डॉ. वैभव बेमेतरिहा –
रायपुर . छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव-2023 को लेकर हमारी स्पेशल रिपोर्ट की ये 13 वीं कड़ी है. इसी श्रृंखला में दल बदलने और पार्टी छोड़ने वाले शीर्ष नेताओं की कहानी भी आप पढ़ रहे हैं. पार्टी छोड़ने और नई पार्टी से जुड़ने वाले नेताओं की सफलता और विफलता पर आधारित यह पाँचवीं स्टोरी है. यह कहानी उस राजनेता की है, जो खुद को समाज का नेता कहना पसंद करते थे.
स्व. सोहन पोटाई ( जन्म 29 अप्रैल 1958, मृत्यु 9 मार्च 2023 )
उत्तर बस्तर में भाजपा को स्थापित करने वाले और लोकसभा चुनाव में जीत का रिकॉर्ड बनाने वाले नेता जब पार्टी छोड़कर गए तो फिर समाज के नेता बनकर रह गए, विजेता नहीं बन पाए. बात हो रही है दिग्गज आदिवासी नेता स्व. सोहन पोटाई की.
सोहन पोटाई सरकारी नौकरी को छोड़कर राजनीति में आने वाले आदिवासी नेता थे. उच्च शिक्षित पोटाई कांकेर क्षेत्र में सहायक पोस्ट मास्टर थे. इंदिरा गांधी सरकार के समय आपातकाल के दौरान नौकरी छोड़कर आदिवासियों के हक-अधिकारों के लिए काम करने लगे. इस दौरान जनसंघ के संपर्क में आए और 70 के दशक में उन्होने अपनी राजनीतिक की शुरुआत की.
जनसंघ से सफर शुरू हुआ और भाजपा के साथ राजनीति आगे बढ़ी. धीरे-धीरे उन्होने कांग्रेस के गढ़ कांकेर में भाजपा को स्थापित कर दिया. पोटाई सामाजिक प्रभाव और कार्यों को देखते हुए भाजपा ने 1998 में लोकसभा की टिकट दे दी. पार्टी ने उन्हें बस्तर में कांग्रेस के सबसे बड़े नेता रहे महेन्द्र कर्मा के सामने उतारा था. पार्टी की उम्मीदों पर पोटाई खरा उतरे और अपने पहले ही चुनाव में महेन्द्र कर्मा को हराकर संसद पहुँच गए.
उत्तर बस्तर कांकेर में इस जीत के साथ सोहन पोटाई बड़े नेता बन चुके थे. 1999 में भाजपा ने दोबारा पोटाई को लोकसभा चुनाव में मौका दिया. इस बार पोटाई का मुकाबला कांग्रेस में दिग्गज नेता रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम से था. कांकेर की जनता ने दोबारा पोटाई को भरपूर समर्थन दिया. नेताम को हराकर पोटाई दूसरी बार संसद में पहुँचने में सफल रहे. पार्टी टिकट देती रही और जीत का सिलसिला जारी रहा. 2004, 2009 में पोटाई चुनाव जीते और लगातार चार बार कांकेर से सांसद रहने का रिकार्ड बनाया. हालांकि 98, 99 में जीतने के बाद भी पोटाई केंद्र में भाजपा की सरकार रहने के बाद भी मंत्री नहीं बन पाए. इसका मलाल पोटाई को जीवन भर रहा. यही नहीं राज्य स्तर पर भी कोई बड़ी जिम्मेदारी पार्टी नहीं दी. पोटाई पार्टी में उपेक्षा महसूस करने लगे थे और पार्टी के खिलाफ खुलकर बोलने लगे थे. 2014 में जब पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दी तो उनकी नारजगी खुलकर सामने आई. उन्होने बगावत किया और पार्टी ने निष्कासित कर दिया.
भाजपा छोड़ने के साथ ही पोटाई किसी और दल के साथ तो नहीं जुड़े, लेकिन उन्होंने सर्व आदिवासी समाज का नेतृत्व करना शुरू किया. आदिवासी समाज के मुद्दों को लेकर मुखर हुए और सड़क पर उतर आर-पार लड़ाई की शुरुआत की कर दी. आरएसएस के कुछ पदाधिकारियों ने कांकेर लोकसभा क्षेत्र में उनके अच्छे प्रभाव को देखते हुए 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले उन्हें दोबारा पार्टी में लाने की कोशिश की थी, लेकिन वे नाकाम रहे थे. पोटाई खुलकर कड़ी आलोचना तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह और राष्ट्रीय सह-संगठन महामंत्री रहे सौदान सिंह की करने लगे थे. 18 के चुनाव में उन्होने भाजपा के खिलाफ खुला प्रचार भी किया था. विधानसभा चुनाव में भाजपा को बड़ा नुकसान हुआ था. लेकिन लोकसभा में भाजपा ने जोरदार वापसी की और भाजपा को जीत सोहन पोटाई नहीं रोक पाए थे.
2018 के चुनाव के बाद तेजी से सोहन पोटाई ने छत्तीसगढ़ में जल-जंगल-जमीन के मुद्दे के साथ सर्व आदिवासी समाज को खड़ा करना शुरू किया. पोटाई ने समाज के साथ एक राजनीतिक भविष्य की संभावना देखी. समाज को एक राजनीतिक पार्टी के रूप में कांग्रेस और भाजपा के समक्ष खड़ा किया. 2023 के विधानसभा चुनाव के पहले का ट्रेलर भानुप्रतापपुर उपचुनाव में दिखाया. लेकिन पोटाई को और सर्व आदिवासी समाज को सफलता नहीं मिल पाई. पोटाई नवंबर 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर सामाजिक तौर पर तैयारी कर रहे थे, लेकिन इसी बीच उनकी तबीयत बिगड़ती चली गई और 9 मार्च 2023 को कैंसर की बीमारी से पीड़ित रहे पोटाई संघर्ष और उम्मीदों के बीच दुनिया चल बसे.
आज सर्व आदिवासी समाज दो खेमों में बंट चुका है. एक सोहन पोटाई का तैयार किया हुआ गुट है, तो एक भारत सिंह का. सोहन पोटाई जिस सर्व आदिवासी समाज के अध्यक्ष रहे उसके संरक्षक वर्तमान में अरविंद नेताम हैं. वही अरविंद नेताम जिन्हें 1999 में सोहन पोटाई ने हराया था. अरविंद नेताम समाज के लोगों को साथ लेकर राजनीतिक पार्टी बना चुके हैं. पार्टी का नाम है ‘हमर राज’. नेताम और हमर राज की कहानी अगली कड़ी में.