विनोद दुबे, रायपुर। विकास के दावों के बीच जो जानकारी निकल कर सामने आ रही है वो बेहद ही चौंकाने वाली है. आप ये जानकर चौंक जाएंगे कि देश के सबसे पिछड़े राज्यों में शुमार छत्तीसगढ़ आत्महत्या के मामले में देश में तीसरे नंबर पर हैं. जो आंकड़े सामने आ रहे हैं वो सरकार के दावों के साथ ही सरकार के औचित्य पर भी सवालिया निशान लगा रही है. जहां विकास का आशय क्या सिर्फ सड़क और नाली ही है या फिर लोगों के स्वास्थ्य से जुड़े मसले भी इसमें शामिल है. क्या सरकार लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने में असफल है या फिर ऐसे वो कौन से कारण हैं जिनकी वजह से देश के साथ ही प्रदेश में आत्महत्या की दर इतनी तेजी से बढ़ी है.
NMHS की 2016 की रिपोर्ट के मुताबिक प्रति 1 लाख में छत्तीसगढ़ में 22.4 और देश में 10.6 है. जिसमें पुरुष आत्महत्या की दर 29.32 छत्तीसगढ़ में और देश में यह दर 14.30 है वहीं महिलाओं की आत्महत्या की दर 15.10 छत्तीसगढ़ में और देश में यह दर 7.24 है. इसका मतलब यह है कि महिलाओं के मुकाबले में पुरुषों में आत्महत्या की दर दोगुनी है. 14 साल से कम उम्र के किशोर-किशोरियों में छत्तीसगढ़ में यह दर 1.28 और देश में 0.50 है. 14 से 18 साल के बीच में आत्महत्या की दर छत्तीसगढ़ में 20.37 और देश में 9.52 थी. 18 से30 साल के उम्र के युवाओं में आत्महत्या की दर सबसे ज्यादा है. आंकड़ों के मुताबिक छत्तीसगढ़ में 37.94 और देश में 17.15 है. 30 से 45 वर्ष के व्यक्तियों में यह दर घटकर छत्तीसगढ़ के लिहाज से 32.91 और देश में 17.22 थी. देश में 30 से 45 वर्ष के बीच आत्महत्या की दर 18 से 30 वर्ष के युवाओं की अपेक्षा ज्यादा है. इधर 45 से 60 वर्ष के बीच के प्रौढ़ो में यह दर छत्तीसगढ़ के भीतर 32.44 और देश में 15.74 है. वहीं 60 साल और उससे अधिक उम्र के लोगों में यह दर छत्तीसगढ़ में 18.06 और देश में 9.40 है. ये जो आंकड़े हैं वह प्रति 1 लाख व्यक्तियों पर है. नेशनल मेन्टल हेल्थ सर्वे की यह रिपोर्ट नेशनल क्राइम रिकार्ड्स आफ ब्यूरो की 2014 की रिपोर्ट पर आधारित है.
अाखिर क्यों बढ़ रही है आत्महत्या की प्रवृत्ति
ये थे वो आंकड़े जो बता रहे हैं कि छत्तीसगढ़ में किस तरह से आत्महत्या की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ी है. लेकिन इन सबके पीछे जो बातें निकल कर सामने आ रही है वो न सिर्फ सरकार के लिए चिंता की जरुरत है बल्कि हमारे लिए भी सोचने की जरुरत है. इन सबके पीछे सरकार को भी हम जिम्मेदार क्यों ठहरा रहे हैं वो भी हम आपको बताएंगे. लेकिन उससे पहले देश और प्रदेश में आत्महत्या की प्रवृत्ति क्यों बढ़ रही है और हम खुद इसके लिए क्यों जिम्मेदार हैं उसे बताते हैं. National Institute of Mental Health and Neuro Sciences Bengaluru (NIMHANS) के रजिस्ट्रार के. सेकर ने लल्लूराम डॉट कॉम से बातचीत में संयुक्त परिवार का टूटना, बेरोजगारी, आर्थिक हालात, मोबाइल का बढ़ता उपयोग को सबसे ज्यादा जिम्मेदार माना है. उनके अनुसार पहले संयुक्त परिवार हुआ करते थे जहां दादा-दादी किसी मनोचिकित्सक की तरह सारी उलझनों को सुलझाया करते थे. वहीं मोबाइल को आत्महत्या के पीछे सबसे बड़ा जिम्मेदार मानने के पीछे उन्होंने बताया कि पहले परिवार में सब लोग एक साथ बैठते थे आपस में बातचीत किया करते थे लेकिन स्मार्ट फोन आने के बाद परिवार के अंदर दूरियां बढ़ गई है. पति-पत्नी और माता-पिता व बच्चे सब अपने अपने मोबाइल में व्यस्त हैं. किसी के पास एक दूसरी की तकलीफें जानने तक का भी समय नहीं है.
वहीं Ministry of Health and Family Welfare के Addl DDG डॉ आलोक माथुर ने भी लल्लूराम डॉट कॉम से बातचीत में छत्तीसगढ़ में आत्महत्या के आंकड़ों पर अपनी चिंता जाहिर की है. उन्होंने इसके लिए ऊपर दिए गए सभी कारणों के अलावा नशे की प्रवृत्ति को भी एक बड़ी वजह माना है. उनका कहना है कि लोगों को नशे के प्रति जागरुक किए जाने की आवश्यकता है.
इसलिए है सरकार जिम्मेदार
हम सरकार को जिम्मेदार इसलिए बता रहे हैं कि क्योंकि सरकार की जिम्मेदारी सभी मूल भूत सुविधाओं को मुहैया कराने की है जिसमें कि स्वास्थ्य सेवाएं भी आती है. लेकिन जो आंकड़े स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर है वो हमारे और आपके लिए चिंताजनक तो है ही साथ ही सरकारों के लिए भी. यह इसलिए है कि देश प्रदेश में जितनी भी सरकारें आई है. उन्होंने इस विषय पर उतनी गंभीरता नहीं दिखाई जितना उन्हें दिखानी चाहिए थी. नेशनल मेन्टल हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट के मुताबिक जो आंकड़े हैं वो भी इसी ओर इंगित कर रहे हैं. सामान्य स्वास्थ्य सुविधाओं में प्रदेश पिछड़ा तो है ही साथ ही मानसिक स्वास्थ्य सुविधाओं में छत्तीसगढ़ की स्थिति सबसे ज्यादा चिंताजनक है.
प्रदेश में 2 मानसिक चिकित्सालय ही हैं. जबकि प्रदेश में जिलों की संख्या 27 और आबादी ढ़ाई करोड़ से ज्यादा है. 1 लाख की आबादी के पीछे यह 0.01 से भी कम है. प्रदेश में मनोरोग विभाग के साथ मौजूद मेडिकल कालेज 6 ही हैं जिसकी दर 0.02 है. सामान्य अस्पताल जिनमें मनोरोग यूनिट मौजूद है उनकी संख्या प्रदेश में 16 ही है.वहीं प्रदेश के मानसिक चिकित्सालयों में मरीजों को भर्ती करने के लिए महज 112 बेड ही हैं जो कि प्रति लाख आबादी के लिहाज से 0.44 प्रतिशत ही है. इसके साथ ही प्रदेश में व्यसन मुक्ति यूनिट/सेंटर की संख्या 49 है. ये जो आंकड़े हैं वे सरकारी और निजी स्वास्थ्य सेवाओं के हैं.
वहीं प्रदेश में मनोचिकित्सकों की संख्या महज 37 है. अगर एक लाख आबादी की जनसंख्या में मनोचिकित्सकों की संख्या देखेंगे तो यह अपने आप में बेहद शर्मनाक आंकड़ा है जो कि 0.14 है याने कि 1 लाख की आबादी के पीछे 1 डाक्टर भी मौजूद नहीं है. वहीं क्लिनिकल साइकोलाजिस्ट की संख्या 17 है जो कि 1 लाख की आबादी में इनकी संख्या 0.07 है. उधर नर्सों की बात करें तो मात्र 5 नर्सें ही क्वालीफाइड हैं जिनके पास डिप्लोमा इन साइकिएट्रिक नर्सिंग है. साइकिएट्रिक सोशल वर्करों की संख्या 22 है. प्रोफेशनल और पैरा प्रोफेशनल साइको सोशल काउंसलरों की संख्या 127 है. वहीं रिहैब्लीटेशन वर्करों और स्पेशल एजुकेशन टीचरों की संख्या 235 है.
आंकड़ो ने बढ़ाई चिंता
मेंटल स्ट्रेस या मानसिक तनाव के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. परिवार और दोस्तों का साथ न होने की वजह लोगों में एकाकीपन बढ़ता जा रहा है. जिसकी वजह से लोग आत्महत्या की ओर अग्रसर हो रहे हैं.
छत्तीसगढ़ में आत्महत्या के आंकड़ों ने डब्लूएचओ के साथ ही मेंटल हेल्थ प्रोग्राम से जुड़े संस्थानों को भी चिंता में डाल दिया है. देशभर से विभिन्न संस्थाओं के विशेषज्ञ और डब्लूएचओ के सदस्य इस मामले को लेकर इकट्ठा हुए हैं. ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए जरूरी कदम उठाए जाने को लेकर विशेषज्ञों की टीम एक साथ काम करने पर राजी हुई है.