विधि अग्निहोत्री, रायपुर/ कुरूद। मनरेगा मजदूर गायत्री का जीवन भी एक आम ग्रामीण महिला की ही तरह था. दिन भर मजदूरी कर गायत्री शाम को घर जाकर एक मां का दायित्वभी भी निभाती. धमतरी जिले के कुरूद विधानसभा के अंतर्गत ग्राम गातापारा की रहने वाली 28 वर्षीय गायत्री साहू मनरेगा मजदूर थीं. पति के साथ मिलकर परिवार की जिम्मेदारियाँ उठा रही थी. दोनों पति-पत्नी मिलकर दिन रात काम करते फिर भी आमदनी इतनी नहीं होती कि परिवार का भरण-पोषण अच्छे से हो पाए और बच्चों को अच्छी शिक्षा मिल पाए.

बच्चों की शिक्षा को लेकर गायत्री हमेशा चिंता में रहती थी. वह चाहती थी कि उसने अपने जीवन में जो संघर्ष किया है वह संघर्ष उसके बच्चों को ना करना पड़े. बच्चे अच्छी तालीम लेकर अपना भविष्य गढ़ सकें. लेकिन उन सबके बीच उसकी गरीबी सबसे बड़ी बाधा थी. मनरेगा के तहत कुछ ही दिन उसे रोजगार मिल पाता था. उसके बाद परिवार की मुश्किलें और भी ज्यादा बढ़ जाती थी.  2016 में बिहान कार्यक्रम के तहत गायत्री  एसएचजी नामक स्वसहायता समूह से जुड़ी. वहां उसे पता चला कि छोटी-छोटी बचत करके कैसे पैसों को सृजनात्मक कार्य में लगा सकती है और परिवार को आर्थिक मजबूती दे सकती है.

इसी बीच फरवरी 2018 में उसे ई-रिक्शा चलाने के प्रशिक्षण के बारे में पता चला. पुरुषों के एकाधिकार वाले इस क्षेत्र में कार्य करने का फैसला लेना किसी ग्रामीण परिवेश में रहने वाली महिला के लिए आसान नहीं था. लेकिन बच्चों का भविष्य और परिवार की माली हालत ने न चाहते हुए भी गायत्री को इस क्षेत्र में आने के लिए मजबूर कर दिया. जिसके बाद उसने ई-रिक्शा चलाने का प्रशिक्षण लिया. 15 दिनों के भीतर गायत्री ई-रिक्शा चलाना सीख गई.

हालांकि इसके बाद भी गायत्री की मुश्किलें खत्म होने का नाम नहीं ले रही थी. अब गायत्री के सामने अब सबसे बड़ी समस्या ई-रिक्शा खरीदने की थी. हौसला न हारते हुए गायत्री ने ई-रिक्शा के लिए सरकारी मदद हासिल करने सरकारी कार्यालयों का चक्कर लगाने लगी. जहां जिला पंचायत के अधिकारियों से संपर्क करने के बाद अनुदान पर ई-रिक्शा क्रय करने के बारे में जानकारी मिली. गायत्री ने सरकारी योजनाओं के तहत ई-रिक्शा खरीदने का फार्म भर दिया. 1 लाख 90 हजार रुपए के ई-रिक्शा के लिए उसे 1 लाख 10 हजार रुपए रुर्बन से अनुदान के रुप में मिले और 50 हजार की सब्सिडी श्रम विभाग से प्राप्त हो गई. गायत्री को ई-रिक्शा खरीदने के लिए महज 30 हजार रुपए ही खर्च करने पड़े.

गायत्री के लिए शासन से मिला अनुदान ‘जिन खोजा तिन पाइयां’ की तरह हो गया. 20 फरवरी को कुरूद विकासखंड के गांव रामपुर में आयोजित रूर्बन मिशन के शुभारंभ कार्यक्रम में पंचायत मंत्री अजय चंद्राकर ने गायत्री को रिक्शे की चाबी सौंपी और शुभकामनाएं देते हुए आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया. तब से वह रोज़ धमतरी से कोर्रा के बीच सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक ई-रिक्शा चलाती है और सवारियों को उनके गंतव्य तक छोड़ती हैं. लोग भी गायत्री को रिक्शा चलाते बड़ी हैरानी से देखते हैं. गायत्री के रिक्शा चलाने से महिला सवारियों को भी सुरक्षा संबंधी कोई चिंता नहीं रहती.

एक महिला सवारी से बात करने पर उसने बताया कि महिलाओं के साथ हो रही घटनाओं को सुनकर मन में डर बैठ गया है लेकिन गायत्री जैसी महिला रिक्शा चालकों की वजह से चिंता थोड़ी दूर हुई है. अब हमें अपनी बहन-बेटियों की उतनी चिंता नहीं होती. महिला सवारी के अनुसार अगर इसी तरह महिलाएं इस क्षेत्र में आगे आएंगी, तो महिलाओं का सफर सुरक्षित बन जाएगा.

गायत्री ने बताया कि शुरू में रिक्शा चलाने में थोड़ी झिझक महसूस होती थी, लेकिन अपने समूह की बातें याद करके सिर्फ अपने लक्ष्य को ध्यान में रखा. अब वह आत्मविश्वास के साथ अपने हाथों में रिक्शे के हैंडल को ऐसे नचाती हैं जैसे कई सालों से वे रिक्शा चला रहीं हो.

इस तरह समूह से जुड़ने और शासन की विभिन्न योजनाओं का लाभ लेकर गायत्री न सिर्फ पुरुष प्रधान समाज की परम्पराओं को तोड़ने में कामयाब रही. बल्कि ई-रिक्शा चलाकर अपने पति के साथ-साथ दोनों बच्चों के भविष्य को बेहतर बनाने में जुटी हुईं हैं. साथ ही गायत्री अपने जैसी तमाम महिलाओं के लिए प्रेरणा स्त्रोत बन उन्हे भी इस क्षेत्र में आकर अपनी तकदीर बदलने के लिए प्रोत्साहित कर रहीं हैं.