रायपुर के देवेंद्र नगर स्थित श्री नारायणा हॉस्पिटल द्वारा आयोजित इस कॉन्फ्रेंस में देश के टॉप ऑर्थो ट्रॉमा सर्जनों ने हिप, घुटना, एंकल, एल्बो और शोल्डर फ्रैक्चर सहित जटिल मामलों पर प्रैक्टिकल और केस-बेस्ड डिस्कशन किया।

रायपुर। राजधानी रायपुर के देवेंद्र नगर स्थित श्री नारायणा हॉस्पिटल द्वारा आयोजित एक दिवसीय “रायपुर ऑर्थो ट्रॉमा समिट – 2025” कॉन्फ्रेंस आज होटल बेबीलॉन कैपिटल में सफलतापूर्वक संपन्न हुई। इस कॉन्फ्रेंस का विषय था “Fracture to Function – Bridging Gaps in Trauma Management”, जिसका उद्देश्य ऑर्थो ट्रॉमा सर्जरी के क्षेत्र में नई तकनीकियों और बेहतरीन प्रैक्टिकल अनुभव को साझा करना था।

बता दें कि इस कॉन्फ्रेंस में छत्तीसगढ़ के साथ-साथ आसपास के अन्य राज्यों से लगभग 200 से अधिक ऑर्थो ट्रॉमा सर्जन सम्मिलित हुए। श्री नारायणा हॉस्पिटल के सुप्रसिद्ध ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉ. सुनील खेमका ने बताया कि इस आयोजन में 25 से अधिक ऑर्थो ट्रॉमा सर्जनों ने अपने-अपने विषय विशेषज्ञों के समक्ष प्रस्तुत किए।

यह कॉन्फ्रेंस पूरी तरह ट्रॉमा सर्जरी पर आधारित थी। इसमें इन विषयों पर विस्तृत चर्चा हुई:

  • हिप जॉइंट के फ्रैक्चर (Hip Fracture)
  • घुटने के आसपास के फ्रैक्चर (Knee Fracture)
  • एंकल जॉइंट का फ्रैक्चर (Ankle Fracture)
  • एल्बो फ्रैक्चर (Elbow Fracture)
  • शोल्डर जॉइंट के फ्रैक्चर (Shoulder Fracture)

कॉन्फ्रेंस में देश के सात शीर्ष ट्रॉमा सर्जनों ने Distal Femur, Neck Femur Fracture, Shaft Femur Fracture, Khemka Technique, Proximal Tibia Fracture, Elbow Fracture, Trochanteric Fracture, Spine Fracture और Ankle Injury जैसे जटिल मामलों पर आधे-आधे घंटे का केस डिस्कशन किया। कई जटिल केस दिखाए गए और उनके समाधान के लिए नवीनतम तकनीकों पर गहन चर्चा हुई।

डॉ. प्रीतम अग्रवाल (रोबोटिक सर्जन), डॉ. अम्बरीश वर्मा (ऑर्थो ट्रॉमा सर्जन), डॉ. प्रदीप पटेल और डॉ. राम खेमका ने बताया कि यह प्योरली प्रैक्टिकल एवं केस बेस्ड कॉन्फ्रेंस थी। इसमें कोई भी थ्योरिटिकल डिस्कशन नहीं हुआ। इसमें ऑर्थो ट्रॉमा सर्जरी को कैसे बेहतर ढंग से अंजाम दिया जा सकता है, उन बातों पर लेक्चर्स हुए और बहुत ही इंटरएक्टिव सेशन हुए।

देश के विभिन्न मेट्रो शहरों से आए नेशनल स्टैंडर्ड के अनुभवी सात ट्रॉमा सर्जनों ने उपस्थित हड्डी-रोग विशेषज्ञों के साथ अलग-अलग विषयों पर अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने बताया कि हमारी इस कॉन्फ्रेंस से अगर कोई भी ट्रॉमा सर्जन इन नई-नई मेथड या टेक्निक्स को सीखकर उसे इंप्लीमेंट करता है, तो ये नई टेक्निक्स हजारों मरीजों तक पहुंचेगी और कहा जाता है कि टेक्निक्स को सीखने में उम्र कभी भी बाधा नहीं होती, हर उम्र में सीखा जा सकता है।

वर्तमान समय में मेडिकल साइंस जब इतनी तेजी से बदल रहा है तो ऑर्थो ट्रॉमा सर्जरी के क्षेत्र में वर्तमान में प्रचलित हो रही तकनीक से ज्यादा से ज्यादा मरीज लाभान्वित होने चाहिए, और इन सभी नई टेक्निक्स को साझा करने और उन्हें आत्मसात करने के लिए ऐसी कॉन्फ्रेंस हमेशा आयोजित होती रहनी चाहिए।

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