रेणु अग्रवाल, धार। शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी है। आइए हम आपको ले चलते है मध्य प्रदेश के धार जिले की गढ़ कालिका मंदिर… जहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता हैं। गढ़कालिका मंदिर में बड़ी संख्या में भक्त दर्शन करने पहुंचते है। नवरात्रि में मां काली अपने भक्तों को तीन रूप में दर्शन देती है। सुबह बाल्यावस्था, दोपहर में यौवन अवस्था और शाम को वृद्ध के रूप में माता के दर्शन होते हैं।

इन्होंने की थी स्थापना

गढ़कालिका मंदिर 1700 साल पुराना है, जिसकी स्थापना परमार वंश वर्तमान में पवार वंश ने की थी। धार की माता कालिका 18 कुलो की देवी है। इसमें पवार राजघराना समेत उपाध्याय और क्षत्रिय समाज भी शामिल है। इन सभी समाज के लोग नवरात्रि में पूजा अर्चना के लिए धार पहुंचते हैं। सुबह काकड़ आरती के बाद मंदिर में दिनभर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।

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पुराना है इतिहास

इतिहास विदों की माने तो गढ़कालिका माता मंदिर का इतिहास काफी पुराना है। राजा विक्रमादित्य जब सौराष्ट्र विजय के लिए महाराष्ट्र की ओर जा रहे थे, तब उन्होंने उज्जैन में पूजा अर्चना करते हुए मां को साथ चलने का आह्वान किया था। विक्रमादित्य तंत्र और मंत्र के ज्ञाता थे। मां ने तब राजा के समक्ष यह शर्त रखी थी कि वह साथ चलने को तैयार है, लेकिन जब राजा पीछे पलट कर देखेगा तो वह वहीं रुक जाएगी।

गढ़कालिका में विराजित हो गई मां

राजा विक्रमादित्य अपनी सेना के साथ धार से गुजर रहे थे। तभी तेज बारिश हो रही थी। तालाबों का पानी घोड़े की कमर तक पहुंच गया था। यह देखने के लिए ही जैसे ही राजा विक्रमादित्य ने अपने मुंह पीछे घुमाया, इस समय मां धार के गढ़कालिका पर ही विराजित हो गई। बाद में रानी मेंना देवी ने मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया।

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हर मनोकामना होती है पूरी

माता गढ़कालिका मंदिर में मान्यता है कि हर श्रद्धालु कि मनोकामना पूर्ण होती है। श्रद्धालु जब मनोकामना मांगते हैं तब उल्टा स्वास्तिक बनाते हैं और जब उनकी मनोकामना पूर्ण हो जाती है तो सीधा स्वास्तिक बनाते हैं, यहां पर कई राज्यों से श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं।

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