रायपुर. छत्तीसगढ़ के माओवाद प्रभावित इलाकों में तैनात सुरक्षा बल के जवान क्या बेहद मानसिक तनाव से गुजर रहे हैं ? क्या जवानों के बीच आपसी तालमेल गड़बड़ा गया है ? क्या उनकी समस्याओं का समाधान नहीं हो रहा है ? क्या अधिकारी जवानों के मानसिक स्थितियों को नहीं समझ पा रहे हैं ? आखिर ऐसा क्या हो रहा बस्तर में कि वहाँ पर तैनात जवान आत्महत्या करने या अपने साथी जवानों की जान लेने पर मजबूर हो रहे हैं ? ये सवाल एक बार अबूझमाड़ में हुई घटना के बाद उठ खड़े हुए हैं. जहाँ पर आईटीबीपी के जवानों के आपसी संघर्ष में 6 की मौत हो गई, जबकि दो घायल हो गए हैं. एक आंकड़े के मुताबिक बीते 12 वर्षों में करीब 130 जवानों की मौत आत्महत्या या आपसी संघर्ष हुई है.
छत्तीसगढ़…छत्तीसगढ़ में बस्तर और बस्तर माओवाद प्रभावित इलाका. एक ऐसा क्षेत्र जहाँ पर कश्मीर से भी ज्यादा संख्या में सुरक्षा बल के जवान तैनात हैं. यहाँ तैनात जवानों की संख्या 70 हजार से अधिक है. इसमें सीआरपीएफ, आईटीबीपी, बीएसएफ के जवान शामिल है. मतलब वो जवान जिनकी तैनाती भारत की सीमाओं पर रहती है. वहीं जवाब माओवादियों से लोहा लेने के लिए छत्तीसगढ़ बस्तर अँचल, राजनाँदगाँव क्षेत्र में तैनात है. इन जवानों की तैनाती प्रदेश में करीब डेढ़ दशक से ज्यादा समय से है. लेकिन बस्तर के अंदर हालात अन्य राज्यों या कश्मीर की घाटी की तरह जवानों के लिए अनुकूल नहीं है. यहाँ जवान बेहद विपरीत परिस्थतियों के बीच छत्तीसगढ़ की सुरक्षा कर रहे हैं, नक्सलियों लोहा ले रहे हैं. लेकिन इन चुनौतियों के बीच एक चुनौती ऐसी भी जिससे जवानों को निजात नहीं मिल पा रही है. ये चुनौती है जवानों की मानसिक स्थितियों की. जी हाँ बीते 12 वर्षों में अगर जवानों के बीच आत्मघाती कदम उठाकर मौत को गले लगाने के मामले को को देखें हालात कुछ इसी तरह के नज़र आते हैं. बड़ी संख्या में जवानों आत्महत्या की. साथ ही जवानों के बीच आपस में खूनी संघर्ष भी होते रहे हैं. इसी कड़ी में आज नारायणपुर में आईटीबीपी कैंप के बाहर 6 जवानों की मौत आपस में हुई गोलीबारी में हो गई है.
आंकड़ों पर एक नजर
मौजूदा वर्ष 2019 और 18 के आंकड़े को देखें तो जानकारी मुताबिक करीब 12 जवानों की मौत हुई है. इसी तरह से 2017 में 36 जवानों विभिन्न कारणों से आत्महत्या कर ली थी. राज्य के पुलिस विभाग के आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2007 से अक्टूबर वर्ष 2017 तक की स्थिति के अनुसार सुरक्षा बलों के 115 जवानों ने आत्महत्या की है. इनमें राज्य पुलिस के 76 तथा अर्धसैनिक बलों के 39 जवान शामिल है. इसी में आंकड़े को वर्ष वार देखें तो 2009 में 13 जवानों ने, 2016 में 12 जवानों तथा वर्ष 2011 में 11 जवानों आत्महत्या की घटना को अंजाम दिया है. इन घटनाओं में कहीं फाँसी लगाकर जान दी गई, कहीं खुद की सर्विस राइफल से जान ले ली गई, तो कहीं पर जवानों एक-दूसरे पर जवानों गोली चलाकार मौत को गले लगाया है.
आत्मत्या के इन घटनाओं के बाद पुलिस विभाग की ओर से जो कारण बताए जाते रहे हैं उनमें- इन आंकड़ों के मुताबिक व्यक्तिगत और पारिवारिक कारणों से 58 जवानों , बीमारी के कारण 12 जवानों ने, काम से संबंधित (अवकाश नहीं मिलने) जैसे कारणों से 9 जवानों और अन्य कारणों से 36 जवानों ने आत्महत्या की है.
फिलहाल नारायणपुर की घटना के बारे में जानकारी देते हुए एआईजी नक्सल ऑपरेशन देवनाथ ने कहा कि एक जवान ने अपने साथियों जवानों पर सर्विस राइफल से गोली चलाई थी. इसमें मौके पर 5 जवानों की मौत हो गई थी. इसमें गोली चलाने वाले जवान की भी मौत हो गई है. वहीं दो जवान घायल हैं, जिनका इलाज रायपुर में चल रहा है. फिलहाल मामले की जाँच जा रही है.
वहीं मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी इस मामले में जाँच के आदेश दे दिए हैं. उन्होंने घटना पर शोक प्रकट करते हुए कहा कि इस तरह की घटनाएँ बेहद चिंतनीय है. हमने अधिकारियों से कहा कि वह हर पहलू पर जाँच करें.
इन सबके बीच केंद्रीय गृहमंत्रालय की ओर से भी जाँच के आदेश दिए गए. आईटीबीपी की ओर से भी जाँच की जा रही है. जाँच के बाद मौजूदा घटना किस वजह से हुई यह स्पष्ट हो पाएगा. लेकिन ताजा घटना ने पूर्व की घटनाओं को ताजा करते हुए एक बार उसी सवाल को सामने ला दिया है, जिसमें यह बार पूछा जाते रहा है कि आखिर जवानों की मानसिक स्थिति क्या बस्तर में काम करते वक्त सही नहीं है ? क्या उनकी तकलीफों को अधिकारी समझ नहीं पा रहे हैं ? आखिर उन्हेें मानसिक अवसाद से कैसे बचाया जाए ?