रायपुर. राजधानी के लाल गंगा पटवा भवन, टैगोर नगर में जारी चातुर्मासिक प्रवास के अंतर्गत आचार्य महाश्रमण के शिष्य मुनि सुधाकर और सहवर्ती मुनि नरेश कुमार के सान्निध्य में तेरापंथ महिला मंडल की तरफ से “कैसे करें चित्त समाधि का विकास” पर विशेष कार्यशाला का आयोजन किया गया. कार्यशाला में मुनि सुधाकर ने बताया कि आत्मा और परमात्मा के बीच में जो अवरोध है उन्हें खत्म करना ही चित्त समाधि है.

मुनि ने कहा कि हमारे जीवन में जो असंयम और परिग्रह की भावना है वहीं हमारे दुःखों का प्रमुख कारण है. जीवन शैली तो संयम प्रधान होनी चाहिए. यानी चलने में संयम, बोलने में संयम, खाने में संयम, आवेश और आवेग में संयम. मुनि ने आगे बताया कि जहा क्रिया होगी वहां प्रतिक्रिया अपेक्षित है, लेकिन हमें उस क्रिया की प्रतिक्रिया में उलझना नहीं है. क्योंकि प्रतिक्रिया वेदना देती है, फिर चाहे वह शरीर की हो या मन की. मुनि ने कहा कि जिसे सहना आयेगा उसे ही सुख से रहना आयेगा. उन्होंने चित्त समाधी को एक परिवार की कथा से समझाने की कोशिश की.

मुनि ने तीन प्रयोग चित्त समाधि के विषय में बताए:

  1. प्रतिक्रिया नहीं समीक्षा होनी चाहिए.
  2. प्रतिस्पर्धा नहीं प्रेरणा होनी चाहिए.
  3. पदार्थ की प्रतिबद्धता नहीं अप्रतिबध्दता होनी चाहिए.

मुनि ने आगे कहा- हमारे जीवन में आसक्ति की जगह अनासक्ति का भाव होना चाहिए. जिससे हमारे जीवन में ईर्ष्या और लोभ की भावना कम हो सके. “न तेरा है न मेरा है दुनिया रंग बसेरा है” कि भावना का विकास होना चाहिए.

मुनि नरेश कुमार ने कहा कि धर्म हमें असमाधि से समाधि की ओर ले जाने वाला होता है. मंगलाचरण तेमम व आभार मधुर बच्छावत द्वारा किया गया. कार्यशाला में कर्नाटक शिमोगा से पधारे चंदनमल ने भी अपनी भावनाएं व्यक्त की. तेजस बूरड़ अपनी 11 की तपस्या का प्रत्याखान लेकर मुनि की सन्निधि में पधारे.