फीचर स्टोरी। जिस बस्तर ने लाल आतंक का खौफ और खून का सैलाब देखा है, वहां अब बदलाव की बयार बह रही है. तस्वीर सुकमा जिले के सिलगेर इलाके की, जहां कल तक सुरक्षाबलों के कैंप का विरोध करने सड़कों पर भीड़ उमड़ पड़ी थी. विरोध का परचम लहराया जा रहा था, वहां अब विकास की इबारत गढ़ी जा रही है. सिलगेर जिसे लाल आतंक का कोर एरिया माना जाता रहा है. अब वहां के लोग सरकार की योजनाओं का लाभ ले रहे हैं. आखिर कैसे सरकार की एक योजना एक बड़े इलाके की तस्वीर बदल सकती है, आज सिलगेर इसकी कहानी बयां कर रहा है.

पहले यह सवाल पूछा जाता था…

सिलगेर नक्सल प्रभावित वह इलाका रहा है, जिसे लाल आतंक की राजधानी कही जाती थी, लेकिन अब यही सिलगेर उम्मीदों के रास्ते आगे बढ़ रहा है. पहले यह सवाल पूछा जाता कि बीते दो दशक में बस्तर के सिलगेर, सारकेगुड़ा, तर्रेम जैसे सैकड़ों गांवों की एक पूरी पीढ़ी ने क्या देखा? तो जवाब मिलता, मुठभेड़ में चलती गोलियां और गोलियों से ढहते लोग, चाहे ये सुरक्षा बलों के जवान हो या फिर अपने ही लोग. इस पूरी पीढ़ी की पहचान सिर्फ शक के दायरे के इर्द-गिर्द ही सिमटकर रह गई थी, लेकिन भूपेश सरकार की ही कवायद थी, जिसने इस पीढ़ी को पहचान दी.

गाँव वालों तक अधिकारियों की पहुँच

नक्सलियों के कोर एरिया में रहने वाले आदिवासियों तक कभी कलेक्टर, एसडीएम, तहसीलदारों की पहुंच नहीं थी, आज इनकी पहुंच सुलभ हुई. पहले अंदरूनी इलाकों में सरकारी योजनाओं की पहुंच नहीं थी. सड़कें बनी, तो योजनाओं को पहुंचने का रास्ता मिला. अब अंदरूनी इलाकों में सुविधा शिविर लगाकर स्थानीय आदिवासियों को सरकार की योजनाओं से जोड़ने पंजीयन किए जा रहे हैं.

सरकारी सुविधाएं आदिवासियों तक

आज सुदूर गांवों में सुविधा शिविर के जरिए आधार कार्ड बना, आयुष्मान कार्ड ने स्वास्थ्य का ख्याल रखा, तो राशन कार्ड ने भूख की चिंता मिटाई. बुजुर्ग आदिवासियों का पेंशन के लिए पंजीयन हुआ. सुविधा शिविरों में आ रहे स्थानीय आदिवासी अब इस बात से खुश हैं कि सरकार की योजनाओं का उन्हें लाभ मिलेगा. बुनियादी जरूरतें पूरी होती नजर आई, तो आगे बढ़ने का जज्बा भी जागा. बस्तर के आखिरी छोर से भी अब सिर्फ एक ही मांग की जा रही है, वह है विकास की. सुविधा शिविर में राशन कार्ड बनवाने आ रहे स्थानीय आदिवासी बताते हैं कि कल तक हम खेत से उगा कर या खरीद कर ही खाने की जरूरत पूरी करते थे, लेकिन अब सरकारी योजनाओं का लाभ मिलेगा. राशन कार्ड बनने से अब राशन बड़ी आसानी से मिल सकेगा.

जिला प्रशासन की निगरानी

इन शिविरों में आयुष्मान कार्ड से लेकर राशन कार्ड तक बनाए जा रहे हैं. सुकमा जिले के कलेक्टर विनीत नंदनवार के निर्देश पर सिलगेर और आसपास के इलाकों में सुविधा शिविर चलाया जा रहा है, जिसमें हजारों की तादात में आदिवासी आ रहे हैं. सिलगेर के करीब सारकेगुड़ा में लगाए गए सुविधा शिविर में पेंटाचिमली, सुरपनगुड़ा गोंदपल्ली ग्राम के ग्रामीण पहुंच रहें हैं. ग्रामीणों को शिविर स्थल तक आवागमन में कोई परेशानी ना हो, इसके लिए प्रशासन ने वाहन की व्यवस्था के साथ ही भोजन आदि की पूरी व्यवस्था की गई है.

सुकमा कलेक्टर विनीत नंदनवार कहते हैं…

सुकमा कलेक्टर विनीत नंदनवार कहते हैं कि सुविधा शिविर के जरिए आधार कार्ड, आयुष्मान कार्ड, राशन कार्ड, पेंशन रजिस्ट्रेशन जैसी सुविधाएं मुहैया कराई जा रही है. अंदरूनी इलाकों में सरकार की योजनाओं को पहुंचाने के पीछे सुरक्षाबलों की बड़ी भूमिका रही है. अंदरुनी इलाकों में कैंप खुलने के बाद सुरक्षाबलों की निगरानी में सड़कें बनी. सड़कें बनी तो सरकार की पहुंच उन इलाकों तक हुई. पगडंडियों की जगह चमचमाती सड़कों ने ले ली. जिला प्रशासन की पहुंच का दायरा बढ़ा.

नक्सलियों के कब्जे वाले रास्ते पर अब सुरक्षा बल

जिला प्रशासन का कहना है कि सुरक्षाबलों का इरादा था कि आम जनता की सहूलियत के लिए उन सड़कों को खोला जाए जो नक्सलियों ने जबरन बंद कर रखी थी. सुरक्षाबलों ने आसपास के बारसूर-पल्ली, अरनपुर-जगरगुंडा, दोरनापाल-जगरगुंडा, जगरगुंडा-बासागुड़ा आदि सड़कों को खुलवाया. नक्सलियों का कॉरिडोर टूटा तो विकास ने आमद दी और हालात बदलने शुरू हो गए. अब स्थानीय आदिवासी भी इस बात से खुश हैं कि जिंदगी की गाड़ी बगैर अड़चन धीरे-धीरे फासले तय कर रही है.

जिला पंचायत सीईओ बीएस बघेल ने जो बताया

नक्सलगढ़ में सुविधा शिविर में उमड़ रही भीड़ ने जिला प्रशासन के उत्साह को भी बढ़ाया है. बीजापुर जिला पंचायत सीईओ बी एस बघेल का कहना है कि अंदरूनी इलाकों से भी अब ग्रामीणों को लाया जा रहा है, जिससे उन्हें सरकारी योजनाओं से जोड़ा जा सके. शिविर तक लाने की व्यवस्था भी की जा रही है. बघेल कहते हैं कि मुख्यमंत्री की मंशा थी कि बस्तर के आखिरी छोर तक विकास पहुंचे, आज यह साकार होते नजर आ रही है.

बीजापुर कलेक्टर रितेश अग्रवाल बताते हैं…

इधर इस बदलाव को लेकर बीजापुर कलेक्टर रितेश अग्रवाल का कहना है कि सारकेगुड़ा में सुविधा कैंप लगाकर लोगों का आधार कार्ड, आयुष्मान कार्ड, राशन कार्ड जैसी सुविधाओं का काम बडी तेजी से चल रहा है. नक्सल प्रभावित गांवों के लोग आकर अब शासन की योजनाओं से जुड़ रहे हैं.

आदिवासी सरकार के साथ

सिलगेर से बदलाव की शुरूआत हुई. बदलाव इन तस्वीरों ने यह मिथक तोड़ा कि आदिवासी विकास विरोधी हैं. दरअसल आदिवासियों को भी विकास चाहिए, लेकिन उनके तरीके से. राज्य की भूपेश बघेल सरकार ने इसे महसूस किया और उलझी हुई बस्तर की जिंदगी सुलझने के रास्ते कदम बढ़ाने लगी…..