रायपुर। सांसरिक जीवन में सुखमय जीवन व्यतीत हो रहा था. कहीं किसी बात की कमी थी. घर-परिवार सबकुछ भरा-पूरा था. अच्छी-खासी पढ़ाई-लिखाई भी पूरी हो गई थी. परिवार के लोग मुझे लेकर न जाने क्या सपने संजोये थे. लेकिन मैं इन सबके बीच कुछ और ही सपना देख रही थी. मैं भौतिक सुख से दूर सच्चे सुख को देख रही थी. मैं देख रही थी गृहस्थ के जीवन से दूर से वैराग्य जीवन को. धीरे-धीरे मैं सांसरिक मोह से दूर होती गई. मुझे अब भक्ति के मार्ग पर जाना था. मैं उसी रास्ते बढ़ चली थी. आज मैं अपने जीवन में उस मुहाने पर आ खड़ी हुई, जहाँ से मैं परम सुख को प्राप्त कर सकूँगी. यह कहना है मुमुक्षु चंदनबाला का.
ओड़िशा के केसिंगा की रहने हरिराम जैन और कुसुम बाला की सुपुत्री मुमुक्षु चंदनबाला से जानिए उसके साध्वी बनने की कहानी….
मैं जिंदगी में कुछ अलग करना चाहती थी. मुझे गृहस्थ जीवन नहीं चाहिए था. इसलिए मैंने इस लाइन को चुना. मैं सोचती थी कि जिंदगी में यदि कोई खुशी आती है तो वो क्षण भर के लिए होती है मुझे हमेशा के लिए खुशी चाहिए था. मैंने सोचा कि इस लाइन में मुझे खुशी नहीं मिल सकती. मुझे परम आनंद और सुख की आकांक्षा थी. मैंने बीकॉम फर्स्ट ईयर किया और उसके बाद बीए की पढ़ाई पूरी की. फिर साइंस ऑफ लिविंग का कोर्स में एमए डिग्री ली.
मेरा मानना है कि एक वैराग्य के रास्ते ही हम अपने जीवन का कल्याण कर सकते है. एक समय ऐसा भी आता है जब जिंदगी में कहीं ना कहीं सब छूटता है. सबको साथ में लेकर सदा नहीं चल सकते. मैं इस बात को समझ चुकी थी कि मेरे जीवन के लिए सबसे अच्छा क्या है. मुझे निर्णय लेना था. और मैंने समय रहते ही फैसला कर लिया कि अब सन्यास जीवन में ही प्रवेश करना है. मैं बहुत खुश हूँ.
मैं यह भी कहना चाहती हूँ कि आज हमारे मन को, विचारों को प्रभावित करने के लिए अनेक साधन, माध्यम से उपलब्ध है. लेकिन मैंने जाना कि यह महज एक आकर्षण है. इस आकर्षण से स्वयं को बचाना होगा. सोशल मीडिया का आकर्षण जीवन के लिए कहीं से भी लाभप्रद नहीं है. मुझे इन माध्यमों ने कभी प्रभावित नहीं किया. मुझे तो वैराग्य जीवन आकर्षित किया. मैं साधवियों की दिनचर्चा, सात्विकता से प्रभावित रही हूँ. दरअसल जब हम एक लक्ष्य की ओर चलते हैं तो बहुत सारे अवरोध आते हैं. मेरे दोस्तों में भी कुछ ने समर्थन किया कुछ ने बहुत मना किया. लेकिन वही हुआ जो मेरे सबसे सही था. मेरा मानना है कि कुछ भी परमानेंट नहीं है.आज है कल चला जाएगा. यही मैसेज है कि हमेशा पॉजिटिव रहे.
जैन मुनियों की दिनचर्या को लेकर कहा
तेरापंथ धर्म संघ में जो साधु संत होते हैं. उन्हें अपनी दिनचर्या एक दम संयम पूर्वक जीना पड़ता है. पैदल चलना, रात्रि भोजन का त्याग करना. सूर्यास्त से पहले खाना और सूर्यउदय के बाद खाना. सूर्यास्त के बाद में पानी भी नहीं पी सकते. हम पानी भी एक प्रहर तक रख सकते हैं. दूसरी प्रहर में उस जल का उपयोग नहीं कर सकते. हम सीमित चीजों का ही उपयोग कर सकते है. गुरूदेव के प्रति समर्पित होकर हमें जीवन यापन करना होता है.
देखिए वीडियो :
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