डॉ. वैभव बेमेतरिहा –
रायपुर । छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव-2023 को लेकर हमारी स्पेशल रिपोर्ट की ये 14वीं कड़ी है. इसी श्रृंखला में दल बदलने और पार्टी छोड़ने वाले शीर्ष नेताओं की कहानी भी आप पढ़ रहे हैं. पार्टी छोड़ने और नई पार्टी से जुड़ने वाले नेताओं की सफलता और विफलता पर आधारित यह छठवीं स्टोरी है. यह कहानी उस राजनेता की है, जो अपनी समाज आधारित नई पार्टी को लेकर चर्चाओं में हैं.
अरविंद नेताम
उत्तर बस्तर से 5 बार सांसद, दो बार केंद्रीय मंत्री रहने वाले नेता अब समाज के साथ सक्रिय हैं. बड़ी उम्मीदों के साथ घर वापसी हुई, लेकिन उम्मीदें धरी की धरी रह गई. सत्ता परिवर्तन हुआ, सरकार बनी, लेकिन सरकार के साथ नेताजी की नहीं बनी. बात दिग्गज आदिवासी नेता अरविंद नेताम की हो रही है. अरविंद नेताम इस बार अपनी नई पार्टी ‘हमर राज’ और छत्तीसगढ़ में सर्व आदिवासी समाज को लेकर सुर्खियों में हैं.
अरविंद नेताम भी उन नेताओं में से एक हैं जो दलबदल करने वाले नेताओं में शामिल रहे. यह कहना भी गलत नहीं होगा कि दलबदल करने वाले छत्तीसगढ़ के शीर्ष नेताओं के बीच अग्रणी रहे हैं. क्योंकि नेताम एक-दो नहीं, बल्कि 4 से अधिक राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियों में शामिल रहे. कांग्रेस से लेकर बसपा और राकांपा से लेकर भाजपा और एनपीपी जैसी पार्टियों में आते-जाते रहे. हालांकि कांग्रेस को छोड़कर किसी भी दल में अधिक समय तक टिक नहीं पाए. दो बार खुद की पार्टी बना चुके हैं. अब अपनी नई पार्टी हमर राज के साथ छत्तीसगढ़ के चुनावी मैदान में लड़ने को उतर चुके हैं.
उत्तर बस्तर कांकेर से आने वाले अरविंद नेताम का जन्म 1942 में हुआ था. अरविंद नेताम अब 81 साल के हो चुके हैं. उम्रदराज होने के बाद भी राजनीति में किसी जवान की तरह ही सक्रिय हैं. लेकिन राष्ट्रीय राजनीति में नहीं प्रदेश की राजनीति में. प्रदेश की राजनीति में नेताम की सक्रियता सर्व आदिवासी समाज के साथ है. समाज को आगे रखकर नेताम ने एक नई पार्टी का गठन किया है, जिसका नाम है- ‘हमर राज’. और इसी पार्टी के सहारे चुनावी मैदान में मजबूत उपस्थिति दर्ज कराने उतर चुके हैं.
अरविंद नेताम उच्च शिक्षित आदिवासी नेता हैं. कानून की डिग्री लेने के साथ कला संकाय में मास्टर की डिग्री भी हासिल की है. वहीं लंदन से पर्यावरण का सर्टिफिकेट कोर्स भी किया. स्कूली जीवन से ही समाज के अधिकारों को लेकर जागरूक रहे और राजनीतिक तौर पर उत्तर बस्तर में संघर्षों के साथ मोर्चे पर डटे रहे.
युवा जोश और जुनून लिए 70 के दशक में राजनीति की मुख्यधारा में कांग्रेस पार्टी के साथ आए और आते ही छा गए. 29 साल की उम्र में कांकेर लोकसभा सीट से चुनाव लड़े और जीतकर संसद पहुँच गए. सांसद बनने के साथ ही इंदिरा गांधी सरकार में दो साल बाद ही केंद्रीय राज्य मंत्री बना दिए गए. इसके बाद 1980, 1984, 1989 और 1991 में भी अरविंद नेताम कांकेर लोकसभा जीतकर सांसद बने. इंदिरा गांधी के बाद नरसिम्हा राव सरकार में भी केंद्रीय राज्यों मंत्री रहे.
कांड में नाम जुड़ा, पार्टी से नाता टूटा
90 के दशक में देश में हवाला कांड की गूँज थी. इस कांड से अरविंद नेताम का भी जुड़ गया था. हालांकि आरपों और विवादों के बीच नेताम मोर्चे पर डटे रहे. लेकिन पार्टी के अंदर कुछ और ही चल रहा था. हवाला कांड में नाम आने के बाद नेताम को 1996 के चुनाव में टिकट नहीं मिली और उनकी जगह पत्नी छबिला नेताम चुनाव लड़ी और जीतीं.
देश की राजनीति में पत्नी छबिला, तो प्रदेश की राजनीति में छोटे भाई शिव नेताम की मौजूदगी थी. मध्यप्रदेश में शिव नेताम दिग्विजय सरकार में वन मंत्री रहे. इस दौरान बस्तर में पेड़ कटाई से जुड़े मकबूजा कांड सामने आया. इस कांड में नेताम परिवार का नाम कथित तौर पर उजागर हुआ. पार्टी के अंदर नेताम परिवार को लेकर विवाद और बड़ गया. नतीजा अरविंद नेताम का कांग्रेस से नाता टूट गया.
कांग्रेस छोड़, बसपा की ओर
कांग्रेस पार्टी से दो दशक से अधिक समय का साथ आखिकार दो बड़े कांड के बाद छूट गया. 1997 में नेताम कांग्रेस पार्टी को छोड़ बहुजन समाज पार्टी की ओर बड़ चुके थे. कांग्रेस में 5 बार सांसद और दो बार केंद्रीय मंत्री रहने वाले नेताम अब बसपा में राष्ट्रीय महासचिव बन गए थे. बसपा सुप्रीमो मायावती ने बड़ा पद देकर नेताम का पार्टी में स्वागत किया था. 1998 में अरविंद नेताम बसपा की टिकट से चुनाव लड़े, लेकिन पहली बार चुनाव लड़ रहे भाजपा नेता सोहन पोटाई से हार गए.
हार के बाद घर लौटे और…
1998 में लोकसभा चुनाव हारने के बाद नेताम ने बसपा का साथ छोड़ दिया. नेताम की घर वापसी हो गई. वे कांग्रेस पार्टी में लौट आए. 1999 में पार्टी ने नेताम की पत्नी छबिला को टिकट दी. लेकिन छबिला भी सोहन पोटाई से हार गईं. धीरे-धीरे कांग्रेस पार्टी में नेताम कमजोर होते चले गए. पार्टी के अंदर वह खुद को उपेक्षित महसूस करने लगे. 2000 में मध्यप्रदेश अलग होकर छत्तीसगढ़ नया राज्य बना तो भी नेताम को कोई बड़ी जिम्मेदारी पार्टी में नहीं मिली. 2003 विधानसभा चुनाव के दौरान भी. नतीजन नेताम फिर कांग्रेस पार्टी से अलग हो गए.
राकांपा से भाजपा तक
राजनीतिक महत्वकांक्षा कहे या कुछ और नेताम का दल-बदलने का सिलसिला जारी रहा. कांग्रेस और बसपा के बाद अब बारी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से जुड़ने की थी. 2003 विधानसभा चुनाव के ठीक कुछ दिन पहले नेताम राकांपा से जुड़ गए. हालांकि नेताम राकांपा को चुनाव में किसी तरह का कोई फायदा नहीं पहुँचा पाए. एनसीपी में भी नेताम का मन अधिक दिनों तक नहीं लगा और जल्द ही शरद पवार का साथ छोड़कर भाजपा में चले गए. 2004 लोकसभा चुनाव के ठीक पहले नेताम भाजपा में शामिल हो गए. लेकिन छत्तीसगढ़ में भाजपा सरकार बनने के बाद भी नेताम हाशिए पर ही रहे.
घूम-फिरकर फिर घर लौटे
दो बार कांग्रेस छोड़ने के बाद बसपा, राकांपा और भाजपा में जाने वाले अरविंद नेताम घूम-फिरकर एक बार फिर घर की ओर लौट आए थे. 2008 विधानसभा चुनाव के ठीक एक साल पहले कांग्रेस में उनकी वापसी हो गई थी. आने-जाने के बीच नेताम के हिस्से पाने को शायद अब कुछ रह नहीं गया था. कांग्रेस पार्टी में वे होकर भी नहीं जैसे ही रहे. 2012 के आते-आते नेताम की स्थिति यह हो गई कि वे पार्टी लाइन से हटकर बगवात कर बैठे. परिणाम यह हुआ कि कांग्रेस ने नेताम को निलंबित कर दिया.
एनपीपी से जुड़ा मन, राज्य में तीसरा मोर्चा संग
2012 में राष्ट्रपति का चुनाव हो रहा था. कांग्रेस की ओर से प्रणब मुखर्जी उम्मीदवार थे. दूसरी ओर एनपीपी के नेता पीए संगमा लड़ रहे थे. अरविंद नेताम ने कांग्रेस प्रत्याशी का समर्थन न कर संगमा का समर्थन किया. नेताम को पार्टी विरोधी होने के चलते निलंबित किया गया और वे एनपीपी से जुड़ गए. एनपीपी और छत्तीसगढ़ के अन्य दलों को लेकर 2013 विधानसभा चुनाव में तीसरा मोर्चा का गठन किया. चुनाव लड़े, लेकिन कामयाबी हासिल करने में विफल रहे. इसके बाद उनका राजनीति में वनवासकाल चलते रहा.
जय छत्तीसगढ़ पार्टी का गठन
राजनीतिक संघर्षों के बीच नए विकल्पों की तलाश में जुटे अरविंद नेताम ने एक बड़ा निर्णय लिया. अभी तक वह एक दल से दूसरे दल में आते-जाते रहे. लेकिन 2017 में उन्होंने खुद की पार्टी बनाई. उन्होंने भाजपा छोड़ चुके सोहन पोटाई के साथ मिलकर जय छत्तीसढ़ पार्टी का गठन किया. हालांकि इससे पहले ही वे सर्व आदिवासी समाज को स्वरूप देना शुरू कर चुके थे. इससे पहले कि जय छत्तीसगढ़ पार्टी के साथ वे 2018 का चुनाव लड़ते, पार्टी को खत्म कर दिया.
बदला मन, राहुल संग
2018 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी की लहर छत्तीसगढ़ में चल पड़ी थी. बस्तर से लेकर सरगुजा तक परिवर्तन दिखाई दे रहा था. लिहाजा नेताम का भी हृदय परिवर्तित हो चुका था. उन्होंने कांग्रेस पार्टी में लौटने का एक बार फिर मन बना लिया. बदले हुए मन को राहुल का संग मिला लिया. नेताम राहुल गांधी से मिलने के बाद उनके चुनावी मंच से कांग्रेस में फिर लौट आए थे. राज्य में सत्ता का परिवर्तन हुआ. कांग्रेस की सरकार बनी. भूपेश बघेल मुख्यमंत्री बने. लेकिन नेताम की नहीं बनी. कांग्रेस सरकार के साथ नेताम एडजस्ट नहीं हो पाए. धीरे-धीरे खींचतान बढ़ती चली गई. दूरियां बड़ने के साथ ही नेताम कांग्रेस सरकार के खिलाफ मुखर हो चुके थे.
फिर छूटा साथ, सर्व आदिवासी समाज
कांग्रेस का साथ एक बार फिर नेताम छोड़ रहे थे. नेताम अब कांग्रेस की जगह समाज की राजनीति में सक्रिय हो गए थे. सोहन पोटाई के साथ सर्व आदिवासी समाज को राजनीतिक तौर पर आगे बढ़ाने लगे थे. पोटाई समाज के अध्यक्ष और नेताम संरक्षक के तौर पर आदिवासी अधिकारों को लेकर सरकार आर-पार लड़ने के लिए खड़े हो चुके थे. 2022 में भानुप्रतापपुर विधानसभा उपचुनाव में उन्होंने कांग्रेस में रहते समाज को चुनाव में खड़ा कर दिया. पार्टी ने नेताम को नोटिस दे दिया. नेताम चुनाव जीतने में सफल नहीं हुए, लेकिन कांग्रेस-भाजपा के बीच समाज की राजनीतिक उपस्थिति दर्ज कराने में सफल रहे.
समाज के साथ, ‘हमर राज’
कई दलों में आने-जाने के बाद भी अरविंद नेताम की राजनीतिक इच्छा समाप्त नहीं हुई है. वह आज भी कांग्रेस और भाजपा के छत्तीसगढ़ में एक तीसरे विकल्प के लिए लड़ रहे हैं. उन्होंने इसका ट्रेलर उपचुनाव में दिखाया था, लेकिन अब पिक्चर वह 2023 चुनाव में दिखाना चाहते हैं. लिहाजा उन्होंने सर्व आदिवासी समाज को साथ लेकर छत्तीसगढ़ में अपनी एक नई पार्टी बना ली है. नेताम की नई पार्टी का नाम है- ‘हमर राज’. हमर राज के जरिए वह 50 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुके हैं. ज्यादातर सीटों पर आदिवासी समाज के नेता ही चुनाव लड़ेंगे. उन सीटों पर भी जो कि आदिवासियों के लिए आरक्षित नहीं है. इसके पीछे नेताम का मकसद सर्व आदिवासी समाज को राजनीतिक तौर पर ताकतवर बनाना है.
1998 के बाद, सफलता की आस
1998 में लोकसभा चुनाव हारने के बाद से ही बीते 25 सालों से राजनीतिक तौर पर सफल होने की कोशिश में अरविंद नेताम जुटे हुए हैं. लेकिन कई दलों से जुड़ने के बाद भी वे इसमें सफल नहीं हो पाए हैं. ऐसे में अब सर्व आदिवासी समाज की पार्टी ‘हमर राज’ से सफलता की आस उन्हें पूरा है. 32 फीसदी आदिवासी आबादी बाहुल्य छत्तीसगढ़ में आदिवासियों का साथ हमर राज को कितना मिल रहा है और इसमें नेताम किस हद तक सफल हो पाएंगे यह 3 दिसंबर को आने वाला चुनाव परिणाम बताएगा.