डॉ. वैभव बेमेतरिहा की रिपोर्ट

रायपुर. छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव-2023 जीतकर भाजपा सत्ता में वापसी करना चाहती है. लेकिन भाजपा के लिए फिलहाल राह आसान नहीं. क्योंकि आरक्षित सीटों पर भाजपा की स्थिति 2013 के चुनाव के बाद से बेहद कमजोर होती चली गई है. इसका व्यापक असर 2018 के चुनाव परिणाम में दिखा था. 18 के चुनाव में 39 आरक्षित सीटों में भाजपा सिर्फ 4 सीटों में कठिन संघर्षों के बीच जीत पाई थी. आरक्षित सीटों में एसटी-एससी की सीटें शामिल हैं.

वैसे इस रिपोर्ट में चर्चा फिलहाल अनुसूचित जाति वर्ग के सीटों की करेंगे. पंरपरागत रूप से इस वर्ग को कांग्रेस और बसपा का वोट बैंक माना जाता है. हालांकि 2003 से 2013 के बीच हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा यहाँ अपनी मजबूत पैठ बना चुकी थी. 13 के चुनाव में तो 10 में से 9 सीटें जीतकर भाजपा ने कांग्रेस और बसपा का मानों इस वर्ग से सफाया कर दिया था. हालांकि 18 के आते-आते भाजपा ने इस वर्ग के बीच अपना जनाधार खो दिया और मौजूदा स्थिति भाजपा के अनुकूल नहीं है.

इन परिस्थितियों के बीच भाजपा 13 प्रतिशत वोट बैंक वाले एससी वर्ग को साधने में जोर-शोर से जुट गई है. छत्तीसगढ़ में भाजपा एससी मोर्चा का राष्ट्रीय बैठक होना भी इसका एक बड़ा उदाहरण है. इससे पहले कभी ऐसी बैठक भाजपा की छत्तीसगढ़ में नहीं हुई थी.

देश भर से भाजपा एससी मोर्चा के पदाधिकारी रायपुर में जुटे और इन्होंने अनुसूचित जाति वर्ग के सीटों पर मौजूदा परिस्तिथियों का आंकलन किया. मुख्य रूप से छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान के एससी आरक्षित 79 सीटों पर मंथन हुआ.

मौजूदा स्थिति

छत्तीसगढ़ में एससी वर्ग के लिए 10 सीटें आरक्षित हैं. इन आरक्षितों सीटों पर 2003 से लेकर 2018 के चुनाव परिणामों की बात करे तो भाजपा के लिए सबसे खराब स्थिति 18 में रही.

2003 के चुनाव में एससी वर्ग के 10 सीटों में भाजपा को 4, कांग्रेस को 4 और 2 सीटों पर बसपा को जीत मिली थी.

2008 में हुए चुनाव में 10 सीटों में भाजपा को 5, कांग्रेस को 4 और बसपा को 1 सीट पर जीत मिली थी.

2013 में हुए चुनाव में भाजपा को 10 में से 9 सीटों पर जीत मिली थी. वहीं कांग्रेस सिर्फ 1 सीट जीत पाई थी, जबकि इस वर्ग में सबसे मजबूत बसपा अपना खात भी नहीं खोल पाई थी.

2018 में हुए चुनाव में कांग्रेस को सर्वाधिक 10 में से 7 सीटों पर जीत मिली थी. वहीं भाजपा को महज 2 सीटों पर, जबकि बसपा को 1 सीट पर जीत मिली थी.

आरक्षण का असर

छत्तीसगढ़ में फिलहाल कुल 58 प्रतिशत आरक्षण लागू है. इसमें एसटी वर्ग के लिए 32 प्रतिशत, ओबीसी के लिए 14 और एससी वर्ग के लिए 12 प्रतिशत आरक्षण शामिल है.

दरअसल 2012 में तत्कालीन रमन सरकार ने छत्तीसगढ़ में आरक्षण को लेकर अधिसूचना जारी की थी. इसमें आबादी के हिसाब आरक्षण रोस्टर जारी किया था. इसके तहत एससी वर्ग के आरक्षण में 4 फीसदी की कटौती कर दी गई थी. 2012 में नई अधिसूचना के बाद एसटी के लिए 32, एससी के लिए 12 और ओबीसी के लिए 14 प्रतिशत आरक्षण लागू किया गया था. इस तरह संविधान द्वारा निर्धारित 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण छत्तीसगढ़ में हो गया था.

2012 से पूर्व छत्तीसगढ़ में 50 प्रतिशत तक की आरक्षण था. इसमें एसटी को 32, एससी को 16 और ओबीसी को 14 प्रतिशत आरक्षण का लाभ मिल रहा था.

एससी वर्ग के आरक्षण में कटौती के बावजूद इसका का कोई नुकसान 2013 के चुनाव में भाजपा को नहीं हुआ था. बल्कि फायदा ही हुआ था. भाजपा आरक्षण में कटौती के बाद 10 में से 9 सीट जीतने सफल रही थी.

भूपेश सरकार में 76% आरक्षण विधेयक पारित, राजभवन में लंबित


वहीं कांग्रेस पार्टी वाली मौजूदा भूपेश सरकार की ओर छत्तीसगढ़ विधानसभा में सर्वसम्मति से 76 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए संशोधन विधेयक पारित किया जा चुका है, लेकिन इस पर राज्यपाल से मंजूरी अब तक नहीं मिली है. 76 प्रतिशत आरक्षण लंबित है.

भूपेश सरकार में 76 प्रतिशत आरक्षण में एसटी के लिए 32, ओबीसी के लिए 27, एससी के लिए 13 और ईडब्ल्यूएस के लिए 4 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया है.

इस तरह से देखा जाए तो एससी वर्ग के आरक्षण में 1 प्रतिशत की वृद्धि संभावित है.

हालांकि एससी वर्ग की ओर से 2012 से पूर्व जो 16 फीसदी आरक्षण का लाभ मिलता उसे देने की मांग उठाई जाती रही है. और यह प्रदेश में एक बड़ा सियासी मुद्दा आज भी बना हुआ है.

फिलहाल इन तमाम समीकरणों के बीच 2023 के विधानसभा चुनाव में अनुसूचित जाति वर्ग को साधने में भाजपा कितना सफल रह पाती है, ये तो परिणाम बताएगा. लेकिन मौजूदा स्थिति आरक्षित सीटों पर भाजपा की अच्छी नहीं है, और ये सच है. यही वजह है कि भाजपा एससी सीटों पर 2013 के परिणाम को दोहराना चाहती है और इसके लिए पूरा जोर लगा रही है.