Special Report : सत्या राजपूत, रायपुर। छत्तीसगढ़ में नया शिक्षा सत्र 16 जून से शुरू होने वाला है. लेकिन स्कूलों में किताबों की कमी ने हड़कंप मचा दिया है. एक तरफ कुछ ऐसे जिले हैं, जहां पुस्तकें पहुंची हैं तो स्कूलों में वितरण नहीं हुआ है. तो वहीं दूसरी तरफ ऐसे भी जिले हैं जहां एक भी पुस्तक अभी तक पहुंची ही नहीं है. ऐसे में सवाल उठाए जा रहे हैं कि पुस्तकें मिली ही नहीं हैं तो स्कूलों में पढ़ाई कैसे होगी? क्योंकि कई कक्षाओं के पाठ्यक्रम में बदलाव किया गया है, ऐसे में पुराने पुस्तक से भी पढ़ाई कराना संभव नहीं है.


मिली जानकारी के मुताबिक, कक्षा 1 से 8वीं तक की पूस्तक वितरण की बात करें दंतेवाड़ा, दुर्ग, गरियाबंद, कांकेर कवर्धा, नारायणपुर और सुकमा में अभी खाता नहीं खुला है. बलरामपुर में 4%, कोंडागांव में 5% खैरागढ़ में एक प्रतिशत और मनेंद्रगढ़ चिरमिरी में 6% पुस्तकों का वितरण हुआ है, तो वहीं सर्वाधिक गौरेला-पेंड्रा-मरवाही में सरकारी स्कूलों में शत प्रतिशत और रायपुर में 81 प्रतिशत, जशपुर में 51%, बस्तर में 92% पुस्तकों का वितरण हुआ है.
वहीं प्रदेश के हाई स्कूल में दंतेवाड़ा, बीजापुर और मनेन्द्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर में अभी खाता नहीं खुला है. बलरामपुर में 13 प्रतिशत, खैरागढ़-छुईखदान में 15 प्रतिशत, तो वहीं सर्वाधिक वितरण बस्तर में शत प्रतिशत, बालोद में शत प्रतिशत, कोरबा में शत प्रतिशत और नारायणपुर, मुंगेली जिले में पुस्तकों का वितरण हो चुका है.
शालाएं शिक्षक संघ के अध्यक्ष वीरेंद्र दूबे ने कहा कि अभी स्कूलों में किताब पहुंचा नहीं हैं. जिस तरह से शिक्षा में गुणवत्ता के लिए युक्तियुक्त करण को सरकार प्राथमिकता से ले रही है, वैसी बच्चों की पढ़ाई को भी प्राथमिकता से ले. साथ ही स्कूल खुलने से पहले स्कूल में पुस्तक जल्द उपलब्ध कराएं. पुस्तक पहुंचेगा ही नहीं तो शिक्षा में गुणवत्ता कैसे आएगी.
प्रदेश शिक्षक फेडरेशन के अध्यक्ष राजेश चैटर्जी ने कहा कि कुछ-कुछ स्कूलों में पुस्तक सप्लाई शुरू हुआ है. अभी सभी स्कूलों में पुस्तक नहीं पहुंचा है. आधे से अधिक स्कूलों में बच्चों को शिक्षा सत्र प्रारंभ होने के बाद भी पुस्तक के लिए इंतज़ार करना पड़ सकता है.
प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन के अध्यक्ष राजीव गुप्ता ने तंज कसते हुए कहा कि 16 जून को स्कूल प्रवेशोत्सव है. क्या हम बच्चों को तिलक लगाकर खाली हाथ वापस भेज दें? उन्होंने बताया कि स्कूल खुलने से पहले किताबें स्कूलों तक पहुंचाने का प्रावधान है, लेकिन इस बार व्यवस्था पूरी तरह चरमराई हुई है. प्रदेश के 8 हजार निजी स्कूलों में से 6 हजार इंग्लिश मीडियम हैं, जहां हिंदी और अंग्रेजी माध्यम में 12 लाख से ज्यादा विद्यार्थी पढ़ते हैं. इन स्कूलों को भी सरकार की ओर से निशुल्क किताबें दी जाती हैं. कुछ चुनिंदा हिंदी माध्यम के स्कूलों को छोड़ दें तो इस बार किताबों का अता-पता नहीं है.
अशासकीय स्कूल संघ की मांग
अशासकीय स्कूल संघ ने किताबों की इस कमी को देखते हुए स्कूल खोलने की तारीख आगे बढ़ाने की मांग की है. संघ ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर इस मुद्दे पर तत्काल हस्तक्षेप की गुहार लगाई है. साथ ही, स्कूल शिक्षा सचिव की लापरवाही पर कार्रवाई की मांग भी उठ रही है.
सेटिंग का खेल
छत्तीसगढ़ पैरेंट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष क्रिष्टोफर पॉल ने कहा पाठ्यपुस्तक निगम द्वारा पुस्तकों को समय पर स्कूलों में नहीं भेजा जाता है. जिसका लाभ निजी स्कूलों को मिलता है और वे इस कमजोरी का लाभ उठाकर प्राइवेट प्रकाशकों की किताबों से अध्ययापन करवाते हैं और पलकों को लूटा जाता है. ऐसा प्रतित होता है कि पाठ्यपुस्तक निगम और प्राइवेट स्कूल की मिलीभगत से यह सब प्रतिवर्ष खेल चल रहा है ताकि बाद में किताबों को कबाड़ियों को बेचा जा सके.
पाठ्यपुस्तक निगम का दावा, 80% प्रिंटिंग पूरी
पाठ्यपुस्तक निगम के अध्यक्ष राजा पांडेय ने दावा किया कि किताबों की छपाई और वितरण का काम तेजी से चल रहा है. उन्होंने कहा कि 80% प्रिंटिंग हो चुकी है और अगले दो-तीन दिनों में बाकी 20% भी पूरा हो जाएगा.
पाठ्यपुस्तक निगम के जनरल मैनेजर डीकेस पटेल ने बताया कि हाई स्कूलों के लिए 70% किताबें तैयार हैं, जबकि संकुल स्तर पर 40-45% किताबें पहुंचाई जा चुकी हैं. उन्होंने प्राइवेट स्कूलों को सलाह दी कि वे डिपो से संपर्क कर किताब ले सकते हैं.
46 हजार स्कूल, 56 लाख विद्यार्थी
प्रदेश में लगभग 46 हजार स्कूल हैं, जहां 56 लाख से ज्यादा विद्यार्थी पढ़ते हैं. कक्षा 10वीं तक निशुल्क किताब वितरण का प्रावधान है, लेकिन इस बार की देरी ने अभिभावकों और शिक्षकों को चिंता में डाल दिया है. बच्चे पढ़ेंगे कैसे और शिक्षक पढ़ाई कैसे कराएंगे. क्योंकि इस बार अलग-अलग कक्षों की सिलेबस में बदलाव किया गया है. तो पुराने पुस्तक में भी पढ़ाई नहीं करा सकते हैं
लापरवाही, गड़बड़ी से नाता
यह पहली बार नहीं है जब किताबों को लेकर विवाद हुआ हो. पिछले साल सितंबर 2024 में रायपुर के सिलयारी, अभनपुर में सरकारी किताबें रद्दी में बिकने की खबर ने सनसनी मचा दी थी. तब मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने पाठ्यपुस्तक निगम के महाप्रबंधक प्रेम प्रकाश शर्मा को निलंबित कर दिया था. और कई अधिकारी कर्मचारियों पर कार्रवाई की गई थी. अब एक बार फिर किताबों की कमी ने शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं..
बड़ी कार्रवाई नहीं होने से हौसला बुलंद ?
पुस्तक घोटाला गर्माया तब तत्कालीन तौर पर कार्रवाई की गई उसके बाद एसीएस लेवल पर जांच कमेटी गठित की गई जांच रिपोर्ट आने के बाद पांच अलग-अलग शिक्षा अधिकारियों को दोषी बताया गया है. बावजूद अब तक कार्रवाई नहीं हुई है. महज जांच रिपोर्ट के आधार पर नोटिस जारी किया गया है.
एक के बाद एक शिक्षा विभाग में हो रही गड़बड़ी, भ्रष्टाचार और इस लापरवाही में शिक्षा सचिव कैसे अंकुश लगाएंगे यह जानने के लिए शिक्षा सचिव सिद्धार्थ कोमल परदेशी को तीन बार कॉल किया गया, कॉल का कोई जवाब नहीं मिला, ख़बर बनते तक कोई रिप्लाई नहीं मिला. ऐसे में इससे क्या समझा जाए आखिरकार शिक्षा सचिव सिद्धार्थ कोमल परदेशी इन सब मामलों में मौन क्यों हैं ? इनके ख़ामोशी के पीछे क्या वजह है ? क्या शिक्षा सचिव का शिक्षा विभाग में कंट्रोल नहीं है ? या फिर इनके साथ काम करने वाले अधिकारी कर्मचारियों का किसी का डर नहीं है ?
उठते सवाल
जैसे-जैसे स्कूल खुलने की तारीख नजदीक आ रही है, शिक्षा विभाग और पाठ्यपुस्तक निगम पर दबाव बढ़ रहा है. क्या समय रहते किताबें स्कूलों तक पहुंच पाएंगी या नया सत्र बिना किताबों के शुरू होगा? यह सवाल हर अभिभावक और शिक्षक के मन में है. फिलहाल, सभी की निगाहें सरकार के अगले कदम पर टिकी हैं.
- छत्तीसगढ़ की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- लल्लूराम डॉट कॉम की खबरें English में पढ़ने यहां क्लिक करें
- खेल की खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें