फीचर स्टोरी। छत्तीसगढ़ में एक इलाका ऐसा है जो सदियों तक अबूझ रहा है. इस इलाके को दुनिया में अबूझमाड़ के तौर पर जाना जाता है. सदियों से यह इलाका गुमनामी और अंधेरे में रहा है, लेकिन अब अंधेरा मिट रहा है, और इलाके के आदिवासियों के जीवन में नया सवेरा आ रहा है.

बस्तर संभाग में नारायणपुर जिला है. इसी जिले का एक बड़ा हिस्सा अबूझमाड़ कहलाता है. अबूझमाड़ के जंगल को छत्तीसगढ़ में सर्वाधिक घना जंगल माना जाता है. जंगल के अंदर की दुनिया के बारे में पूरी तरह से अब किसी को कोई खबर नहीं है. घने वनों के बीच अनगिनत पहाड़ियां, दुर्गम रास्ते और एक आदिम युग है.

अबूझमाड़ को बूझने की कोशिशें सदियों से होती रही है. मुगलकाल से लेकर अंग्रेजी शासनकाल तक. लेकिन आज तक अबूझमाड़ पूरी तरह से बूझा नहीं जा सका है. घने वनों के बीच रहने वाले आदिवासियों की कितनी बसाहटें? आदिवासियों की आबादी कितनी है? किन परिस्थितियों में रहते हैं? जीवन किस तरह से जीते हैं? इन सबकी जानकारी अभी पूरी तरह से साफ-साफ आ नहीं पाई है.

लिहाजा, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार अबूझमाड़ में न सिर्फ सर्वे के काम को प्राथमिकता से करा रही है, बल्कि जहां-जहां सर्वे का काम पूरा हो रहा है, वहां के आदिवासियों को सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाने का काम भी तेजी से कर रही है.

अबूझमाड़ के आदिवासियों के बीच भूपेश सरकार मसाहती सर्वे करवा रही है. इस सर्वे के साथ के अबूझमाड़ के अंदर के गांवों की पहचान के साथ आदिवासियों की गणना का काम हो रहा है. क्योंकि अभी तक स्थिति यह थी कि किसी तरह का कोई रिकॉर्ड आदिवासियों के पास नहीं होने से सरकारी योजनाओं का लाभ आदिवासियों को नहीं मिल रहा था.

सभी तरह की योजनाओं का लाभ

योजनाओं से संबंधित यह लाभ चाहे खेती संबंधित हो या फिर वनोपज से संबंधित या फिर राशन या सिंचाई से संबंधित. ऐसी अनेक योजनाएं जो कि पंचायतों में सरकार की ओर से चलाई जा रही हो. इन योजनाओं का लाभ आज अबूझमाड़ के आदिवासियों को मिलना शुरू हो चुका है. क्योंकि सरकार की ओर से बहुत तेजी के साथ सर्वे का किया जा रहा है. सर्वे के साथ गांवों की पहचान हो रही है. राजस्व विभाग में रिकॉर्ड दर्ज हो रहा है. रिकॉर्ड के साथ आदिवासियों को मसाहती पट्टा दिया जा रहा है.

93 गांवों में मसाहती सर्वे का काम पूरा

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक नारायणपुर जिले में कुल 246 गांवों को सर्वे के लिए अधिसूचित किया गया है. जिले में ओरछा विकासखंड के 237 और नारायणुर विकासखंड के 9 गांव सर्वे में शामिल है. इनमें अब तक कुल 93 गांवों में सर्वे का काम पूरा हो चुका है. सर्वे के बाद 93 गांव के 5000 से अधिक आदिवासी किसानों को पट्टा वितरित किया जा चुका है. शेष सभी किसानों का सर्वे कर मसाहती खसरा से जोड़ा जा रहा है. इसके साथ-साथ उन्हें शासन की अन्य योजनाओं से जोड़ा जा रहा.

आदिवासी किसानों को बड़ा लाभ

अबूझमाड़ के अंदर बाहरी दुनिया से दूर आदिम जिंदगी जीने वाले आदिवासी किसानों को बड़ा लाभ मिलने लगा है. विशेषकर खेती करने वाले आदिवासी किसानों को अब सरकार की खेती से संबंधित सभी योजनाओं से जोड़ दिया गया है. राजीव गांधी किसान न्याय योजना, भूमिहीन खेतीहर मजदूर न्याय योजना, गोधन न्याय योजना, सिंचाई, सौर उजला जैसी योजनाओं का सीधा फायदा अब किसानों को मिल रहा है. ऐसा मसाहती सर्वे के बाद संभव हो सका है.

आदिवासियों का पंजीयन

पट्टा मिलने के बाद आदिवासी सोसायटी में पंजीयन में अपना पंजीयन करा रहे हैं. आगामी 1 नवंबर से धान खरीदी की शुरुआत होने जा रही है. इस खरीदी में इस साल अबूझमाड़ के भी आदिवासी किसान अपना धान बेच पाएंगे. वहीं किसानों के खेतों में अब डबरी का निर्माण भी होने लगा है, साथ ही कई गांवों में सिंचाई के लिए सोलर पंप भी लगा दिए गए हैं. कृषि एवं उद्यानिकी विभाग की योजनाओं का लाभ भी दिया जा रहा है. कृषि विभाग से अब किसानों को विभिन्न फसलों के बीज वितरण के साथ-साथ मार्गदर्शन भी दिया जा रहा है. किसानों के खेत में ड्रिप लाइन बिछायी जा रही है, और पॉली हाउस बनाया गया है.

पट्टे के साथ अपना बसेरा

दरअसल इससे पहले की स्थिति यह थी कि किसी भी तरह से कोई सरकारी रिकॉर्ड नहीं होने से जहां आदिवासियों को लाभ नहीं मिल रहा था, वहीं वनोपज के साथ अन्य उपज को सही दाम भी नहीं है. आदिवासी हर तरह से शोषण के शिकार हो रहे थे. लेकिन अब सर्वे के साथ आदिवासियों के दिन बदलने लगे हैं. पीढ़ियों का दर्द मिटने लगा है. सदियों का अंधेरा छटने लगा है. नई सुबह और नया सवेरा है. अबूझमाड़ के आदिवासियों की अब अपनी सरकारी रिकॉर्ड के साथ जमीन है, पट्टे के साथ अपना बसेरा है.