रायपुर। ये मेरा सौभाग्य है कि जिसके नाम डॉक्टर्स-डे मनाया जाता मैं उनके करीब तो नहीं, लेकिन उन गलियों में जरूर रहा हूँ जहाँ भारत रत्न डॉ. वीसी राय सर रहते थे. शायद उनके बारे में जो कुछ मैंने सुना, पढ़ा, जाना, देखा शायद उन सारी चीजों से मैं प्रेरित होते रहा हूँ. आज अगर मैं इस मुकाम पर हूँ तो उसमें मेरे माता-पिता, गुरू, मित्रों के साथ डॉ. वीसी राय सर का भी बड़ा योगदान रहा ये कह सकता हूँ. ये कहना है रायपुर एम्स के निदेश डॉ. नितिन एम. नागरकर का.

डॉ. नागकर के किस्सें

लल्लूराम डॉट कॉम से विशेष बातचीत में अपने जीवन के अनछुए पहलुओं पर चर्चा करते हुए डॉ. नागरकर कहते हैं कि मेरा जन्म दिल्ली में हुआ. पिता जी सरकारी नौकरी में थे तो वे जहाँ-जहाँ जाते, उनके साथ परिवार को भी जाना पड़ता. लिहाजा कुछ वक्त मेरा मुंबई में भी गुजरा है. लेकिन मैंने जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा पटना में ही बीताया है. पटना से मेरा बड़ा गहरा जुड़ाव रहा है. इसके दो कारण हैं. एक कारण तो ये कि पटना से मैंने मेडिकल की पढ़ाई पूरी की है. वहीं पटना मैं जिस इलाके में रहता था उसी इलाके में ही भारत रत्न डॉ. वीसी राय का भी बचपन बीता था. मैं इसे बहुत ही सौभाग्य की बात मानता हूँ जिनके नाम पर डॉक्टर्स-डे हम मनाते हैं उनके बीताए मोहल्ले मैंने भी अपने समय बीताए हैं. मेडिकल पढ़ाई के बाद भारत के बाहर भी जाने का असवर मिला. कुछ समय के लिए मैं यूके में भी रहा है. इसके बाद का समय मैंने चंडीगढ़ और गुड़गाँव में बीताए. गुड़गाँव से एम्स के साथ सफर शुरू करते हुए रायपुर एम्स के निदेशक तक पहुँच गया.

मेरे जीवन का सुखद क्षण

चंडीगढ़ पीजीआई में कार्यरत् रहने के दौरान एक चुनौतीपूर्ण केस में मेरे सामने आया था. एक महिला को काफी बड़ा ट्यूमर था. वो कई जगहों पर अपना इलाज करा चुका थी, लेकिन उसे राहत नहीं मिली थी. अब मेरी बारी थी. मैंने ये केस अपने हाथ में लिया. शायद भगवान की इच्छा रही होगी कि उस महिला का सफल ऑपरेशन मुझे करना था. महिला के शरीर से ट्यूमर को निकाल लिया गया. ऑपरेशन सफल रहा है. वह स्वस्थ्य हो गई. इसके बाद तो उन्होंने अस्पताल से लेकर अपने गाँव तक मिठाई बँटवा दी. यह केस मेरे जीवन के सबसे सुखद क्षणों में से एक है. जिसे में मैं अवश्य याद करता हूँ और जब अवसर मिलता है साझा करता हूँ.

कैंसर मरीज के बीच काम 

मेरा काम कैंसर विशेषज्ञ के तौर पर रहा है. कैंसर मरीजों को बचाना बेहद चुनौतीपूर्ण रहता है. लेकिन अगर शुरुआती दौर में ही मरीज अस्पताल आ जाए तो उन्हें स्वस्थ्य किया जा सकता है. या एक-दो स्टेज बाद भी आए तो संभावना रहती है. मैं बहुत से कैंसर मरीजों का उपचार किया है. बीमारी बड़ी हो या छोटी लेकिन जरूरी है कि डॉक्टर उसे कैसे हैंडल करते हैं. बहुत कुछ डॉक्टरों की अपनी समझ पर निर्भर करता है. मैंने बहुत से लोगों का इलाज पब्लिक हेल्थ के जरिए भी किया है.

विश्वनीयता सबसे जरूरी

एक डॉक्टर के लिए या एक संस्थान के लिए सबसे जरूरी है कि विश्वनीयता बनी रहे. फिर मेरे सामने तो एम्स जैसा संस्थान था. जिसकी विश्वनीयता पूरे विश्व में है. भारत में 1956 से एम्स स्थापित है. ऐसे में जब 2012 में छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में एम्स को खड़ा करने का अवसर मिला तो यह एक बड़ी चुनौती थी. सरकार ने आपको जिस काम के लिए चुना है जरूरी है कि उस चयन, भरोसे पर आप खरा उतरों. मैंने स्टेप बाई स्पेट कदम बढाए. आज मैं कह सकता हूँ छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर एम्स का अपना एक वजूद है, एक नाम है. प्रदेश ही नहीं, देश के कई राज्यों से आज मरीज एम्स रायपुर में इलाज के लिए आते हैं.

डॉक्टर और मरीज के बीच रिश्ता कायम रहना जरूरी

मुझे लगता है कि एक अच्छे डॉक्टर के लिए ये जरूरी है कि मरीज के साथ उनका आत्मीय रिश्ता रहे. क्योंकि मरीज एक उम्मीद, एक भरोसे के साथ डॉक्टर के पास आता है. ऐसे में गोपनीयता के साथ ही मरीज के परिवार के साथ भी डॉक्टर का जुड़ाव और अच्छा व्यवहार होना भी जरूरी है. मैं यह भी मानता हूँ कि सभी के साथ संवाद का होना भी आवश्यक है. जब तक संवाद बेहतर तरीके से कायम नहीं रहेगा हमेशा दूरियाँ बनी रहेगी. संवाद के साथ समझ से काम लेना चाहिए.

देखिए पूरी बातचीत इस लिंक में-