कर्ण मिश्रा, ग्वालियर। गांधी-गोडसे और ग्वालियर! जी हां आज राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पुण्यतिथि है, पूरा देश आज उन्हे नमन कर रहा है,आज ही के दिन बापू की गोली मारकर हत्या की गई थी,लेकिन क्या आप जानते है महात्मा गांधी  की हत्या की साजिश ग्वालियर में रची गई थी। महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए पढ़िए ये स्पेशल रिपोर्ट। 

गोडसे ने ग्वालियर आकर पिस्टल खरीदी थी

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या की साजिश ग्वालियर में रची गई थी। आज भी इतिहास के काले पन्ने इसकी खुद गवाही देते है, बापू के हत्यारे नाथूराम गोडसे ने ग्वालियर आकर पिस्टल खरीदी थी और स्वर्णरेखा नदी में रिहर्सल भी की थी। गोडसे को इस काम में हिंदू महासभा के नेताओं ने ग्वालियर में रुकने से लेकर पिस्टल दिलाने तक मे मदद की थी।

स्वर्णरेखा नदी के किनारे गोडसे ने पिस्टल चलाने की रिहर्सल की

बिना खड़क बिना ढाल भारत को आजादी दिलाने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की शहादत 30 जनवरी 1948 को हुई थी। महात्मा गांधी के कातिल नाथूराम गोडसे ने हत्या की पूरी प्लानिंग और तैयारी ग्वालियर में आकर की थी। ग्वालियर हिंदू महासभा का एक बड़ा गढ़ हुआ करता था। यही वजह है कि महात्मा गांधी की हत्या के लिए प्लानिंग और रिहर्सल के लिए नाथूराम गोडसे ने ग्वालियर को चुना था। हिंदू महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. जयवीर भारद्वाज का दावा है कि नाथूराम गोडसे सहित चार लोगों ने मिलकर महात्मा गांधी की हत्या के लिए प्लानिंग की थी।  ग्वालियर में उन्हें सिंधिया राजवंश के एक अफसर से पिस्टल मुहैया कराई थी तो वहीं स्वर्णरेखा नदी के किनारे गोडसे ने पिस्टल चलाने की रिहर्सल भी की थी। ग्वालियर में तैयारियों को पुख्ता करने के बाद नाथूराम गोडसे अपने साथी नारायण आप्टे के साथ ग्वालियर से दिल्ली रवाना हो गया था।

फौजी की तरह गोडसे और नारायण आप्टे भीड़ में शामिल हो गए

दिल्ली में 30 जनवरी 1948 की शाम 5 बजे महात्मा गांधी प्रार्थना सभा के लिए रवाना हुए थे। इस दिन महात्मा गांधी को देखने के लिए आम दिनों के मुकाबले भीड़ ज्यादा थी। फौजी की तरह लिबास ओढ़कर नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे भीड़ में शामिल हो गए।  प्रार्थना सभा में महात्मा गांधी अपनी दो सहयोगियों के कंधे पर हाथ रखकर जा रहे थे। उसी दौरान नाथूराम गोडसे ने सामने आकर महात्मा गांधी के पैर छुए और उसके बाद पिस्टल से एक के बाद एक तीन फायर कर दिए। गोडसे की पिस्टल से निकली तीनों गोलियां महात्मा गांधी के शरीर में जा धंसी। खून से लथपथ महात्मा गांधी को अस्पताल ले जाया गया, तो वहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। बापू की मौत की खबर सुनकर पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई।

कांग्रेस का कहना है कि ग्वालियर के साथ ये काला अध्याय भी जुड़ा है कि अहिंसा के पुजारी की हत्या का षड़यंत्र ग्वालियर में रचा गया था। आज भी उस जगह गोडसे की विचारधारा जिंदा है। गांधी की हत्या के वर्षों बाद भी कभी गोडसे की जयंती मनाने तो कभी मंदिर बनाने की कोशिशें हो रही है।

उधर बीजेपी का कहना है कि गोडसे का ग्वालियर आना और यहां के लोगों का उनके साथ इंवॉल्व होना यह कहीं भी प्रमाणित नही है,फिर भी हिंदू महासभा इस मुद्दे को उठती रहती है और गोडसे की उपासना करती रहती है,हम तो सिर्फ इतना कहते है कि गांधी जी भी राम के उपासक थे और भाजपा भी राम की उपासक है भारतीय जनता पार्टी ने महात्मा गांधी के कार्यों और विचारों को आगे बढ़ाया है।

हालांकि शहर के वरिष्ठ पत्रकार देव श्री माली का कहना है कि यूं तो महात्मा गांधी का ग्वालियर से कभी सीधा नाता नहीं रहा है और ना ही वे आजादी के आंदोलन के दौरान कभी ग्वालियर आए, लेकिन महात्मा गांधी की हत्या के बाद से एक चर्चा हमेशा से रही है कि नाथूराम गोडसे ने ग्वालियर में स्वर्ण रेखा नदी में हथियार चलाने की रिहर्सल की थी और उसके बाद बापू की हत्या की थी।

बहरहाल महात्मा गांधी की हत्या के फौरन बाद नाथूराम गोडसे को गिरफ्तार कर लिया गया। महात्मा गांधी की हत्या के बाद  कोर्ट में मामले की सुनवाई हुई, जहां नाथूराम गोडसे और उनके साथियों को महात्मा गांधी की हत्या के लिए दोषी ठहराया गया। आखिर में 15 नवंबर 1949 को नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को अंबाला जेल में ही फांसी पर लटकाया गया। ग्वालियर में महात्मा गांधी की हत्या की साजिश रची गई थी उसी ग्वालियर में 2017 में हिंदू महासभा गोडसे के मंदिर बनाने की कोशिश की थी। यही वजह है कि देश जब जब बापू को नमन करता है तब तब “गांधी गोडसे और ग्वालियर” का काला अध्याय सामने आ जाता है।

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