कर्ण मिश्रा, ग्वालियर। मध्यप्रदेश का ग्वालियर चंबल अंचल वीरभूमि के नाम से जाना जाता है। क्योंकि यहां भारत माता की रक्षा के लिए प्राणों को न्योछावर करने वाले वीर आते है। स्वतंत्रता दिवस पर पढ़ें यह खास रिपोर्ट…

मां हमने जंग जीत ली है। तेरी ओर बढ़ने वाले हर एक बुरे कदमों को जमीं में मिला दिया है, मैंने तेरी रक्षा के लिए जन्म लिया है। इसलिए आज अपने प्राणों को तेरे चरणों में सौंपता हूं। ये शौर्य की कहानी ग्वालियर के रहने वाले कारगिल शहीद सरमन सिंह सेंगर की है। जिन्होंने माथे पर मां भारती के मान को स्थापित कर टाइगर हिल पर भारत का तिरंगा लहराया और शहीद हो गए।

कुल का दीपक

दरअसल, 19 मार्च 1963 को उत्तरप्रदेश के जिला जालौन के बिलोंहां गांव स्थित पैतृक गांव में मां भारती के वीर सपूत सरमन सिंह सेंगर ने जन्म लिया। सरमन सिंह ने प्राइमरी शिक्षा गांव में ही की। वहीं छठवीं से हाईस्कूल तक की शिक्षा ग्वालियर के DRP लाइन स्थित शासकीय स्कूल से की। उनके पिता उदयभान सिंह 1946 में ग्वालियर आ गए। उनकी पोस्टिंग पुलिस विभाग में हवलदार की पोस्ट पर थी। हाई स्कूल की पढ़ाई के बाद एक दिन सरमन सिंह को पता चला कि ग्वालियर में सेना की भर्ती हो रही है। उन्हें देश भक्ति का ऐसा जज्बा था कि 04 बहनों के वह अकेले भाई थे। गांव में उन्हें कुल का दीपक कहा जाता था। ऐसे में वह पूरे परिवार की आंखों के तारे भी थे, उसके बावजूद वह देश सेवा में जाने की इच्छा लेकर घर से बिना बताए चले गए।

राजपूताना राइफल्स में हुआ सिलेक्शन

दो दिन की सेना भर्ती के बाद जब देर रात घर लौट कर आये तो माता पिता ने पूछ लिया कि आखिर सरमन कहां डेली जाकर देर से आते हो तो। तो मां भारती के इस परवाने ने बताया कि मां-पिता आपसे आज कुछ मांगना चाहता हूं। सिर पर हाथ रखवाकर कसम भी ले ली और कहा कि जो मागूंगा मना नहीं करियेगा। वचन मिलने पर उन्होंने सन 1980 के उस दौर में भर्ती के तीसरे दिन बताया कि उनका सिलेक्शन सेना में राजपूताना राइफल्स में हो गया है। इस तरह माता पिता के हाथों में नियुक्ति पत्र देकर आशीर्वाद लिया और कहा कि दो दिन में दिल्ली ऑफिस में आमद दर्ज करानी है। माता पिता की आंखे नमन हो गयी, क्योंकि बेटे ने सेना में जाने का फैसला ले लिया था। सरमन सिंह ने उन्होंने हिम्मत देकर कहा कि में लौट कर आऊंगा। दोनों फर्जों को निभाउंगा। यह कहकर सरमन सिंह सिंगर राजपूताना राइफल्स में अपनी सेवा देने के लिए रवाना हो गए।

बर्फीले गड्ढे में गिरने के बाद खुद ही बाहर निकले

राजपूताना राइफल्स में शामिल होने के बाद सरमन सिंह ने अपने शौर्य की तस्वीर एक दो बार नहीं बल्कि कई बार दिखाई। सरमन सिंह के बेटे लक्षमन सिंह ने मुताबिक, “एक बार जम्मू के कुपवाड़ा क्षेत्र में बर्फीले इलाके के बीच सर्चिंग के दौरान वह अपने तीन साथियों के साथ बर्फ में धंस गए। तीन दिन तक सेना द्वारा उनकी सर्चिंग चली। लेकिन वह इतने जांबाज थे कि वह खुद उस बर्फीले गड्ढे से बाहर निकले। साथ ही अपने तीन जवान साथियों को भी बाहर निकाल कर लाये। कम्पनी प्वाइंट पर जब वह पहुंचे तो सीनियर अधिकारी भी हैरान रह गए। क्योंकि सर्चिंग में वह नहीं मिले थे। हाथों की उंगलियां गल चुकी थी।

पाकिस्तान आतंकी गुप्तचर को पकड़ा

सरमन सिंह ने पाकिस्तान आतंकी गुप्तचर जो वृद्ध की वेषभूसा में घूम रहा था उसे पकड़ा। कड़ाई से पूछताछ के बाद उससे महत्वपूर्ण जानकारी हासिल की और फिर भारत माता के मुकुट जम्मू कश्मीर में छुपे हुए आतंकियों को ढेर किया। उनके काम को देखकर सेना ने उन्हें सेवा मेडल प्रदान किया। ऑपरेशन रक्षक में सेक्शन लीडर रहते हुए कमांडिंग भूमिका बखूबी अदा की। पंजाब के ब्लू स्टार ऑपरेशन में भी वह शामिल रहे।

कारगिल युद्ध देखते हुए कुपवाड़ा में हुई तैनाती

समय धीरे धीरे आगे बढ़ रहा था। सरमन सिंह की सेकेंड बटालियन दी राजपूताना राईफल्स, मुरार ग्वालियर में ही तैनाती थी। तभी कारगिल युद्ध की संभावना को देखते हुए एडवांस पार्टी के साथ उनकी कुपवाड़ा में तैनाती कर दी गयी। घर में सिर्फ जम्मू के फील्ड में तैनाती की जानकारी दी। तभी वो वक्त आ गया। कारगिल युद्ध शुरू हो गया।

तोलोलिंग हिल्स पर फहराया तिरंगा

कारगिल का दुर्गम रण क्षेत्र, हजारों फीट गहरी खाइयों से घिरी बर्फीली ऊंची ऊंची चोटी, ऑक्सीजन की कमी जहां सांस तक देना कठिन था, तोलोलिंग और टाइगर हिल के ऊपर दुश्मन बंकर बनाकर घात लगाए भारतीय सैनिकों पर गोलियां, बम के गोले, ग्रेनेड बरसाने शुरू कर चुके थे। ऐसे मुश्किल हालात में दुश्मन से टाइगर हिल को मुक्त कराने का टास्क राजपूत रेजीमेंट को सौंपा गया। टाइगर हिल की चढ़ाई पर जाने से 15 दिन पहले ही सरमन सिंह और राजपूत रेजीमेंट ने तोलोलिंग हिल्स पर विजय प्राप्त कर तिरंगा फहराया था। इस टास्क में कई सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए और कई घायल हुए। हवलदार सरमन सिंह को पैर और शरीर के कई हिस्सों में चोट आई थी।

घायल होने के बाद भी कहा- मैं फिट हूं और…

उधर टाइगर हिल के ऊपर छिपे दुश्मनों द्वारा अंधाधुंध फायरिंग गोला बारूद की बारिश के कारण इस पहाड़ी को मुक्त कराने के टास्क में लगी एक रेजीमेंट आगे नहीं बढ़ पा रही थी। सैनिक वीरगति प्राप्त कर रहे थे सैनिकों के होते हुए नुकसान को देखकर तब राजपूत रेजीमेंट को टाइगर हिल को भी मुक्त करने का टास्क सौंपा गया। जैसे ही हवलदार सरमन सिंह को टास्क का पता चल तो उन्होंने डॉक्टर द्वारा दी गई आरंभ की सलाह के बावजूद स्वयं युद्ध में जाने की जिद सेना अधिकारियों से की। अधिकारियों ने कहा कि तुम घायल हो तो अपना दर्द छुपा कर अफसरों के सामने दौड़कर दिखाया कि मैं फिट हूं और बब्बर शेर की तरह दहाड़ते हुए भारत माता की जयकारा लगाकर अपने अधिकारियों से बोले की युद्ध सैनिक का सपना होता है और वीरगति सौभाग्य। इसलिए यह मौका उन्हें जरूर दिया जाए।

टाइगर हिल फतह करने का मिला टास्क

सेना के अधिकारी वीर सरवन सिंह के जज्बे के आगे नतमस्तक हो गए और टाइगर हिल फतह करने का टास्क उन्हें दे दिया। टाइगर हिल से बारूदी गोलों की वर्षा के बीच सेक्शन लीडर सरमन सिंह सैनिकों की टुकड़ी को लेकर चढ़ाई करने निकल दिए, फिसलन भरी पहाड़ी पर टास्क मुश्किल भरा होने के बावजूद हमारे वीर सपूतों ने 27-28 जून को चढ़ाई पूरी कर चोटी पर सुरक्षित जगह मोर्चा ले लिया। दुश्मनों की गतिविधियों पर नज़रें गड़ाकर दुश्मन के बंकरों से जैसे ही कोई बाहर निकलता हवलदार सरमन सिंह उसे मार गिराते, जब दुश्मनों को यह आभास हो गया कि हमारे लड़ाके बंकर में नहीं लौट रहे हैं। तब वह एक साथ झुंड के रूप में बंकरों से बाहर निकले। हवलदार सरमन सिंह मानो इसी मौके की तलाश में थे। साथी सैनिकों को आक्रमण करने का इशारा कर सरमन सिंह की मशीन ने आग उगलना शुरू कर दिया और कुछ ही समय में दुश्मनों के झुंड को मार गिराया।

टाइगर हिल में फहराया तिरंगा और भारत माता की गोद में सो गए

इसके बाद 27-28 जून की दरमियानी रात सर्चिंग में जब एक भी शत्रु नहीं मिला तो सैनिक टुकड़ी ने टाइगर हिल विजय घोष कर राष्ट्रीय ध्वज फहरा दिया। सेकंड राजपूताना राइफल्स के सैनिक विजय उत्सव में डूबे थे, उसी समय हैंड ग्रेनेड वहां जाकर गिरा और जोरदार विस्फोट हुआ। जिससे हवलदार सरमन सिंह की श्वास नली कट गई। खून से लथपत होने की अवस्था में भी सरवन सिंह ने साथी सैनिकों को इशारा कर दुश्मन के छुपे होने का संकेत दिया। टीले की ओट में छुपे घुसपैठियों को आमने-सामने की संगीन लड़ाई में ढ़ेर कर अपने जीवन रूपी पुष्प को भारत माता की गोद में हमेशा हमेशा के लिए समर्पित कर दिया।

पत्नी और बेटा-बेटी को छोड़ गए सरमन सिंह

वहीं दूसरी तरफ युद्ध के दौरान उनके खत घर आते रहे। जिसमे माता पिता, बेटा, बेटी और पत्नी का हालचाल पूछने के साथ वह खुद को ठीक बताते रहे। 28 जून 1999 को जिस दिन वह शहीद हुए। उस दिन भी एक खत उनके ग्वालियर स्थित घर आया। उनमें सबका ख्याल रखने की बात कही। लेकिन जब 30 जून की रात को TV पर पता चला कि वह शहीद हो गए तो घर, गांव, शहर में शोक की लहर दौड़ गई। वह अपने पीछे पत्नी सरोज सिंह, 13 साल के बेटे लक्ष्मण सिंह और 14 साल की बेटी माया को छोड़ कर हमेशा हमेशा के लिए तिरंगे में लिपट कर मां भारती के हो गए। वीर सपूत सरमन सिंह को नमन करने लोग जुटने लगे, लेकिन उनका पार्थिव वीर देह 03 जुलाई को उनके पैतृक गांव पहुंचा। जहां शस्त्र सलामी के साथ शहीद सरमन सिंह पंच तत्व में विलीन हो गए। शहीद सरमन सिंह की पत्नी सरोज सिंह आज भी उनके वीर देह के पास मिली बुलेट्स को अपना मान सम्मान मानकर कभी खुद से दूर नही करती है।

लल्लूराम डॉट कॉम भी शहीद सरमन सिंह को नमन करता है और यह कहते है कि ” कभी ना भूलेंगे हम सरमन तेरा यह बलिदान, तेरी यश गाथा गाएगा ये सारा हिंदुस्तान ये सारा हिंदुस्तान…

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