डॉ. वैभव बेमेतरिहा –

रायपुर. छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव-2023 को लेकर हमारी स्पेशल रिपोर्ट की ये 12 वीं कड़ी है. इसी श्रृंखला में दल बदलने वाले शीर्ष नेताओं की कहानी भी आप पढ़ रहे हैं. पार्टी छोड़ने और नई पार्टी से जुड़ने वाले नेताओं की सफलता और विफलता पर आधारित यह चौथी स्टोरी है. यह कहानी उस राजनेता की है, जो खुद को सपनों का सौदागर कहते रहे.

अजीत प्रमोद कुमार जोगी

एक व्यक्ति जिन्होने एक ही जीवन में न जाने क्या-क्या पा लिया ! ऐसा सब कुछ जिसे एक ही जीवन में पाना एक तरह से असंभव जैसा ही है. लेकिन छत्तीसगढ़ के वनांचल से निकले एक छात्र ने संभव कर दिखाया. वनांचल में संघर्षों के बीच से निकले और कामयाबी के शिखर तक पहुँचे. होनहार टॉपर विद्यार्थी, छात्र नेता, इंजीनियर, शिक्षक, आईपीएस, आईएएस, कलेक्टर से राजनेता और फिर राज्यसभा सांसद, लोकसभा सांसद, कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता, विधायक, छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री तक बने, लेकिन कदम रुके नहीं, और आगे बढ़े तो छत्तीसगढ़ में अपनी खुद की पार्टी बनाई, चुनाव लड़े और पहले ही चुनाव में 5 सीटें जीतकर इतिहास रचने में कामयाब रहे, लेकिन इन सबके बावजूद किंगमेकर नहीं बन पाए. बात देश के सफल राजनेताओं में से एक रहे, लेकिन जीवन के अंत तक विवादों से घिरे रहने वाले अजीत प्रमोद कुमार जोगी की हो रही है.

जन्म-शिक्षा-

अजीत जोगी का जन्म 29 अप्रैल 1949 को बिलासपुर में हुआ था. जोगी पेंड्रा के पास जोगीसार के रहने वाले थे. उनकी स्कूली शिक्षा पेंड्रा से हुई थी. प्रतिभावान विद्यार्थी के रूप में जोगी बिलासपुर अँचल में प्रसिद्घ हो चुके थे. उन्होने इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा पास की और भोपाल पढ़ने चले गए. गोल्ड मेडल के साथ इंजीनियरिंग की डिग्री लेने के बाद रायपुर लौटे और कुछ समय तक एनआईटी में छात्रों को पढ़ाते भी रहे. अध्यापन के साथ-साथ उन्होने यूपीएससी की परीक्षा पास की और आईपीएस के लिए चयनित हो गए. करीब डेढ़ वर्ष तक भारतीय पुलिस सेवा में रहने के बाद उन्होने दूसरी बार यूपीएससी की परीक्षा दी आईएएस के लिए चयनित हो गए. वहीं दिल्ली विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री भी ले ली थी.

सबसे लंबे समय तक कलेक्टर रहने का रिकार्ड

अविभाजित मध्यप्रदेश में उन्होने अपनी प्रशानिक क्षमता का लोहा मनवाया और लगभग 14 साल तक कई जिलों में कलेक्टर रहे. रायपुर के भी वे जिलाधीश रहे. लंबे समय तक कलेक्टर रहने का उनका रिकार्ड है. जोगी की छवि एक दंबग और निडर प्रशासनिक अधिकारी के तौर पर रही. अपनी कार्यशैली के चलते वे कई राजनेताओं के चहेते भी रहे. अर्जुन सिंह के मुख्यमंत्री रहते हुए उनके करीबी हो गए थे. वहीं राजीव गांधी तक भी उनकी सीधी पहुँच हो चुकी थी.

राजनीतिक जीवन

जोगी के राजनीतिक सफर की शुरुआत अविभाजित मध्यप्रदेश में इंदौर कलेक्टर रहते हुए हुई. 80 के दशक में जोगी ने अर्जुन सिंह और राजीव गांधी के कहने पर कलेक्टरी छोड़ी और कांग्रेस पार्टी के साथ जुड़ गए. कांग्रेस प्रवेश के साथ उन्हें राज्यसभा सदस्य बनाया गया था. 1986 से 1998 तक राज्यसभा सांसद रहे, इसी दौर में एआईसीसी प्रवक्ता भी. 1998 में रायगढ़ से लोकसभा सांसद भी रहे. 2000 में जब छत्तीसगढ़ अलग राज्य बना तो कांग्रेस के तमाम दिग्गज नेताओं को पछाड़कर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बनने में कामयाब रहे.

लोकसभा चुनाव हारे, लेकिन मुख्यमंत्री बने

1999 में लोकसभा का चुनाव हुआ. कांग्रेस ने रायगढ़ संसद चुनकर आने वाले अजीत जोगी को इस बार शहडोल से मौका दिया. लेकिन जोगी शहडोल से लोकसभा का चुनाव हार गए. इस हार के बाद छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के कांग्रेस के प्रभावशाली नेता यही मानकर चल रहे थे कि अब जोगी का राजनीतिक कैरियर ढलान पर चला जाएगा. लेकिन हुआ इसके ठीक उलट. किसे मालूम था कि 21सदी के आरंभ के साथ ही जोगी युग की शुरुआत छत्तीसगढ़ में हो रही थी.

सन् 2000 में छत्तीसगढ़ नए राज्य के रूप में अस्तिव में आ गया था. मध्यप्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ़ की अपनी एक अलग पहचान राज्य के रूप में बनाने जा रही थी. केंद्र में तब भाजपा की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार थी. लेकिन राज्य अविभाजित मध्यप्रदेश में कांग्रेस पार्टी वाली दिग्गविजय सिंह की सरकार थी.

कांग्रेस विधायकों की संख्या छत्तीसगढ़ में भाजपा से कहीं अधिक थी. लिहाजा अलग राज्य छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बननी ही थी. लेकिन राज्य और सरकार गठन से पूर्व में कांग्रेस में गदर भी मच चुका था. छत्तीसगढ़ कांग्रेस में श्यामा और वीसी शुक्ल परिवार का वर्चस्व था.

छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री पद के सबसे प्रमुख दावेदार वीसी शुक्ल थे. ऐसे में समय में कांग्रेस हाईकमान को एक कठोर निर्णय लेना था. लेकिन राज्य निर्माण के साथ ही शायद राजीव गांधी और राष्ट्रीय नेतृत्व ने तय कर लिया था कि छत्तीसगढ़ के मुखिया शुक्ल नहीं जोगी होंगे. राजनीतिक खींचतान, वर्चस्व और घमासान के बीच वही हुआ, जो पहले से तय था. 1999 में लोकसभा चुनाव हार चुके अजीत जोगी 2000 में छत्तीसगढ़ राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री बने.

अजीत जोगी के सामने सबसे बड़ी चुनौती अब ये थी कि वे छत्तीसगढ़ के तमाम दिग्गज नेताओं को साथ लेकर चले. लेकिन इससे पहले उन्हें विधायक बनने का बाधा भी पार करना था, जो उनके मुख्यमंत्री रहने के लिए सबसे जरूरी था. जोगी विधायक कहाँ से बने इसे लेकर पार्टी में चिंतन और मंथन चल रहा था. वे चाहते तो कांग्रेस विधायक के किसी सीट को खाली कराकर चुनाव लड़ सकते थे, लेकिन राजनीतिक दाँव-पेंच में माहिर जोगी ने भाजपा विधायक को साधा. इसमें वे कामयाब भी हुए. उन्होने चुनाव लड़ने के लिए गृह क्षेत्र मरवाही को चुना. मरवाही अनुसूचित जन जाति के लिए आरक्षित विधानसभा सीट है. इस सीट से भाजपा के रामदलाय उइके विधायक थे. जोगी के प्रभाव में आकर उन्होने अपनी विधायकी छोड़ दी. जोगी तीन महीने के अंदर ही उपचुनाव जीतकर मरवाही से विधायक बन गए. लेकिन इस जीत के साथ ही जाति का विवाद भी जुड़ गया.

आज भी है जाति का विवाद

दरअसल अजीत जोगी की जाति को लेकर छत्तीसगढ़ में विवाद आज भी बना हुआ है. अजीत जोगी जीवन भर खुद को आदिवासी बताते रहे, लेकिन इसे लेकर उनके अंत तक विवाद रहा और अब यही विवाद उनके बेटे और परिवार के साथ भी है. आदिवासी सीट मरवाही से विधायक बनने के बाद अजीत जोगी की जाति को लेकर बिलासपुर के रहने वाले संतकुमार नेताम ने सबसे पहले आपत्ति दर्ज कराई थी. उन्होने 2001 में मुख्य चुनाव आयुक्त और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग में शिकायत की थी. इस मामले में जोगी के खिलाफ फैसला सुनाया गया था. जोगी के खिलाफ जाति मामले में फर्जीवाड़ा करने का आरोप लगा और 420 के तहत अपराध दर्ज करने कहा गया था. आयोग के फैसले के खिलाफ जोगी हाईकोर्ट चले गए थे. तब हाईकोर्ट ने जोगी के पक्ष में फैसला सुनाया था. लेकिन जाति को लेकर विवाद जारी रहा.

सरकार बचाने जुटे

जाति विवाद के बीच जोगी अपनी सरकार को बचाने में जुटे रहे. 90 विधानसभा सीटों वाले छत्तीसगढ़ में जोगी 49 सीटों के साथ सत्ता में थे. लेकिन फिर भी उन्हें डर था कहीं कुछ गड़बड़ न हो जाए. लिहाजा उन्होने बसपा और अन्य विधायकों को साध कर सत्ता के समर्थन में विधायकों की संख्या 55 कर डाली. जोगी यही नहीं रुके, वे और आगे बढ़े. भाजपा विधायकों को तोड़ने में जोगी जुट गए. इसमें मदद रामदलाय उइके ने की. भाजपा विधायकों की संख्या 35 थी. 35 में से 12 विधायक जोगी के प्रभाव में आ गए. और इस तरह जोगी सरकार में भाजपा 12 विधायक शामिल हो गए. भाजपा छोड़कर आने वाले 12 में 6 विधायक जोगी सरकार में मंत्री बने.

एक और बड़ा आरोप

जाति और खरीद-फरोख्त के विवाद के बाद जोगी एक और गंभीर विवाद में फंसे. अवसर था 2003 विधानसभा चुनाव का. जोगी पर जग्गी हत्याकांड का गंभीर आरोप लगा. दरअसल चुनाव के दौरान राकांपा नेता राम अवतार जग्गी की हत्या हो गई थी. हत्या का सीधा आरोप जोगी के बेटे अमित जोगी पर लगा. अमित जोगी लंबे समय तक हत्या के आरोप में जेल में रहे.

…और सरकार चली गई

कांग्रेस के गढ़ छत्तीसगढ़ में अलग राज्य बनने के बाद 2003 में विधानसभा का पहला चुनाव था. अजीत जोगी चुनाव के केंद्र बिंदु में थे. उन्हें पूर्ण भरोसा था कि कांग्रेस की फिर सरकार बनेगी. कई तरह के विवादों से घिरे अति आत्मविश्वास के बीच जोगी ने वीसी शुक्ल जैसे नेता के बगावत को अनदेखा कर दिया. दरअसल कांग्रेस से नाराज चल रहे वीसी शुक्ल ने 2003 में पार्टी छोड़ दी थी और राकांपा के साथ चले गए थे. नतीजा यह हुआ कि जोगी सत्ता से बाहर हो गए. छत्तीसगढ़ के पहले चुनाव में कांग्रेस हारी और भाजपा जीत के साथ ही सत्ता में काबिज हो गई. हार का ठीकरा जोगी पर फूटा और विधायक खरीद-फरोख्त के आरोपों में जोगी कांग्रेस पार्टी से निलंबित कर दिए गए. हालांकि 2004 लोकसभा चुनाव के साथ ही पार्टी में उनकी बहाली भी हो गई थी. निलंबन वापसी के साथ ही पार्टी ने उन्हें लोकसभा चुनाव की टिकट भी दे दी थी.

2004 का चुनाव

2004 लोकसभा चुनाव में महासमुंद से अजीत जोगी कांग्रेस से और उनके सामने उन्हें सत्ता से बाहर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले वीसी शुक्ल भाजपा से थे. चुनाव के दौरान एक बड़ी दुर्घटना जोगी के साथ घटी. प्रचार के दौरान भीषण सड़क हादसे में जोगी गंभीर रूप से घायल हो गए. उनके कमर के नीचे के हिस्से ने काम करना बंद कर दिया था. वे अब चल नहीं सकते थे और व्हीलचेयर पर आ गए थे. लेकिन जोगी का हौंसला नहीं टूटा और राजनीति के मैदान में डटे रहे. दुर्घटना के बाद जोगी आगे प्रचार नहीं कर पाए, लेकिन लोगों ने उनको भरपूर समर्थन दिया और वीसी शुक्ल को 1 लाख से अधिक मतों से हराकर दूसरी बार संसद पहुँचे थे. 2004 में कांग्रेस की केंद्र में सरकार बनीं, लेकिन जोगी को मनमोहन सरकार में जगह नहीं मिली. धीरे-धीरे जोगी राज्य की ही राजनीति में केंद्रित हो गए और 2008 के विधानसभा चुनाव में मरवाही से लड़कर तीसरी बार विधानसभा पहुँच गए. व्हीलचेयर वाले जोगी ने अपने विल पॉवर से 2008 के चुनाव में खूब दौरा किया, सर्वाधिक सभाएं की, लेकिन फिर भी कांग्रेस को सत्ता में वापसी नहीं करा सके. 2008 में दोबारा भाजपा की सरकार बनी और आरोप जोगी पर ही लगे कि उनकी वजह से ही सरकार नहीं बन पाई.

झीरमकांड और आरोप

राजनीति में जीवटता के प्रतीक बन चुके जोगी के साथ विवादों का सिलसिला जारी रहा. 2013 में विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुटी कांग्रेस पार्टी के साथ उनका भी प्रचार अभियान व्हीलचेयर पर ही जारी रहा. कांग्रेस छत्तीसगढ़ में तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल के नेतृत्व में परिवर्तन यात्रा निकाल रही थी. इस यात्रा में अजीत जोगी भी पटेल के साथ शामिल थे. इसी बीच मई 2013 में देश का सबसे बड़ा नक्सली हमला बस्तर में हुआ. इस हमले में नंदकुमार पटेल, महेन्द्र कर्मा और वीसी शुक्ल जैसे कांग्रेस के शीर्ष नेताओं सहित कई लोग शहीद हो गए. जोगी सुकमा में इस घटना के कुछ घंटे पहले ही एकसभा कर हेलीकाप्टर से रायपुर लौट आए थे. घटना के बाद जोगी पर राजनीतिक षड़यंत्र का आरोप लगा था. हालांकि यह बात आज तक साबित नहीं हो पाई और यह एक राजनीतिक मुद्दा ही बनकर रह गया है.
2013 विधानसभा चुनाव में झीरम जैसी नक्सल घटना होने के बाद भी कांग्रेस के परिवर्तन के साथ जनता नहीं जुड़ पाई और भाजपा तीसरी बार सरकार बनाने में सफल रही और एक बार फिर आरोपों के केंद्र बिंदु में जोगी ही रहे. चुनाव के बाद कांग्रेस पार्टी में यही चर्चा रही कि जोगी की वजह से ही सरकार नहीं बनी. कांग्रेस के अंदर ही जोगी को अब भाजपा की बी-टीम कहा जाने लगा था.

2014 का उपचुनाव

2014 में एक और बड़ा आरोप अजीत जोगी पर लगा. दरअसल 2014 में अंतागढ़ विधानसभा चुनाव के दौरान ऐसा कुछ घटा की कांग्रेस प्रत्याशी मंतुराम पवार ने ठीक मतदान से पहले मैदान छोड़ दिया. चुनाव संबंधित एक ऑडियो वायरल हुआ और नाम अमित जोगी का आया. कांग्रेस ने अमित जोगी को पार्टी से निष्कासित कर दिया और अजीत जोगी को नोटिस थमा दिया. धीरे-धीरे जोगी को लेकर कांग्रेस पार्टी में विरोध के स्वर प्रबल होते चले गए. भूपेश बघेल के प्रदेश अध्यक्ष बनने और टीएस सिंहदेव के नेता-प्रतिपक्ष बनने के बाद जोगी का प्रभाव रायपुर से लेकर दिल्ली तक पार्टी के अंदर कम हो गया था. जोगी और अन्य नेताओं के बीच पार्टी के अंदर छत्तीस के आँकड़े दिखाई देने लगे थे. 2015 में राहुल गांधी के सभा के दौरान मंच पर इसका प्रत्यक्ष रूप भी दिखाई दिया था. मदनपुर में आदिवासियों के बीच आयोजित रैली में जोगी और पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेताओं के बीच तल्खी तब पहली बार खुलकर दिखाई पड़ी थी.

नई पार्टी

2016 के आते-आते कभी कांग्रेस में बेहद ही प्रभावशाली रहे जोगी कमजोर पड़ चुके थे. वे समझ चुके थे कि अब वे सत्ता के शीर्ष पर नहीं पहुँच पाएंगे. उनके पास अब पार्टी छोड़ने का ही रास्ता शेष रह गया है. आखिरकार जून 2016 में जोगी ने पार्टी छोड़ दी. वैसे वे पार्टी छोड़ने से पूर्व खुद की ही पार्टी बनाने का सपना देख चुके थे. उन्होने कांग्रेस छोड़ते ही 21 जून 2016 को जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ जे का गठन किया.

नहीं बन पाए किंग मेकर

2018 का विधानसभा चुनाव था. चुनाव बेहद दिलचस्प था. 15 साल वाली भाजपा सरकार एक बार फिर सरकार में वापसी को लेकर उत्साहित थी, लेकिन भूपेश बघेल के नेतृत्व में कांग्रेस परिवर्तन की लहर चला रही थी. और इन सबके बीच अपनी पार्टी जेसीसीजे के साथ अजीत जोगी मुकाबले में थे. जोगी ने 90 सीटों पर बसपा के साथ गठबंधन किया. जोगी पूरी ताकत से चुनाव लड़े, इस उम्मीद के साथ कि वे किंगमेकर बनेंगे. जेजीसीजे के बिना छत्तीसगढ़ में किसी की सरकार नहीं बनेगी. लेकिन 18 के चुनाव में तो कांग्रेस की आंधी चली. 15 साल वाली भाजपा 15 सीटों में जा सिमटी, तो जोगी भी अपनी पार्टी के 5 विधायक और गठबंधन वाली पार्टी बसपा के दो सीटों के साथ एक कोने में सिमट गए थे. अजीत जोगी अब कांग्रेस की सत्ताधारी पार्टी के सामने में विपक्ष में थे. साथ में उनकी पत्नी डॉ. रेणु जोगी भी सदन में थीं.

…और चले गया

सन् 2020 वो वर्ष था जिसने छत्तीसगढ़ से सपनों के सौदागर को जनता के बीच से छिन लिया था. गंगा ईमली खाने के बेहद शौकीन जोगी के साथ एक बड़ी दुर्घटना घटी. ईमली का बीज जोगी के गले में फंस गया और उनकी सांसें रुक गई. जोगी अस्पताल में भर्ती कराए गए, उन्हें दिल का दौरा पड़ा, वे कोमा में चले गए. कई दिनों तक अस्पताल में रहे. 29 मई 2020 को अजीत जोगी ने इस दुनिया से अंतिम विदाई ले ली.

इस तरह खुद को सपने का सौदागर कहने वाले अजीत जोगी का किंग मेकर बनने का सपना-सपना ही रह गया. जोगी के जाने के बाद आज जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ जे पार्टी को अमित जोगी संभाल रहे हैं. लेकिन पार्टी आज अस्तिव के संकट से जूझ रही है. जोगी के साथ इस पार्टी से जुड़ने वाले कई बड़े नेता और मजबूत कार्यकर्ता पार्टी छोड़ चुके है. यहाँ तक जोगी कांग्रेस विधायक दल के नेता रहे धर्मजीत सिंह भी पार्टी से अलग हो चुके हैं, विधायक प्रमोद शर्मा भी साथ छोड़ चुके हैं. वहीं जोगी कांग्रेस से विधायक बनने वाले देवव्रत सिंह का निधन हो चुका है. जोगी कांग्रेस में बतौर विधायक डॉ. रेणु जोगी ही हैं, लेकिन वह भी स्वास्थ कारणों से पार्टी में सक्रिय नहीं हैं. इन तमाम संकटों के बाद भी अमित जोगी 2023 विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी में जुटे हैं. लेकिन जोगी परिवार और पार्टी का भविष्य आगे क्या होगा यह 2023 का परिणाम तय करेगा.