जशपुर से लौटकर विधि अग्निहोत्री की रिपोर्ट
टांगरगांव निवासी सुशीला हमेशा से चाहती की परिवार की आर्थिक मदद कर पाए, क्योंकि 10 लोगों का परिवार का गुजारा सिर्फ खेती के भरोसे हो नहीं सकती थी. ऐसे में सुशीला अपनी पारिवारिक स्थिति को लेकर बेहद परेशान रहती. सुशीला की परेशानी उसकी शारीरिक कमजोरी या कहिए अक्षमता भी थी. ये अक्षमता थी सुशीला हाथों की कमजोरी. सुशीला की एक हाथ के पंजे नहीं थे. लिहाजा उन्होंने हर एक काम एक ही हाथ से करना पड़ता है. हालांकि इस कमजोरी के बीच सुशीला की मजबूती यह थी कि उसमें पढ़ाई की ललक हिम्मत और लगन खूब थी. किसी भी काम को पूरा करने की इक्छाशक्ति दृढ़ थी.
फिर भी सुशीला जहाँ भी जाती लोग उसे देखकर कहते, रहने दो हम कर लेगें. सुशीला को हर कहीं से ताने सुनने मिलते. सुशीला को लोग दया भाव से देखते. लेकिन सुशीला को लोगों की दया दृष्टि नामंज़ूर थी वह लोगों को दिखाना चाहती थी, कि किसी भी आम इंसान से वो कम नहीं. वह सारे काम करने में सक्षम है जो आम लोग कर पाते हैं. हालांकि काम तलाशने की लाख कोशिश करके सुशीला ने देख लिया था कि एक हाथ की कमजोरी हर बार आड़े आ जाती. लोग कहते कि तुम अपना काम तो ठीक से कर लो फिर परिवार की मदद करना. लोगों के ताने सुनकर सुशीला को बुरा लगता. विषम परिस्थितियों और एक हाथ के अभाव में सुशीला ने हार मानने की बजाय अपनी हिम्मत को समेट अपने पैरों पर खड़ा होना उचित समझा. तमाम अड़चनों, अभावों, समाज के ताने भी सुशीला को तोड़ पाने में सफल ना हो पाए. सुशीला का जीवन शुरू से ही संघर्षों से घिरा रहा बावजूद इसके सुशीला उतनी ही दोगुनी हिम्मत के साथ आगे बढ़तीं. सुशीला की ताकत उसकी हिम्मत का स्त्रोत उसका परिवार था. परिवार ने हमेशा सुशीला का हौसला बढ़ाया. सुशीला का परिवार उसकी ताकत बन कर खड़ा रहा. जब भी सुशीला खुद को कमज़ोर समझती परिवार उसका ढ़ांढस बंधाता. सुशीला गांव की सबसे पढ़ी-लिखीं युवती है. सुशीला का परिवार है एक मिसाल है जिसने सुशीला को पढ़ने से कभी नहीं रोका. सुशीला ने बी.एड किया और इतिहास में एम.ए की डिग्री भी ली. सुशीला के अनुसार उसके परिवार ने उसे कभी कोई काम करने से नहीं रोका इसलिए सुशीला भी चाहती थी कि जल्द से जल्द आर्थिक रूप सक्षम होकर अपने परिवार को गरीबी के संकट से उबार सके
इसी चिंता के बीच एक दिन उसे अपने ही गांव में रेशम विभाग के द्वारा मुख्यमंत्री कौशल विभाग योजना के तहत कोसा निकालने के कार्य के बारे में पता चला, जहाँ कोसा निकालने का प्रशिक्षण दिया जा रहा था. सुशीला को यह काम अपने अनुकूल लगा. उसने तुरंत फार्म जमा कर 45 दिनों का प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद इस काम में निपुणता हासिल कर ली. अब सुशीला प्रतिदिन 150 से 200 ग्राम कोसा धागा निकाल लेती है. इससे सुशीला प्रतिदिन ठीक-ठाक आय कमा लेती हैं. सुशीला बहुत गर्व के साथ कहती है कि ‘मैं अपने परिवार की मदद कर पा रही हूँ. पिता और भाई की तरह घर की जिम्मेदारी उठा रही है उसकी आमदनी भी परिवार का पेट पालने में सहायक हो रही है. उसे अपनी कमजोरी का कोई अफसोस नहीं, साथ ही वह सरकार का शुक्रिया अदा करती है कि इस योजना ने उसे स्वावलंबी बना दिया. वर्तमान समय में महिलाओं का आत्मनिर्भर होना बेहद जरूरी है. गांव की अन्य महिलाओं ने भी सरकार द्वारा चलाई जा रही इस योजना का लाभ उठा अपनी ज़िदगी को बेहतर बनाया है. जिस तरह सुशीला ने अपने आत्मविश्वास के बल पर रोजगार का मार्ग चुना उससे गांव वाले प्रेरित हुए. इस योजना ने सुशीला को रोजगार तो दिया ही साथ ही उसे आत्मसम्मान से जीवन जीने का हक भी दिया.
सोहनलाल द्विदी जी की यह कविता सुशीला के जीवन में सार्थक सिद्ध होती है.
नन्ही चीटी जब दाना लेकर चलती है
चढ़ती दीवारों पर सौ बार फिसलती है
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती