फीचर स्टोरी. आदिवासी बाहुल्य राज्य छत्तीसगढ़ में भूपेश सरकार की कारगर नीतियों का व्यापक असर देखने को मिल रहा है. वनोपज पर निर्भर रहने वाली आदिवासी महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने, आर्थिक रूप से संपन्न बनाने सरकार विभिन्न तरह से काम कर रही है.

इस रिपोर्ट में सरकार की ओर किए जा रहे ऐसे ही प्रयासों को समझने और जानने की कोशिश करेंगे. आपको बताएंगे कि किस तरह से महिला समूहों को स्व-रोजगार उपलब्ध कराया जा रहा है. कैसे आदिवासी महिलाएं वनांचल से लेकर महानगरों तक अपनी छाप छोड़ती जा रही हैं.

इस रिपोर्ट में नक्सल प्रभावित दो जिलों की कहानी आपको बताने जा रहे हैं. पहली रिपोर्ट दंतेवाड़ा जिले की और दूसरी कहानी नारायणपुर जिले की. दोनों ही जिला अति पिछड़े वाले जिलों में भी शामिल है. बस्तर के इन जिलों की पहचान देश में नक्सल प्रभावित जिलों के रूप में होती है. लेकिन इन जिलों की पहचान अब विभिन्न नवाचारों और आदिवासी महिलाओं की आत्मनिर्भरता के लिए भी हो रही है.

भूपेश सरकार ने बीते 3 वर्षों में आदिवासी वर्ग के उत्थान के लिए जो काम किए उनमें प्रमुख से स्व-सहायता समूहों के जरिए महिलाओं का उत्थान प्रमुख है. राज्य सरकार की दो महत्वकांक्षी योजना नरवा-गरवा, घुरवा-बारी और गोधन के साथ-साथ वनांचल में उपलब्ध संसाधनों के जरिए विभिन्न उत्पादों का निर्माण भी किया जा रहा है.

वनांचल में किए जा रहे नव-प्रयोगों की मांग आज देश-दुनिया तक में हो रही है. गाँव-गाँव महिलाओं को समूहों के जरिए रोजगार उपलब्ध कराने का जो प्रयास राज्य सरकार ने किया है उसकी सराहना आज देश के सभी हिस्सों में हो रही है.

आम के आम और गुठलियों के दाम

दंतेवाड़ा की पहचान लौह नगरी के रूप में है. नक्सल प्रभावित इस इलाके में पाए जाने वाले लौह अयस्क की मांग दुनियाभर में है. यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता और विश्व प्रसिद्ध ढोलकल गणेश के साथ माँ दंतेश्वरी शक्ति पीठ की भी चर्चा है. लेकिन इन दिनों जिसे लेकर चर्चा हो रही है वो है आदिवासी महिलाओं की आत्मनिर्भरता.

राज्य सरकार की ओर से गाँव-गाँव में महिला समूहों का गठन किया जा रहा है. समूहों को गाँव में प्राप्त संसाधनों के जरिए स्व-रोजगार से जोड़ा जा रहा है. इस कड़ी में दंतेवाड़ा जिला प्रशासन की ओर से विशेष प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है. कई महिला समूहों को प्रशासन ने अमचूर पाउडर निर्माण करने का प्रशिक्षण दिया और फिर उन्हें स्व-रोजगार उपलब्ध कराया.

आज दंतेवाड़ा का अमचूर पाउडर एक ब्रांड बन चुका है. महिला समूहों की ओर से कच्चे आम की तोड़ाई की जाती है. फिर आमों को सुखाया जाता है. फिर उसे पाउडर बनाकर पैक किया जाता है. इस तरह से बाजार में बेचे जाने के लिए अमचूर पाउडर उपलब्ध हो जाता है.

जिला प्रशासन से मिली जानकारी के मुताबिक पहले जहाँ आम को स्थानीय बाजारों में कच्चे माल के रूप में बेचा जाता था. परन्तु अब कच्चे माल को बेचने के साथ ही आम को सुखा कर आमचूर पाउडर के रूप में प्रोसेसिंग कर बाजार में विक्रय किया जा रहा है. इससे ना सिर्फ अमचूर का वैल्यु एडिशन हो रहा, बल्कि यह महिलाओं के आमदनी बढ़ाने का एक अतिरिक्त जरिया भी बना है.

अमचूर पाउडर का निर्माण करने वाली आदिवासी महिलाएं कहती हैं कि कार्य के लिए जिला प्रशासन द्वारा उन्हें प्रशिक्षण दिया गया है, पहले जहां पारम्परिक तरीके से लोहे के औजार/छुरी से आम के छिलके निकालते थे, जिससे लोहे के प्रभाव में आकर आम काला पड़ जाता था. जिससे उसकी कीमत कम मिलती थी. अमचूर का रंग काला ना पड़े इसलिए स्टील के चाकू या सीप के खोल का उपयोग किया जा रहा है. महिलाओं द्वारा कच्चे माल को 70-80 रूपये प्रति किलोग्राम की दर से डैनेक्स को विक्रय किया गया हैं. डैनेक्स द्वारा सफेद अमचूर के प्रोसेसिंग एवं पैकेजिंग करके अमचूर के दर में वैल्यु एडीसन किया गया, जिससे महिलाओं को प्रत्यक्ष रूप से लाभ मिल रहा है. यह अमचूर डैनेक्स के नाम से बिक रहा है. जिले में उत्पादित अमचूर को डैनेक्स यानी दंतेवाड़ा नेक्सट के ब्रांड के साथ बाजार में उतारा गया, डैनेक्स दन्तेवाड़ा जिले का अपना ब्राण्ड है.

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल द्वारा 20 जून 2020 को वर्चुअल माध्यम से डैनेक्स अमचूर के 5000 पैकेट कि पहली खेप ट्राईफेड व अन्य कम्पनी हेतु रवाना की गयी थी. डैनेक्स सेफ फूड फार्मर प्रोडयूसर कंपनी अंतर्गत किसानो से आम इकट्ठा करके आधुनिक तरीके से अमचूर तैयार किया जा रहा हैं. अब तक इस कार्य से 650000 (छः लाख पचास हजार) के अमचूर का विक्रय किया जा चुका है जिसमें 150 महिलाएं लाभान्वित हो रही है.

अबूझमाड़ में बहार, कोदो-कुटकी वाला रोजगार

आदिवासी महिलाओं की आर्थिक उन्नति की दूसरी कहानी है अबूझमाड़ इलाके की. नारायणपुर जिला जो घोर नक्सल प्रभावित जिला माना जाता है. यहाँ ऐसे ढेरों गाँव हैं जहाँ विकास का पहुँचना बाकी है. लेकिन इस दिशा में कई नवाचारों के साथ प्रयास जारी है. राज्य सरकार आदिवासियों को उनके काम और स्थानीय संसाधनों की उपलब्धता के साथ स्वरोजागर मुहैया करा रही है. इसे समझने के लिए आपको जिले में कार्यरत् महिला समूह माँ दंतेश्वरी से परिचित कराते हैं.

नारायणपुर जिले में ग्राम पालकी में स्थापित माँ दंतेश्वरी महिला स्व-सहायता समूह आज जिले में सबसे उन्नत समूहों में से एक है. समूह की महिलाओं के पास आज अपना खुद का रोजगार है. महिलाएं आज 8 से 10 हजार रुपये तक की आमदनी प्राप्त कर रही हैं.

माँ दंतेश्वरी महिला समूह ने कोदो-कुटकी प्रसंस्करण का कार्य अपनाया. समूह की महिलाओं के मुताबिक पहले वे कृषि विज्ञान केन्द्र केरलापाल में रोजी-मजदूरी का काम करती थी, जिसमें उन्हें 120 से 150 प्रतिदिन के हिसाब से मजदूरी मिलती थी, जो की जीवन यापन के लिए पर्याप्त नहीं था. इसके अलावा घर के आवश्यकता की पूर्ति हेतु गांव में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गांरटी योजना में भी कार्य कर रही थी.

इसी दौरान उन्हें राज्य सरकार की ओर से कोदो-कुटकी-रागी को लेकर दिए जा रहे प्रोत्साहन योजना की जानकारी मिली. उन्हें ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत प्रशिक्षण भी दिया गया. उन्हें कृषि विज्ञान केंद्र के माघ्यम से प्राप्त प्रशिक्षण एवं कोदो, कुटकी रागी प्रसंस्करण एवं पैकेजिंग इकाई प्रदाय किया गया. वहीं राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका योजना बिहान से प्राप्त आर्थिक सहयोग जैसे बैंक लिंकेज 5 लाख, चक्रिय निधि – 15 हजार प्राप्त है। इस राशि से कोदो, कुटकी रागी प्रसंस्करण कार्य प्रारंभ किया.


इस कार्य करने के उपरान्त धीरे-धीरे हमारे समूह मां दन्तेश्वरी महिला स्व-सहायता समूह के सदस्यों को अच्छे आमदनी होने लगी. समूह के 3 सदस्य गांव-गांव में जा कर कोदो, कुटकी रागी किसानों से कोदो कुटकी 35 रूपये की दर से क्रय करने की कार्य करते है. क्रय करने के बाद उसे प्रसंस्करण केन्द्र में प्रसंस्करण कार्य करते है. फिर पैकेजिंग करके स्थानीय बाजार, दुकान और बाहरी बाजार में भी थोक एवं चिल्लर विक्रय करते है.


समूह की महिलाएं बताती हैं कि इस कार्य को विगत दो वर्ष से किया जा रहा है. इस कार्य से अब तक कुल बिक्री 4 लाख 50 हजार की हुई है, जिसमें से शुद्व आय 2 लाख 50 हजार रूपया हुआ है। समूह के सदस्यों को प्रतिमाह 8 से 10 हजार रूपये की आय हो जाती हैं.