तौर पर सक्रिय रहते हैं. भाजपा ने पाटन से तीसरी बार प्रत्याशी बनाया है. भाजपा में घोषणा-पत्र समिति के संयोजक हैं.

जीतेंगे भूपेश, लेकिन विजय भी विशेष : – बाबूलाल शर्मा

दुर्ग-भिलाई में लंबे समय तक पत्रकारिता करने वाले और वर्मतान में रायपुर के वरिष्ठ पत्रकार बाबूलाल शर्मा बघेल वर्सेज बघेल के पीछे की कहानी कुछ इस तरह समझाते हैं- “कुर्मी समाज में दोनों ही प्रभावशाली नेता हैं. दोनों के बीच चाचा और भतीजे की रिश्तेदारी है. चौथी बार आमने-सामने होंगे. हालांकि, बीते तीन चुनावों में दो बार भूपेश बघेल जीते हैं, और एक बार विजय बघेल को सफलता मिली है. मैं जहां तक समझ पा रहा हूँ भाजपा की रणनीति भूपेश बघेल को सामाजिक और पारिवारिक दोनों ही तरीके नातेदारी के जरिए घेरने की नजर आती है. विजय बघेल को मैदान में उतारना मतलब कुर्मी समाज के वोटों को दो भागों में बांटना है, जिससे के मुकाबला कहीं से भी एकतरफा न रहे. हालांकि, इन परिस्थितियों में अभी तक जो स्थिति नजर आ रही है, उसमें भूपेश बघेल ही जीतते हुए दिखाई दे रहे हैं. लेकिन विजय बघेल भी पाटन की जनता के बीच विशेष है, इससे इंकार नहीं किया जा सकता.”

मुख्यमंत्री पड़ेंगे भारी, लेकिन घर में घेरने की तैयारी :- राम अवतार तिवारी

रायपुर के वरिष्ठ पत्रकार राम अवतार तिवारी पाटन के मुकाबले को 90 विधानसभा सीटों में सबसे दिलचस्प मुकाबला मानते हैं. वे कहते हैं- “पाटन के सियासी गणित को समझने के लिए कुर्मी समाज, साहू समाज और अनुसूचित जाति समाज के समीकरण को समझना होगा. विजय बघेल को प्रत्याशी बनाने के पीछे भाजपा की रणनीति जातिगत समीकरण भी है. क्योंकि 2018 के चुनाव में भूपेश बघेल के खिलाफ भाजपा ने मोतीलाल साहू को उतारा था. इससे कुर्मी समाज का एकतरफा वोट भूपेश बघेल को चला गया था. वहीं मोतीलाल साहू के खिलाफ बाहरी प्रत्याशी होने का मुद्दा भी उठा था. इन परिस्थितियों के बीच भाजपा के साहू वोटर भी कांग्रेस के साथ चले गए थे. लिहाजा इस बार विजय बघेल के जरिए भाजपा की रणनीति भूपेश बघेल को उनके घर में घेरने की है. विजय बघेल को प्रत्याशी बनाने से कुर्मी समाज का वोट बंटेगा और साहू समाज का भरपूर समर्थन मिला तो विजय बघेल बाजी पलटने में भी सफल रह सकते हैं. वहीं यह बताने की भी कोशिश है कि भाजपा में मुख्यमंत्रियों के चेहरे के बीच एक मजबूत चेहरा विजय बघेल भी हैं. हालांकि, इन सबके बावजूद चुनाव में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ही भारी पड़ेंगे, ऐसा मुझे लग रहा है.”

भूपेश बघेल मजबूत, लेकिन भाजपा की जय में विजय उपयुक्त – रोमशंकर यादव

राज्य अलंकरण से सम्मानित और ग्रामीण पत्रकारिता में सबसे विश्वसनीय पत्रकार दुर्ग जिला निवासी रोमशंकर यादव पाटन के समीकरण पर बात करते हुए कहते हैं- “इसमें कोई दो राय नहीं है कि छत्तीसगढ़ की राजनीति में आज सबसे मजबूत नेता मुख्यमंत्री भूपेश बघेल हैं. भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ से लेकर दिल्ली तक अपनी मजबूत पकड़ बनाई है. कांग्रेस का पूरा भार उनके कंधों पर यह भी कहा जा सकता है. 90 सीटों के लिए भूपेश बघेल स्टार प्रचारक हैं. भूपेश बघेल के इस ताकत को भाजपा भी बखूबी समझती है. भाजपा को पता है कि भूपेश के सामने अगर कोई उपयुक्त चेहरा तो वो है विजय बघेल. दरअसल, बीते 5 सालों में छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल ने खुद को ठेठ छत्तीसगढ़िया, किसान और ग्रामीण पृष्ठभूमि से आने वाले नेता के तौर पर दिखाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है. ऐसे में भाजपा को वही चेहरा चाहिए था जो भूपेश के सामने उन्हीं के अंदाज में गेड़ी में दौड़ सकें. लिहाजा भाजपा ने विजय बघेल को उपयुक्त माना. दूसरी बात यह है कि विजय बघेल के सहारे पाटन में वोटों के ध्रुवीकरण को रोकना. कुर्मी समाज का वोट बंट जाए और साहू समाज का समर्थन भाजपा एकतरफा मिल जाए. चर्चा है कि साहू समाज की लगातार बैठकें भी पाटन में चुनाव को लेकर हो रही है. एक और बात जो पाटन में विकास से जुड़ा है. भूपेश बघेल ने पाटन के हर क्षेत्र में भरपूर काम कराया है. वहीं विजय बघेल ने भी सांसद निधि का ज्यादातर काम पाटन में ही कराया है. मतलब साफ है कि तैयारी पहले से ही थी. वैसे भाजपा यही चाहती है कि भूपेश बघेल पाटन में ही इंगेज रहे. उन्हें अन्य सीटों पर ज्यादा प्रचार करने का मौका न मिल सके.”

पारंपरिक प्रतिद्वंदी, जातीय समीकरण- पुनीत कौशिक

दुर्ग जिले मे लंबे समय से पत्रकारिता कर रहे वरिष्ठ पत्रकार पुनीत कौशिक का कहना है कि- “भूपेश बघेल और विजय बघेल पारंपरिक प्रतिद्वंदी हैं. दोनों अब तक तीन बार एक-दूसरे खिलाफ चुनाव लड़ चुके हैं, चौथी बार एक बार फिर से आमने-सामने हैं. कुर्मी समाज में दोनों ही प्रतिष्ठित और ताकतवर नेता हैं. विजय बघेल की सामाजिक गतिविधियों में भागीदारी ज्यादा है. मैं जहां तक समझ पा रहा हूं भाजपा की रणनीति भूपेश बघेल को पाटन में उलझाकर रखने की है. क्योंकि विजय बघेल ने अगर समाज के लोगों को साध लिया तो, कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ सकती है. पाटन का दरअसल जातीय समीकरण कुर्मी समाज के साथ-साथ साहू समाज और निर्णायक स्थिति में सतनामी समाज पर केंद्रित है. साहू समाज में भाजपा का दखल अधिक माना जाता है. परिसीमन के बाद गुण्डरदेही से एक हिस्सा, जो कि साहू बाहुल्य वह अब पाटन में है. भाजपा इस हिस्से पर फोकस कर चल रही है. क्योंकि कुर्मी समाज का वोट अगर कुर्मी समाज के दोनों नेताओं के बीच बंटा तो फायदा हो सके. हालांकि निर्णायक भूमिका वाले सतनामी समाज के वोट बैंक पर भी भाजपा एक खास रणनीति के तहत काम कर रही है. लेकिन फिलहाल तो यही दिख रहा है कि विजय बघेल को सामने लाकर भूपेश बघेल की पाटन में घेराबंदी कर दी जाए.”

सार

पत्रकारों के विश्लेषण यह साफ लग रहा है कि पाटन मेें मुकाबला 2008 के चुनाव से और कहीं ज्यादा ही दिलचस्प होने वाला है. हालांकि मुख्यमंत्री होने के नाते भूपेश बघेल का प्रभाव मतदाताओं पर ज्यादा रहेगा इससे इंकार भी नहीं किया जा सकता है, लेकिन भतीजे विजय बघेल को पाटन में नजर अंदाज भी नहीं किया जा सकता. भाजपा विजय बघेल के सहारे भूपेश बघेल को उनके घर में घेर पाने में सफल रह पाएगी या नहीं ये तो परिणाम बताएगा, लेकिन घेरेबंदी की कोशिश भाजपा ने जरूर शुरू कर दी है.