मयंक श्रीवास्तव, पिपरिया। मध्य प्रदेश होशंगाबाद के बनखेड़ी क्षेत्र के ग्राम बाचावानी में तिल चतुर्थी के अवसर पर तिल गणेश महोत्सव भव्यता पूर्वक मनाया गया। भगवान तिल गणेश के दर्शन करने के लिए सैकड़ों की संख्या में लोग मंदिर पहुंचे। इसके साथ ही बाचावानी में मेला और विशाल भजन प्रतियोगिता भी की जाती हैं। बाचावानी गांव के बीचों-बीच मंदिर बना हुआ है। जिसे देखने के लिए देशभर के लोग पहुंचे है, जिस कारण स्थानीय प्रशासन व्यवस्थाओं को लेकर अलर्ट मोड पर रहता है।
बाचावानी में तिल गणेश का विशेष त्यौहार
तिल चतुर्थी के अवसर पर दुर्लभ और प्राचीन प्रतिमा गणेश मंदिर में स्थापित है। जो हर वर्ष गणेश चतुर्थी पर तिल आकर के बराबर बढ़ती है। बताया जाता है कि इस मंदिर में विराजी तिल गणेश भगवान की मूर्ति अपने आप बाचावानी में प्रकट हुई थी। राजा महाराजाओं के समय में बाचावानी की तिल गणेश भगवान की मूर्ति को उठाकर अपने महल राजघराने ले जाना चाहते थे। हालांकि राजा ने विधि विधान पूर्वक पूजा अर्चना कर मूर्ति को हाथी पर बिठाकर ले जाना चाहता था, लेकिन मूर्ति वहा अपने स्थान से हिली भी नहीं। जिसके कारण मजबूरन राजा को मूर्ति उसी स्थान पर छोड़ना पड़ा।
तिल चतुर्थी पर निशुल्क प्रसादी का वितरण
तिल चतुर्थी पर लगने वाले मेले में ग्राम के अलग-अलग संगठन निशुल्क फलाहारी प्रसादी चाय का वितरण करते हैं। पूरे ग्राम के नागरिक बेहद सेवा भाव एवं समर्पण से इस अवसर को मानते है। ग्राम बाचावानी बनखेड़ी से 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। जहां पर दूर-दूर से भक्त दर्शन करने और मनोकामना मांगने पहुंचते हैं।
श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं होती है पूरी
वहीं मंदिर के पुजारी मनोहर दास बैरागी ने बताया कि महिलाओं द्वारा संतान पूर्ति और मंदिर में मांगी गई कई मान्यताएं पूर्ण होती हैं। उन्होंने बताया कि महिलाएं संतान प्राप्ति के लिए पीछे की दीवार पर हाथ लाकर मनोकामना मांगती है, जिससे उन्हें संतान की प्राप्ति होती है। प्रति माह में आने वाली गणेश चतुर्थी पर मंदिर में हाथे लगाए जाते हैं। अन्य कामनाओं के लिए सात हल्दी की गांठ, नारियल जनेऊ, सुपारी, पान भेंट कर मांगी गई मान्यताएं भी मंदिर में पूर्ण होती हैं। खास कर तिल गणेश चौथ के अवसर पर तिल और गुड़ के लड्डु के भोग चढ़ने पर भी मंदिर में भक्तों की मान्यताएं पूर्ण होने के कई प्रमाण है।
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राजघराने के राजा बाचावानी से फतेहपुर ले जाना चाहता थे मूर्ति
बनखेड़ी क्षेत्र में फतेहपुर के राजाओं का राज था। राजाओं द्वारा राजभवन में एक कमल भवन नाम का कक्ष बनाया गया था। जहां कई प्रकार की मूर्तियां स्थापित थी। यह उत्सव मनाया जाता था। फतेहपुर के राजा को बाचावानी में सुंदर गणेश प्रतिमा की जानकारी लगी तो उस मूर्ति को राजा अपने राजघराने हाथी से ले जाना चाहता था। लेकिन मूर्ति अपने स्थान से तनिक भी नहीं हिली।
राजा के लाख कोशिश करने के बाद आखिर में हार मानकर मूर्ति को उसी स्थान पर मजबूरन छोड़कर जाना पड़ा। जब से बाचावानी के तिल गणेश भगवान की जन चर्चा आसपास के क्षेत्र में विख्यात हो गई। वहीं ग्रामीणों के मुताबिक तब से गणेश चतुर्थी पर गांव के अंदर किसी भी प्रकार की गणेश प्रतिमा की कोई स्थापना नहीं की जाती।
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