फीचर स्टोरी। जब आप खुद को जान लेते हैं…खुद को पहचान लेते हैं…कुछ करने का ठान लेते हैं, तो सफलता निश्चित है. सफलता की ऐसी कई कहानियाँ आपने पढ़ी होगी, सुनी होगी और देखी भी होगी. इस विशेष फीचर स्टोरी में भी हम आपके लिए ऐसी कुछ सफल कहानी लेकर आए है. ये कहानी है उन ग्रामीण महिलाओं की जिन्होंने आत्मनिर्भर बनकर जहाँ परिवार को संबल प्रदान किया है, तो वहीं यह बताने में भी कामयाब रही हैं कि गाँव की महिलाएं भी आज हर क्षेत्र में काम करने और आगे बढ़ने में तत्पर हैं. ऐसा इसलिए संभव हो पाया क्योंकि इन्होंने सरकारी योजनाओं को अपनी तरक्की जरिया बनाया. कैसे ? ये जानने के लिए पढ़िए भूपेश सरकार की इन योजनाओं से जुड़ी महिलाओं की कहानियाँ.
कोसा से नई जिंदगी बुनती आदिवासी महिलाएं नक्सल क्षेत्र में गढ़ रहीं ‘नवा छत्तीसगढ़’
ये तस्वीर है नक्सल प्रभावित जिला दंतेवाड़ा की. दंतेवाड़ा में गीदम विकासखंड स्थित बिंजाम गाँव की. इस गाँव में एक महिला स्व-सहायता समूह है. समूह की महिलाओं के पास एक काम है. काम है कोसा से धागा बुनने का. यही काम आज इनकी पहचान भी है. इस काम से समूह का नाम आज जिले के साथ प्रदेश में हो रहा है.
नाम होना भी चाहिए. क्योंकि ग्रामीण आदिवासी महिलाएं अपने काम के बल-बूते नवा छत्तीसगढ़ जो गढ़ रही हैं. महिलाओं की इस आत्मनिर्भता के पीछे जहाँ उनकी मेहनत है, तो भूपेश सरकार की योजना भी है. सरकारी योजना से लाभ लेकर समूह की महिलाओं ने खुद को आर्थिक रूप में तो सशक्त किया ही है, परिवारों को संबल देने में भी कामयाब रहीं हैं.
कोसा से धागा बुनते नजर आ रही ये महिलाएं वैसी हीं साधारण घरेलु महिलाएं जैसा आप अन्य गाँवों में देखते होंगे. अंतर बस इतना है कि इन्होंने घरेलु जिम्मेदारियों के साथ इन्होंने स्वयं की आर्थिक जिम्मेदारी भी उठा ली. इसके लिए इन्होंने समूह बनाकर काम करना शुरू किया. काम था कोसा खरीदना, धागा बुनना और फिर उसे बेचना. इसके लिए इन्हें राज्य सरकार की ओर से विशेष केंद्रीय सहायता और केंद्रीय क्षेत्रीय योजना के अंतर्गत 4 लाख 37 हजार 5 सौ रुपये की लागत वाली मशीनें प्रदान की गई. मशीनों में 10 नग बुनियादी रीलिंग मशीन और 5 नग कताई मशीन प्रदान की गई. साथ ही इन्हें कौशल विकास योजना के तहत प्रशिक्षण भी दिया गया. प्रशिक्षण के बाद आज समूह की महिलाएं क्या करती हैं और कितनी आमदनी हो रही है जानिए.
समूह की महिलाएं कोसा खरीदी से लेकर धागा बनाने और बेचन तक काम कर रही हैं.
कोसा से धागा निकालने की प्रकिया में सबसे पहले ग्रेडिंग करती हैं.
ग्रेडिंग के बाद प्रतिदिन के हिसाब से कोसा को उबाला जाता है.
कोसा से धागा के कार्य में रेशम धागे रील्ड यार्न तथा घीचा यार्न का उत्पादन करती हैं.
उत्पादन के बाद धागा समूह की महिलाएं व्यापारियों को बेच देती हैं.
इस तरह से समूह की महिलाओं को आज प्रति महिला 5 से 7 हजार रुपये की आमदनी हो जाती है. समूह की महिलाओं का कहना है कि राज्य सरकार जो सहयोग मिला उससे रोजगार तो मिला ही, आर्थिक स्थिति बहुत सुधार हुआ है. अब उन्हें काम की तलाश में कहीं भटकने की जरूरत नहीं है.
मशरूम की खेती ने खोला आर्थिक उन्नति का द्वार, सशक्त होती महिलाएं करती स्व-रोजगार
आत्मनिर्भर ग्रामीण महिलाओं की कहानी में ये दूसरी सफल कहानी है रायगढ़ जिले की. आदिवासी बाहुल्य रायगढ़ जिले की पहचान एक औद्योगिक जिले के तौर पर है. हालांकि बात हम उद्योग की नहीं खेती की करने जा रहे हैं. खेती में भी एक ऐसे व्यवासायिक खेती की, जिसे आम किसान बहुत कम करते हैं. ऐसी खेती को बढ़ावा देने का काम भूपेश सरकार भी बखूबी कर रही है. बात हो रही है मशरूम की खेती की. मशरूम उत्पादन आज छत्तीसगढ़ का प्रमुख व्यवसाय बनने की ओर अग्रसर है. प्रदेश के सभी जिलों में भरपूर मशरूम उत्पादन हो रहा है. मशरूम की इस खेती से आज स्व-सहायता समूह की महिलाएं भी जुड़ रही हैं. मशरूम उत्पादन भी आज घरेलु महिलाओं के लिए स्व-रोजगार का एक बड़ा माध्यम बन चुका है.
इस रिपोर्ट में आप को बता रहे हैं गुरु कृपा स्व-सहायता समूह की महिलाओं की कहानी. रायगढ़ जिले में विकासखंड खरसिया अंतर्गत एक गाँव है, नाम है ‘मिनगाँव’. इस गाँव की यह सफल कहानी. गाँव की 10 महिलाओं ने मिलकर गुरु कृपा समूह का गठन किया. समूह का गठन हुआ राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन(बिहान) के तहत.
योजना के तहत समूह की महिलाओं को सबसे पहले मशरूम उत्पादन की पूरी जानकारी दी गई. जानकारी के बाद कुछ दिनों खेती के संबंध में प्रशिक्षण दिया गया. प्रशिक्षित होने के बाद समूह की महिलाओं ने मशरूम की खेती करना प्रारंभ किया. धीरे-धीरे महिलाएं मशरूम उत्पादन में आगे बढ़ती गई. आज महिलाओं को मशरूम उत्पादन का कार्य करते एक वर्ष से अधिक हो चुका है. मशरूम उत्पादन से समूह को 2 लाख रूपये का लाभ प्राप्त हुआ है. समूह की इस आर्थिक उन्नति के साथ परिवार को भी आर्थिक मदद मिली है.
वास्तव में आज गाँव-गाँव इसी तरह से हजारों की संख्या में महिलाएं आत्मनिर्भर हो चुकी हैं. महिलाएं स्व-रोजगार के जरिए न सिर्फ खुद को सशक्त कर रही हैं, बल्कि वह अपने परिवार को सहारा भी दे रही हैं. महिलाओं की जिंदगी सरकारी योजनाओं से निखर रही है, बदली रही है, सँवर रही है.